शेखावाटी
जय माताजी 🙏🙏🙏
शेखावाटी उत्तर-पूर्वी राजस्थान का एक अर्ध-शुष्क ऐतिहासिक क्षेत्र है। राजस्थान के वर्तमान सीकर और झुंझुनू जिले शेखावाटी के नाम से जाने जाते हैं इस क्षेत्र पर आजादी से पहले शेखावत क्षत्रियों का शासन होने के कारण इस क्षेत्र का नाम शेखावाटी प्रचलन में आया। देशी राज्यों के भारतीय संघ में विलय से पूर्व मनोहरपुर-शाहपुरा,[गोङियावास] खंडेला, सीकर, खेतडी, बिसाऊ लामिया, सुरजगढ, नवलगढ़,मंडावा, मुकन्दगढ़, दांता, खुड, * कंकङेऊ कलां खाचरियाबास, अलसीसर,यासर,मलसीसर,लक्ष्मणगढ,बीदसर आदि बड़े-बड़े प्रभावशाली संस्थान शेखा जी के वंशधरों के अधिकार में थे। वर्तमान शेखावाटी क्षेत्र पर्यटन और शिक्षा के क्षेत्र में विश्व मानचित्र में तेजी से उभर रहा है, यहाँ पिलानी और लक्ष्मणगढ के भारत प्रसिद्ध शिक्षा केंद्र है। वही नवलगढ़, फतेहपुर, गंगियासर,अलसीसर, मलसीसर, लक्ष्मणगढ, मंडावा आदि जगहों पर बनी प्राचीन बड़ी-बड़ी हवेलियाँ अपनी विशालता और भित्ति चित्रकारी के लिए विश्व प्रसिद्ध है जिन्हें देखने देशी-विदेशी पर्यटकों का ताँता लगा रहता है। पहाडों में सुरम्य जगहों बने जीण माता मंदिर, शाकम्बरीदेवी का मन्दिर, लोहार्ल्गल के अलावा खाटू में बाबा खाटूश्यामजी का (बर्बरीक) का मन्दिर,सालासर में हनुमान जी का मन्दिर * कंकङेऊ कलां में बाबा माननाथ की मेङी आदि स्थान धार्मिक आस्था के ऐसे केंद्र है जहाँ दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शनार्थ आते हैं। इस शेखावाटी प्रदेश ने जहाँ देश के लिए अपने प्राणों को बलिदान करने वाले देशप्रेमी दिए वहीँ उद्योगों व व्यापार को बढ़ाने वाले सैकडो उद्योगपति व व्यापारी दिए जिन्होंने अपने उद्योगों से लाखों लोगों को रोजगार देकर देश की अर्थव्यवस्था में अपना योगदान दिया। भारतीय सेना को सबसे ज्यादा सैनिक देने वाला झुंझुनू जिला शेखावाटी का ही भाग है।
राजस्थान का मरुभूमि वाला पुर्वोतरी एवं पश्चिमोतरी विशाल भूभाग वैदिक सभ्यता के उदय का उषा काल माना जाता है। हजारों वर्ष पूर्व भू-गर्भ में विलुप्त वैदिक नदी सरस्वती यहीं पर प्रवाह मान थी, जिसके तटों पर तपस्यालीन आर्य ऋषियों ने वेदों के सूत्रों की सरंचना की थी। सिन्धुघाटी सभ्यता के अवशेषों एवं विभिन्न संस्कृतियों के परस्पर मिलन, विकास उत्थान और पतन की रोचक एवं गौरव गाथाओं को अपने विशाल आँचल में छिपाए यह मरुभूमि भारतीय इतिहास के गौरवपूर्ण अध्याय की श्र्ष्ठा और द्रष्टा रही है। जनपदीय गणराज्यों की जन्म स्थली और क्रीडा स्थली बने रहने का श्रेय इसी मरुभूमि को रहा है। इस मरुभूमि ने ऐसे विशिष्ठ पुरुषों को जन्म दिया है, जिन्होंने अपने कार्यकलापों से भारतीय इतिहास को प्रभावित किया है।
इसी मरुभूमि का एक भाग प्रमुख भाग शेखावाटी प्रदेश है जो विशालकाय मरुस्थल के पुर्वोतरी अंचल में फैला हुआ है। इसका शेखावाटी नाम विगतकालीन पॉँच शताब्दियों में इस भू-भाग पर शासन करने वाले शेखावत क्षत्रियों के नाम पर प्रसिद्ध हुआ है। उससे से पूर्व अनेक प्रांतीय नामो से इस प्रदेश की प्रसिद्दि रही है। इसी भांति अनेक शासक कुलों ने समय-समय पर यहाँ राज्य किया है।
उत्तर पूर्वी राजस्थान में शेखावाटी क्षेत्र के अंतर्गत कई गाँव और कस्बे आते है। शेखावाटी क्षेत्र की भौगोलिक सीमाएँ वर्तमान में झुंझूनूं, सीकर और चूरू जिले तक सीमित है। विक्रम संवत 1423 में कछवावंश के राजा उदयकरण आमेर के राजा बने व उनके पुत्रों के द्वारा शेखावत, नरुका व राजावत नामक शाखाओ का निकास हुआ।
राजा उदयकरण के तीसरे पुत्र बालाजी शेखावतों के प्राचीन पुरुष थे। जिनके पास बरवाडा की 12 गावों की जागीर थी। बालाजी के पुत्र मोकल जी हुए और विक्रम संवत 1490 में मोकल जी के पुत्र महान योद्धा महाराव शेखा जी का जन्म हुआ। जो कि शेखावाटी व शेखावत वंश के प्रवर्तक थे। विक्रम संवत 1502 में मोकल जी के निधन के बाद महाराव शेखा जी बरवाडा व नान के 24 गावों के मालिक बने। राव शेखा जी ने अपने साहस वीरता व सैनिक संगठन का परिचय देते हुए आस-पास के गाँवों पर धावा मारकर अपने छोटे राज्य को 360 गाँवों के राज्य में बदल दिया एवं नान के पास अमरसर बसा कर उसे अपनी राजधानी बनाया और शिखरगढ़ का निर्माण किया। राजा रायसल जी, राव शिव सिंह जी, शार्दुल सिंह जी, भोजराज जी, सुजान सिंह आदि वीरों ने स्वतंत्र शेखावत राज्यों की स्थापना की व बठोथ, पटोदा के ठाकुर डूंगर सिंह,जवाहर सिंह शेखावत ने भारतीय स्वतंत्रता के लिये अंग्रेजों के विरूद्ध सशस्त्र संघर्ष चालू कर शेखावाटी में आजादी की लड़ाई का बिगुल बजाया।
वीर भूमि शेखावाटी प्रदेश की स्थापना महाराव शेखा जी एवं उनके वंशजों के बल, विक्रम, शोर्य और राज्याधिकार प्राप्त करने की अद्वितीय प्रतिभा का प्रतिफल है। यहाँ के दानी-मानी लक्ष्मी पुत्रों, सरस्वती के अमर साधकों तथा शक्ति के त्यागी-बलिदानी सिंह सपूतों की अनोखी गौरवमयी गाथाओं ने इसकी अलग पहचान बनाई और स्थाई रूप देने में अपनी त्याग व तपस्या की भावना को गतिशील बनाये रखा ! साहित्य के क्षेत्र में भी झुन्झुनू का नाम सर्वोपरी है ! मलसीसर के पास एक छोटे से गाँव कंकङेऊ के कवि "रवि शास्त्री" वर्तमान समय में साहित्य के क्षेत्र में अग्रसर हैं ! यहाँ के प्रबल पराक्रमी, सबल साहसी, आन-बान और मर्यादा के सजग प्रहरी शूरवीरों के रक्त-बीज से शेखावाटी के रूप में यह वट वृक्ष अपनी अनेक शाखाओं प्रशाखाओं में लहराता, झूमता और प्रस्फुटित होता आज भी अपनी अमर गाथाओं को कह रहा है। शेखावाटी नाम लेने मात्र से ही आज भी शोर्य का संचार होता है, दान की दुन्दुभी कानों में गूंजती है और शिक्षा, साहित्य, संस्कृति तथा कला का भाव उर्मियाँ उद्वेलित होने लगती है। यहाँ भित्तिचित्रों ने तो शेखावाटी के नाम को सारे संसार में दूर-दूर तक उजागर किया है। यह धरा धन्य है। ऋषियों की तपोभूमि रही है तो कृषकों की कर्मभूमि। यह धर्मधरा राजस्थान की एक पुण्य स्थली है। ऐतिहासिक द्रष्टि से इसमें अमरसरवाटी, झुंझुनू वाटी, उदयपुर वाटी, खंडेला वाटी, नरहड़ वाटी, सिंघाना वाटी, सीकर वाटी, फतेहपुर वाटी, आदि कई भाग परिणित होते रहे हैं। इनका सामूहिक नाम ही शेखावाटी प्रसिद्ध हुआ। जब शेखावाटी का अपना अलग राजनैतिक अस्तित्व था तब उसकी सीमाए इस प्रकार थी - उत्तर पश्चिम में भूतपूर्व बीकानेर राज्य, उत्तरपूर्व में लोहारू और झज्जर, दक्षिण पूर्व में तंवरावाटी और भूतपूर्व जयपुर राज्य तथा दक्षिण पश्चिम में भूतपूर्व जोधपुर राज्य। देशी राज्यों के भारतीय संघ में विलय से पूर्व मनोहरपुर-शाहपुरा, लामिया , खंडेला, सीकर, खेतडी, बिसाऊ, कांसरडा सुरजगढ, नवलगढ़, मंडावा, मुकन्दगढ़, दांता, खुड, खाचरियाबास, अलसीसर, मलसीसर,लक्ष्मणगढ आदि बड़े-बड़े प्रभावशाली संस्थान शेखा जी के वंशधरों के अधिकार में थे।
शेखावत संघ ने, जो आमेर राजवंश से उदभूत है, काल और परिस्थितियों के प्रभाव से अपने पैत्रिक राज्य आमेर के बराबर सम्मान और शक्ति संचय कर ली है। यधपि इस संघ का न कोई लिखित कानून है और न इसका प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष कोई प्रधानाध्यक्ष है। किन्तु समान हित की भावना से प्रेरित यह संघ अपना अस्तित्व बनाये रखने में सदैव समर्थ रहा है। फिर भी यह नहीं मान लेना चाहिय कि इस संघ में कोई नीति-कर्म नहीं है। जब कभी एक छोटे से छोटे सामंत के स्वत्वधिकारों के हनन का प्रश्न उपस्थित हुआ तो छोटे-बड़े सभी शेखावत सामंत सरदारों ने उदयपुर नामक अपने प्रसिद्ध स्थान पर इक्कठे होकर स्वत्व-रक्षा का समाधान निकाला है।
शेखावाटी के सीकर जिले में कूदन गावं गोलीकांड के लिए प्रसिद्ध है। इस गोलीकांड में गोठड़ा भूकरान के संभूसिंह एवं पृथ्वी सिंह शहीद हो गए।
रसाले (घुड़सवार सेना) की भर्ती के हेतु शेखावाटी के मुकाबले समस्त भारत में कोई दूसरा क्षेत्र नहीं है।
शेखावाटी भूमि में कई महल हैं, जैसे मंडवा का किला, लक्ष्मणगढ़ किला, डूंडलोद किला आदि।
मांडवा का किला
लष्मणगढ किला
डूंडलोद का किला
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English Translation:-
Shekhawati
Jai Mataji🙏🙏🙏
Shekhawati is a semi-arid historical region of north-eastern Rajasthan. The present Sikar and Jhunjhunu districts of Rajasthan are known as Shekhawati, this area came to be known as Shekhawati due to the rule of Shekhawat Kshatriyas before independence. Manoharpur-Shahpura, [Goiawas] Khandela, Sikar, Khetri, Bissau Lamia, Surajgarh, Nawalgarh, Mandawa, Mukandgarh, Danta, Khud, * Kankaleu Kalan Khachariabas, Alsisar, Yassar, Malsisar, Laxmangarh, before the merger of the Indian states into the Indian Union. Big influential institutions like Bidsar etc. were under the authority of the descendants of Sheikha ji. The present Shekhawati region is fast emerging in the world map in the field of tourism and education, here is the India famous education center of Pilani and Laxmangarh. The ancient big havelis built in the same places like Nawalgarh, Fatehpur, Gangiasar, Alsisar, Malsisar, Laxmangarh, Mandawa etc. are world famous for their vastness and mural painting which is being watched by foreign and foreign tourists. Jeen Mata Temple, the temple of Shakambaridevi made of picturesque places in the hills, the temple of Baba Khatushyamji (Barbaric) in Khatu, besides the temple of Lohargal, the temple of Hanuman ji in Salasar * Baba Maanath's temple in Kankelu Kalan are such centers of religious faith where Devotees come from far and wide. This Shekhawati region gave patriots who sacrificed their lives for the country, and gave hundreds of industrialists and businessmen who increased their industries and trade, who contributed to the country's economy by employing millions of people from their industries. Jhunjhunu district is the only part of Shekhawati, which gives maximum soldiers to Indian Army.
The vast plains of the desert and the northwest of Rajasthan are considered to be the period of the rise of the Vedic civilization. Thousands of years ago, the extinct Vedic river Saraswati flowed here in the womb, on whose banks the ascetic Aryan rishis designed the sources of the Vedas. Hidden in the vast and interesting stories of the ruins of the Indus Valley Civilization and the intermingling, development, rise and fall of different cultures, this desert has been the shrine and seer of the glorious chapter of Indian history. This desert has been credited for being the birthplace and sports venue of the district republics. This desert has given birth to such distinguished men, who have influenced Indian history through their activities.
A major part of this desert is Shekhawati region which is spread in the eastern border of the vast desert. Its name Shekhawati has become famous in the name of Shekhawat Kshatriyas who ruled this land in the past five centuries. Prior to that, this state has been famous by many provincial names. Similarly, many ruling clans have reigned here from time to time.
Shekhawati region in North East Rajasthan consists of many villages and towns. The geographical boundaries of the Shekhawati region are currently confined to Jhunjhunu, Sikar and Churu districts. In Vikram Samvat 1423, Udayakaran, the king of the Kachhava dynasty, became the king of Amer and his sons named Shekhawat, Naruka and Rajawat were ousted.
Balaji, the third son of King Udayakaran, was the ancient man of the Shekhawats. Who had the estate of 12 villages of Barwada. Balaji's son was Mokal ji and in Vikram Samvat 1490, great warrior Maharao Shekha ji, son of Mokal ji was born. Who were the promoters of Shekhawati and Shekhawat dynasty. After the death of Mokalji in Vikram Samvat 1502, Maharao Shekha became the owner of 24 villages of Barwada and Naan. Rao Shekha ji, showing his courage, valor and military organization, attacked the surrounding villages and converted his small kingdom into a state of 360 villages and settled Amarsar near Naan and made it his capital and built Shikhargarh. Raja Raisal ji, Rao Shiv Singh ji, Shardul Singh ji, Bhojraj ji, Sujan Singh, etc. Veers established independent Shekhawat states and Bathoth, Thakur Dungar Singh of Patoda, Jawahar Singh Shekhawat started armed struggle against British for Indian independence. Kar played the bugle of freedom fight in Shekhawati.
The establishment of the Veer Bhumi Shekhawati region is a byproduct of Maharao Shekha ji and his descendants with the unique talent of acquiring strength, Vikram, Shoreya and state rights. The unique glorious tales of the goddess Lakshmi sons here, the immortal seekers of Saraswati and Tyagi-Balidani Singh sons of Shakti created a distinct identity and kept their spirit of sacrifice and penance in permanent form. Jhunjhunu's name is Sarvopari in the field of literature too! The poet "Ravi Shastri" of Kankleu, a small village near Malsisar, is currently in the field of literature! The Vat tree would be waving, swinging and erupting in its many branches of branches as the Shekhawati from the blood-seed of the vigorous, strong-courageous, on-the-face and dignified vigilant knights of this place is still telling their immortal stories. Even after taking the name Shekhawati, even today there is communication of noise, donations of charity resonate in the ears and urges of education, literature, culture and art start to flow. Here graffiti has exposed the name of Shekhawati far and wide in the whole world. This earth is blessed. If there has been the taphobhoomi of the sages, then the karmabhoomi of the farmers. This Dharmadhara is a sacred place in Rajasthan. From historical point of view, there have been many parts of Amarsarwati, Jhunjhunu Wati, Udaipur Wati, Khandela Wati, Narhad Wati, Singhana Wati, Sikar Wati, Fatehpur Wati, etc. Their collective name is Shekhawati. When Shekhawati had its own separate political existence, its boundaries were as follows - the former Bikaner State in the northwest, Loharu and Jhajjar in the northeast, Tanvarawati and the erstwhile Jaipur state in the southeast and the former Jodhpur state in the southwest. Manoharpur-Shahpura, Lamia, Khandela, Sikar, Khetri, Bissau, Kansarda Surjgarh, Nawalgarh, Mandawa, Mukandgarh, Danta, Khud, Khachariabas, Alsisar, Malsisar, Laxmangarh, etc. Before the merger with the Indian Union of indigenous states, Were under the authority of the descendants of Shekhaji.
The Shekhawat Sangha, which originated from the Amer dynasty, has accumulated respect and power equal to its ancestral kingdom Amer by the influence of time and circumstances. However, there is no written law of this association nor is there any direct or indirect head of state. But inspired by the spirit of equal interest, this association has always been able to maintain its existence. However, it should not be assumed that there is no ethics in this union. Whenever the question of violation of the rights of a small feudal lord was present, all the Shekhawat feudal lords, big and small, gathered at their famous place called Udaipur to find a solution for self-defense.
Kudan village in Sikar district of Shekhawati is famous for firing. In this shootout, Sambhusinh and Prithvi Singh of Gothara Bhukran died.
There is no other region in India than Shekhawati for recruiting Rasale (cavalry).
There Are Many Palaces In Shekhawati Land,like Mandwa Fort, Laxmangadh Fort, Dundlod Fort etc.
Jai Mataji
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