Wednesday, June 3, 2020

मेहरानगढ़ का किला(Mehrangarh Fort)

मेहरानगढ़ किले का इतिहास

मेहरानगढ़ किला भारत के प्राचीनतम किलों में से एक है और भारत के समृद्धशाली अतीत का प्रतीक है। यह किला जोधपुर किलों में सबसे बड़े किलों में से एक है। आज हम इसी मेहरानगढ़ किले के बारेमें जानेंगे।
मेहरानगढ़ किले का इतिहास –
मेहरानगढ़ किला राजस्थान के जोधपुर में स्थित है और भारत के विशालतम किलो में इसका समावेश है। इसका निर्माण 1460 में राव जोधा ने किया था, यह किला शहर से 410 फीट की ऊँचाई पर स्थित है और मोटी दीवारों से संलग्नित है। इसकी सीमा के अंदर बहुत सारे पैलेस है जो विशेषतः जटिल नक्काशी और महंगे आँगन के लिये जाने जाते है।




शहर के निचले भाग से ही किले में आने के लिये एक घुमावदार रास्ता भी है। जयपुर के सैनिको द्वारा तोप के गोलों द्वारा किये गये आक्रमण की झलकियाँ आज भी हमें स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। इस किले के बायीं तरफ किरत सिंह सोडा की छत्री है, जो एक सैनिक था और जिसने मेहरानगढ़ किले की रक्षा करते हुए अपनी जान दी थी।
इस किले में कुल सात दरवाजे है, जिनमे जयपाल (अर्थ – जीत) गेट का भी समावेश है, जिसे महाराजा मैन सिंह ने जयपुर और बीकानेर की सेना पर मिली जीत के बाद बनाया था। फत्तेहपाल (अर्थ – जीत) गेट का निर्माण महाराजा अजित सिंह ने मुघलो की हार की याद में बनाया था। किले पर पाए जाने वाले हथेली के निशान आज भी हमें आकर्षित करते है।




मेहरानगढ़ किले का म्यूजियम राजस्थान के बेहतरीन और सबसे प्रसिद्ध म्यूजियम में से एक है। किले के म्यूजियम के एक विभाग में पुराने शाही पालकियो को रखा गया है, जिनमे विस्तृत गुंबददार महाडोल पालकी का भी समावेश है, जिन्हें 1730 में गुजरात के गवर्नर से युद्ध में जीता गया था। यह म्यूजियम हमें राठौर की सेना, पोशाक, चित्र और डेकोरेटेड कमरों की विरासत को भी दर्शाता है।




मेहरानगढ़ किले का इतिहास –
राठौड़ वंश के मुख्य राव जोधा को भारत में जोधपुर के निर्माण का श्रेय दिया जाता है। 1459 में उन्होंने जोधपुर (प्राचीन समय में जोधपुर मारवाड़ के नाम से जाना जाता था) की खोज की थी। रणमल के 24 पुत्रो में से वे एक थे और 15 वे राठौड़ शासक बने। सिंहासन के विलय के एक साल बाद, जोधा ने अपनी राजधानी को जोधपुर की सुरक्षित जगह पर स्थापित करने का निर्णय लिया, क्योकि उनके अनुसार हजारो साल पुराना मंडोर किला उनके लिये ज्यादा सुरक्षित नही था।
भरोसेमंद सहायक राव नारा (राव समरा के बेटे) के साथ, मेवाड़ सेना को मंडोर में ही दबा दिया गया। इसी के साथ राव जोधा ने राव नारा को दीवान का शीर्षक भी दिया। राव नारा की सहायता से 1 मई 1459 को किले के आधार की नीव जोधा द्वारा मंडोर के दक्षिण से 9 किलोमीटर दूर चट्टानी पहाड़ी पर रखी गयी। इस पहाड़ी को भौर्चीरिया, पक्षियों के पहाड़ के नाम से जाना जाता था।




किंवदंतियों के अनुसार, किले ले निर्माण के लिये उन्होंने पहाडियों में मानव निवासियों की जगह को विस्थापित कर दिया था। चीरिया नाथजी नाम के सन्यासी को पक्षियों का भगवान भी कहा जाता था। बाद में चीरिया नाथजी को जब पहाड़ो से चले जाने के लिये जबरदस्ती की गयी तब उन्होंने राव जोधा को शाप देते हुए कहा, “जोधा! हो सकता है कभी तुम्हारे गढ़ में पानी की कमी महसूस होंगी।” राव जोधा सन्यासी के लिए घर बनाकर उन की तुष्टि करने की कोशिश कर रहे थे।
साथ ही सन्यासी के समाधान के लिए उन्होंने किले में गुफा के पास मंदिर भी बनवाए, जिसका उपयोग सन्यासी ध्यान लगाने के लिये करते थे। लेकिन फिर भी उनके शाप का असर आज भी हमें उस क्षेत्र में दिखाई देता है, हर 3 से 4 साल में कभी ना कभी वहाँ पानी की जरुर होती है।
मेहरानगढ़, राजस्थानी भाषा उच्चार के अनुसार, मिहिरगढ़ बदलकर ही बाद में मेहरानगढ़ बन गया, सूर्य देवता ही राठौड़ साम्राज्य के मुख्य देवता थे। किले का निर्माण वास्तविक रूप से 1459 में राव जोधा ने शुरू किया था, जो जोधपुर के निर्माता थे।
जोधपुर में मेवाड़ के जसवंत सिंह (1638-78) के समय के किले आज भी दिखाई देते है। लेकिन मेहरानगढ़ किला शहर के मध्य में बना हुआ है और पहाड़ की ऊँचाई पर 5 किलोमीटर तक फैला हुआ है। इसकी दीवारे 36 मीटर ऊँची और 21 मीटर चौड़ी है, जो राजस्थान के ऐतिहासिक पैलेस और सुंदर किले की रक्षा किये हुए है।




इस किले में कुल सात दरवाजे है। जिनमे से सबसे प्रसिद्ध द्वारो का उल्लेख निचे किया गया है :
• जय पोल (विजय का द्वार), इसका निर्माण महाराजा मान सिंह ने 1806 में जयपुर और बीकानेर पर युद्ध में मिली जीत की ख़ुशी में किया था।
• फ़तेह पोल , इसका निर्माण 1707 में मुगलों पर मिली जीत की ख़ुशी में किया गया।
• डेढ़ कंग्र पोल, जिसे आज भी तोपों से की जाने वाली बमबारी का डर लगा रहता है।
• लोह पोल, यह किले का अंतिम द्वार है जो किले के परिसर के मुख्य भाग में बना हुआ है। इसके बायीं तरफ ही रानियो के हाँथो के निशान है, जिन्होंने 1843 में अपनी पति, महाराजा मान सिंह के अंतिम संस्कार में खुद को कुर्बान कर दिया था।




इस किले के भीतर बहुत से बेहतरीन चित्रित और सजे हुए महल है। जिनमे मोती महल, फूल महल, शीश महल, सिलेह खाना और दौलत खाने का समावेश है। साथ ही किले के म्यूजियम में पालकियो, पोशाको, संगीत वाद्य, शाही पालनो और फर्नीचर को जमा किया हुआ है। किले की दीवारों पर तोपे भी रखी गयी है, जिससे इसकी सुन्दरता को चार चाँद भी लग जाते है।




जय माताजी🙏🙏🙏

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English Translation:-

History of Mehrangarh Fort


Mehrangarh Fort is one of the oldest forts in India and symbolizes the rich past of India. This fort is one of the largest forts in Jodhpur Fort. Today we will learn about this Mehrangarh Fort.

History of Mehrangarh Fort -
Mehrangarh Fort is located in Jodhpur in Rajasthan and is included in India's largest kilo. It was built by Rao Jodha in 1460, this fort is situated at a height of 410 feet from the city and is enclosed by thick walls. There are many palaces inside its border, which are particularly known for intricate carvings and expensive courtyards.

There is also a winding road to the fort from the lower part of the city. Even today, we can clearly see the glimpses of the cannonball attack by the soldiers of Jaipur. To the left of this fort is the chhatri of Kirat Singh Soda, a soldier who gave his life while guarding the Mehrangarh Fort.
This fort has a total of seven gates, including the Jaipal (Earth - Victory) Gate, which was built by Maharaja Man Singh after his victories over Jaipur and Bikaner's army. The Fatehpal (meaning - victory) gate was built by Maharaja Ajit Singh in memory of the defeat of the Mughals. The palm marks found on the fort still attract us today.

The Mehrangarh Fort Museum is one of the finest and most famous museums in Rajasthan. A section of the fort's museum houses the old royal palanquins, including the elaborate domed Mahadol palanquin, which was won by the Governor of Gujarat in 1730 in battle. This museum also shows us the heritage of Rathore's army, dress, paintings and decorated rooms.

History of Mehrangarh Fort -
Rao Jodha, the chief of the Rathore dynasty, is credited with building Jodhpur in India. In 1459, he discovered Jodhpur (formerly known as Jodhpur Marwar). He was one of the 24 sons of Ranmal and 15 became Rathore ruler. A year after the accession to the throne, Jodha decided to establish his capital at a safe place in Jodhpur, because according to him thousands of years old Mandor fort was not safe for him.

With the trusted assistant Rao Nara (son of Rao Samra), the Mewar army was suppressed in Mandore itself. Simultaneously, Rao Jodha also gave the title of Diwan to Rao Nara. On 1 May 1459, the foundation of the fort was laid by Jodha with the help of Rao Nara on a rocky hill 9 km south of Mandore. This hill was known as Bhorchiriya, the mountain of birds.

According to the legend, they displaced the place of human inhabitants in the hills to construct the fort. The monk named Chiriya Nathji was also called Lord of the Birds. Later, when Chiara Nathji was forced to go from the hills, he cursed Rao Jodha and said, "Jodha! There may be a shortage of water in your citadel sometime. ” Rao was trying to appease them by building a house for Jodha Sannyasi.
Along with this, he also built temples near the cave in the fort, which the monks used to meditate. But still the effect of his curse is still visible in that area, every 3 to 4 years, there is a need for water at some time or the other.

Mehrangarh, according to Rajasthani language pronunciation, Mihirgarh changed to later became Mehrangarh, the sun god was the main deity of the Rathore kingdom. The construction of the fort was originally started in 1459 by Rao Jodha, the builder of Jodhpur.

The forts of the time of Jaswant Singh (1638–78) of Mewar in Jodhpur are still visible. But the Mehrangarh Fort is located in the center of the city and extends 5 kilometers at the height of the mountain. Its walls are 36 meters high and 21 meters wide, which protect the historical palace and beautiful fort of Rajasthan.

This fort has a total of seven gates. The most famous of which is mentioned below:
• Jai Pol (Gate of Victory), it was built by Maharaja Man Singh in 1806 to commemorate the victory of the war on Jaipur and Bikaner.

• Fateh Pol, built in 1707 to commemorate the victory over the Mughals.

• One and a half Kangar Pol, which still remains afraid of cannon bombardment.

• Loh Pol, this is the last gate of the fort which is in the main part of the fort complex. On its left side are traces of Hatho of Raniyo, who sacrificed herself in 1843 at the funeral of her husband, Maharaja Man Singh.

Within this fort are many fine painted and decorated palaces. These include Moti Mahal, Phool Mahal, Sheesh Mahal, Sileh Khana and Daulat Khana. Also, palacios, costumes, musical instruments, royal parlance and furniture are stored in the fort's museum. Tope is also placed on the walls of the fort, due to which its beauty is also enhanced by four moons.



Jai Mataji🙏🙏🙏









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