मेवाड़ का प्रसिद्ध कुम्भलगढ़ किला
जय माताजी🙏🙏🙏
कुम्भलगढ़ किला मेवाड़ के प्रसिद्ध किलो में से एक है, जो अरावली पर्वत पर स्थित है। यह किला भारत के पश्चिम में राजस्थान के उदयपुर जिले के राजसमंद में स्थित है। यह एक वर्ल्ड हेरिटेज साईट है जो राजस्थान की पहाडियों में स्थित है। इसका निर्माण 15 वी शताब्दी में राणा कुम्भ ने किया था, कुम्भलगढ़ महान शासक महाराणा प्रताप की जन्मभूमि भी है।
महाराणा प्रताप मेवाड़ के महान शासक और वीर योद्धा थे। जिनका 19 वी शताब्दी तक किले पर कब्ज़ा था, लेकिन आज यह किला सामान्य लोगो के लिये भी खुला है। कुम्भलगढ़ उदयपुर से रोड वाले रास्ते से 82 किलोमीटर दूर है।
चित्तोडगढ के बाद मेवाड़ के मुख्य किलो में यह भी शामिल है। मेवाड़ के सबसे बेहतरीन और प्रसिद्ध किलो में कुम्भलगढ़ किले की गिनती की जाती है।
कुम्भलगढ़ किले का इतिहास:-
मेवाड़ के प्रसिद्ध कुम्भलगढ़ किला |
2013 मे, कंबोडिया के पेन्ह में आयोजित वर्ल्ड हेरिटेज कमिटी के 37 वे सेशन में कुम्भलगढ़ किले के साथ-साथ राजस्थान के दुसरे बहुत से किलो को भी वर्ल्ड हेरिटेज साईट घोषित किया गया। यूनेस्को ने राजस्थान के किलो की सूचि में इसे शामिल किया है।
किले की 38 किलोमीटर की दीवार के साथ, यह किला ग्रेट वॉल ऑफ़ चाइना के बाद यह सबसे विशाल दीवार वाला दूसरा किला है और चित्तौड़गढ़ किले के बाद यह राजस्थान के बाद दुसरा सबसे बड़ा किला है।
कुम्भलगढ़ किले का इतिहास –
इस किले के इतिहास को लेकर प्रयाप्त जानकारी उपलब्ध ना होने के कारण हम इस किले के इतिहास को लेकर ज्यादा कुछ नही कह सकते। कहा जाता है की इस किले का प्राचीन नाम मछिन्द्रपुर था, जबकि इतिहासकार साहिब हकीम ने इसे माहौर का नाम दिया था।
माना जाता है की वास्तविक किले का निर्माण मौर्य साम्राज्य के राजा सम्प्रति ने छठी शताब्दी में किया था। 1303 AD में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण करने से पहले का इतिहास आज भी अस्पष्ट है।
आज जिस कुम्भलगढ़ किले को देखते है उसका निर्माण हिन्दू सिसोदिया राजपूतो ने करवाया और वही कुम्भ पर राज करते थे। आज जिस कुम्भलगढ़ को हम देखते है उसे प्रसिद्ध आर्किटेक्ट एरा मदन ने विकसित किया था और अलंकृत किया था।
राणा कुम्भ का मेवाड़ साम्राज्य रणथम्बोर से ग्वालियर तक फैला हुआ है जिनमे मध्यप्रदेश राज्य का कुछ भाग और राजस्थान भी शामिल है। कुल 84 किले उनके अधिराज्य में थे, कहा जाता है की राणा कुम्भ ने उनमे से 32 किलो को डिजाईन किया था।
कुम्भलगढ़ ने मेवाड़ और मारवाड़ को भी अलग-अलग किया है और उस समय मेवाड़ के शासको द्वारा इन किलो का उपयोग किया जाता था। एक प्रसिद्ध घटना यहाँ राजकुमार उदय को लेकर घटित हुई थी, 1535 में इस छोटे राजकुमार की यहाँ तस्करी की गयी थी, उस समय चित्तोड़ घेराबंदी में था।
बाद में राजकुमार उदय ने ही उदयपुर शहर की स्थापना की थी। इसके बाद यह किला सीधे हमले के लिये अभेद्य ही रहा और एक बाद पानी की कमी की वजह से ही किले को थोड़ी क्षति पहुची थी।
अम्बेर के राजा मान सिंह, मारवाड़ के राजा उदय सिंह, मुघल सम्राट अकबर और गुजरात में मिर्ज़ा के लिये पानी की कमी को पूरा करने की वजह से यहाँ पानी की कमी आयी थी।
गुजरात के अहमद शाह प्रथम ने 1457 में किले पर आक्रमण किया था लेकिन उनकी कोशिश व्यर्थ गयी। स्थानिक लोगो का ऐसा मानना है की किले में स्थापित बनमाता देवी ही किले की रक्षा करती है और इसीलिए अहमद शाह प्रथम किले को तोडना चाहता था।
इसके बाद 1458-59 और 1467 में महमूद खिलजी ने किले पर आक्रमण करने की कोशिश की थी लेकिन वह भी असफल रहा। कहा जाता है की 1576 से किले पर अकबर के जनरल शब्बाज़ खान का नियंत्रण था।
1818 में सन्यासियों के समूह ने किले की सुरक्षा करने का निर्णय लिया था लेकिन फिर बाद में किले पर मराठाओ ने अधिकार कर लिया था। इसके बाद किले में मेवाड़ के महाराणा ने कुछ बदलाव भी किये थे लेकिन वास्तविक किले का निर्माण महाराणा कुम्भ ने ही किया था। और बाद में किले की बाकी इमारतो और मंदिर की सुरक्षा भी की गयी थी।
कुम्भलगढ़ किले की संस्कृति
राजस्थान पर्यटन विभाग हर साल महाराणा कुम्भ की याद में तीन दीन एक विशाल महोत्सव का आयोजन कुम्भलगढ़ में करता है। तीन दिन के इस महोत्सव में किले को रौशनी से सजाया जाता है। इस दौरान नृत्य कला, संगीत कला का प्रदर्शन भी स्थानिक लोग करते है।
इस महोत्सव में दूसरी बहुत सी प्रतियोगिताओ का भी आयोजन किया जाता है जैसे की किला भ्रमण, पगड़ी बांधना, युद्ध के लिये खिंचा तानी और मेहंदी मांडना इत्यादि।
राजस्थान के छः किले मुख्यतः आमेर का किला, चित्तोडगढ किला, जैसलमेर किला, कुम्भलगढ़ किला और रणथम्बोर किले को जून 2013 में पेन्ह में आयोजित वर्ल्ड हेरिटेज साईट की 37 वी मीटिंग में इन्हें यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साईट में शामिल किया गया था।
राजपूताने की शान के नाम से मशहूर कुम्भलगढ़ किले से एक तरफ सैकड़ो किलोमीटर में फैले अरावली पर्वत श्रृंखला की हरियाली दिखाई देती हैँ जिनसे वो घिरा हैँ, वहीँ दूसरी तरफ थार रेगिस्तान के रेत के टीले भी दिखते हैँ।
कहा जाता है की कुम्भलगढ़ किले को देश का सबसे मजबूत दुर्ग माना जाता है जिसे आज तक सीधे युद्ध में जीतना नामुमकिन है। गुजरात के अहमद शाह से लेकर महमूद ख़िलजी सभी ने आक्रमण किया लेकिन कोई भी युद्ध में इसे जीत नही सका।
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English Translation:-
Famous Kumbhalgarh Fort of Mewar
History of Kumbhalgarh Fort: -
Famous Kumbhalgarh Fort of Mewar.
In 2013, in the 37th session of the World Heritage Committee held in Penh, Cambodia, along with Kumbhalgarh Fort, several other kilos of Rajasthan were also declared as World Heritage Sites. UNESCO has included it in the list of kilos of Rajasthan.
With a 38-kilometer wall of the fort, this fort is the second-largest fortress after the Great Wall of China and the second largest fort after Rajasthan, after the Chittorgarh Fort.
History of Kumbhalgarh Fort -
Due to insufficient information about the history of this fort, we cannot say much about the history of this fort. It is said that the ancient name of this fort was Machindrapur, while the historian Sahib Hakim gave it the name of Mahore.
It is believed that the real fort was built by King Samprati of the Maurya Empire in the sixth century. The history before Alauddin Khilji's invasion in 1303 AD is still unclear.
Today, the Kumbhalgarh Fort is seen by the Hindu Sisodia Rajputs who built it and they ruled the Kumbh. The Kumbhalgarh we see today was developed and ornamented by the famous architect Era Madan.
The Mewar kingdom of Rana Kumbha extends from Ranthambore to Gwalior, which includes parts of the state of Madhya Pradesh and Rajasthan. A total of 84 forts were in his dominion, it is said that Rana Kumbh designed 32 kg of them.
Kumbhalgarh also separated Mewar and Marwar and these kilos were used by the rulers of Mewar at that time. A famous incident took place here about Prince Uday, this little prince was smuggled here in 1535, when Chittor was under siege.
Later Udaypur city was established by Prince Uday. After this the fort remained impregnable for direct attack and after a shortage of water, the fort was damaged a little.
Raja Man Singh of Amber, Raja Udai Singh of Marwar, the Mughal Emperor Akbar and the shortage of water for Mirza in Gujarat caused a shortage of water here.
Ahmed Shah I of Gujarat attacked the fort in 1457 but his efforts were in vain. Local people believe that Banmata Devi installed in the fort protects the fort and that is why Ahmad Shah wanted to break the first fort.
After this, in 1458-59 and 1467, Mahmud Khilji tried to attack the fort but that too failed. It is said that the fort was controlled by Akbar's general Shabazz Khan from 1576.
In 1818, a group of ascetics decided to protect the fort but then later the Marathas took over the fort. After this, Maharana of Mewar had also made some changes in the fort, but the actual fort was built by Maharana Kumbh. And later the rest of the fort buildings and the temple were also protected.
Culture of Kumbhalgarh Fort
Every year Rajasthan Tourism Department organizes a huge festival in Kumbhalgarh in memory of Maharana Kumbh. The fort is decorated with light during this three-day festival. During this time, dance and music are also performed by local people.
Many other competitions are also organized in this festival like touring the fort, tying a turban, stretched for war and mehndi mandana etc.
The six forts of Rajasthan, mainly the Amer Fort, Chittorgarh Fort, Jaisalmer Fort, Kumbhalgarh Fort and Ranthambore Fort were included in the UNESCO World Heritage Site at the 37th meeting of the World Heritage Site held in Penh in June 2013.
Kumbhalgarh Fort, known as the Pride of Rajputana, has the greenery of the Aravali mountain range spread over hundreds of kilometers on one side, surrounded by them, and on the other side the sand dunes of the Thar Desert are also visible.
It is said that Kumbhalgarh Fort is considered to be the strongest fortress of the country, which is impossible to win in direct war till date. Everyone from Ahmed Shah of Gujarat to Mahmud Khilji attacked but no one could win it in the war.
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