Tuesday, June 9, 2020

आमेर का किला(Amer Fort)

आमेर का किला

जय माताजी🙏🙏🙏
कहां स्थित है :-राजस्थान के जयुपर से करीब 11 किलोमीटर की दूरी पर आमेर में स्थित है।
कब हुआ निर्माण :-16 वीं शताब्दी
किसने करवाया निर्माण :-राजा मानसिंह, सवाई जयसिंह, मिर्जा जयसिंह
आामेर के किले का निर्माण एवं इसका रोचक इतिहास –
हिन्दू- राजपूताना वास्तुशैली से निर्मित आमेर का किला राजस्थान के सबसे बड़े किलों में से एक है, जो कि जयपुर से करीब 11 किलोमीटर की दूरी पर अरावली की पहाड़ियों पर स्थित है। वहीं अगर आमेर के इतिहास और इस किले के निर्माण पर नजर डालें तो यह पता चलता है कि आमेर, पहले सूर्यवंशी कछवाहों की राजधानी रह चुका है, जिसका निर्माण मीनास नामक जनजाति द्धारा करवाया गया था।




इतिहासकारों की माने तो राजस्थान के इस सबसे बड़े आमेर के किले का निर्माण 16 वीं शताब्दी में राजा मानसिंह प्रथम द्धारा करवाया गया था। जिसके बाद करीब 150 सालों तक राजा मानसिंह के उत्तराधिकारियों और शासकों ने इस किले का विस्तार और नवीनीकरण का काम किया था।
इसके बाद सन् 1727 में सवाई जय सिंह द्धितीय शासन ने अपने शासनकाल के दौरान अपनी राजधानी आमेर से जयपुर को बना लिया, उस समय जयपुर की हाल ही में स्थापना की गई थी। आपको बता दें कि जयपुर से पहले कछवाहा राजवंश की राजधानी आमेर ही था। भारत के सबसे प्रचीनतम किलों में से एक आमेर के किले को पहले कदीमी महल के नाम से जाना जाता था, इसके अंदिर शीला माता देवी का मशहूर मंदिर भी स्थित है, जिसका निर्माण राजा मान सिंह द्धारा करवाया गया था।
कुछ लोगों का मानना है कि इस किले का नाम आमेर, भगवान शिव के नाम अंबिकेश्वर पर रखा गया था। जबकि, कुछ लोग आमेर किले के नाम को लेकर को ऐसा मानते हैं कि इस किले का नाम मां दुर्गा का नाम, अंबा से लिया गया है।
राजस्थान के इस सबसे मशहूर और भव्य किले में अलग-अलग शासकों के समय में किले के अंदर कई ऐतिहासिक संरचनाओं को नष्ट भी किया गया तो कई नई शानदार इमारतों का निर्माण किया गया, लेकिन कई आपदाओं और बाधाओं को झेलते हुए भी आज यह आमेर का किला राजस्थान की शान को बढ़ा रहा है एवं गौरवपूर्ण एवं समृद्ध इतिहास की याद दिलवाता है।





आमेर के किले की अनूठी वास्तुकला एवं संरचना –
जयपुर से करीब 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित राजस्थान के इस विशाल किले का निर्माण हिन्दू और राजपुताना शैली द्धारा किया गया है। इस किले को बाहर से देखने पर यह मुगल वास्तुशैली से प्रभावित दिखाई पड़ता है, जबकि अंदर से यह किला राजपूत स्थापत्य शैली में बना हुआ है।
यह किला मुगल और हिन्दू वास्तुशैली का नायाब नमूना है। इस किले के अंदर प्राचीन वास्तुशैली एवं इतिहास के प्रसिद्द एवं साहसी राजपूत शासकों की तस्वीरें भी लगी हुई हैं। इस विशाल किले के अंदर बने ऐतिहासिक महल, उद्यान, जलाशय एवं सुंदर मंदिर इसकी खूबसूरती को दो गुना कर दते हैं।
राजस्थान के आमेर किले में पर्यटक इस किले के पूर्व में बने प्रवेश द्धार से अंदर घुसते हैं, यह द्धार किले का मुख्य द्धार है, जिसे सूरपोल या सूर्य द्धार कहा जाता है, इस द्धार का नाम पूर्व में स्थित सूर्य के उगने से लिया गया है। वहीं इस किले के अंदर दक्षिण में भी एक भव्य द्धार बना हुआ है, जो कि चन्द्रपोल द्धार के नाम से जाना जाता है। इस द्धार के ठीक सामने जलेब चौक बना हुआ है। जहां से सैलानी महल के प्रांगण में प्रवेश करते हैं।
आपको बता दें कि आमेर किले के जलेब चौक का इस्तेमाल पर पहले सेना द्वारा अपने युद्ध के समय को फिर से प्रदर्शित करने के लिए किया गया था, जिसे महिलाएं सिर्फ अपनी खिड़की से देख सकती थी। जलेब चौक से दो तरफ सीढ़ियां दिखाई देती हैं, जिनमें से एक तरफ की सीढि़यां राजपूत राजाओं की कुल देवी शिला माता मंदिर की तरफ जाती हैं।




यह मंदिर इस भव्य किले के गर्भगृह में स्थापित है, जिसका ऐतिहासिक महत्व होने के साथ-साथ अपना अलग धार्मिक महत्व भी है, वहीं जो भी पर्यटक आमेर किले की सैर करने आते हैं, वे इस मंदिर के दर्शन जरूर करते हैं। वहीं इस किले के जलेब चौक से दिखने वाली दूसरी तरफ की सीढ़ियां सिंहपोल द्धवार की तरफ जाती हैं।
वहीं इस द्धार के पास एक बेहद आर्कषक संरचना दीवान-ए-आम बनी हुई है, जहां पहले सम्राटों द्दारा आम जनता के लिए दरबार लगाया जाता था, जिसमें उनकी फरियाद सुनी जाती थी। पीले, लाल बलुआ एवं संगमरमर के पत्थरों से निर्मित इस भव्य किले के दक्षिण की तरफ गणेश पोल द्धवार स्थित है, जो कि इस किला सबसे आर्कषक और सुंदर द्धार है। इस द्धार में बेहतरीन नक्काशी एवं शानदार कारीगिरी की गई है।
वहीं इस द्दार के ऊपर भगवान गणेश जी की एक छोटी सी मूर्ति शोभायमान है, इसलिए आमेर किले के इस द्धार को गणेश द्धार कहा जाता है। शाही ढंग से डिजाइन किए गए राजस्थान के इस सबसे बड़े किले के अंदर जाने पर दीवान-ए-खास, सुख महल, शीश महल समेत कई ऐतिहासिक और बेहद आर्कषक संरचनाएं बनी हुई है। किले की इन संरचनाओं में भी अद्भुत कलाकारी दिखती है।




इसके साथ ही विश्व धरोहर की लिस्ट में शामिल इस भव्य दुर्ग में एक चारबाग शैली से बना हुआ एक खूबसूरत उद्याग भी है, जो कि इस किले की शोभा को अपनी प्राकृतिक छटा बिखेरकर और भी अधिक सुंदर बना रहा है। राजस्थान की यह प्राचीनतम राजपुताना विरासत करीब 2 किलोमीटर लंबे सुरंग मार्ग के माध्यम से जयगढ़ किला से भी जुड़ा हुआ है।
आपातकालीन स्थिति में सम्राटों के परिवारों को जयगढ़ दुर्ग तक पहुंचाने के लिए इस सुरंग का निर्माण किया गया था। इस किले के पास से जयगढ़ दुर्ग और इसके आसपास का बेहद खूबसूरत नजारा दिखाई देता है। राजस्थान के सबसे महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध दुर्गों में से एक आमेर के किले की सुंदरता और भव्यता को देखने हर साल भारी संख्या में पर्यटक आते हैं।
आमेर किले के प्रमुख आर्कषण एवं दर्शनीय स्थल –




दीवान-ए-आम – Diwan-E-Aam
जयपुर की अरावली पहाड़ी पर स्थित इस विशाल दुर्ग के परिसर में बनी ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण संरचनाओं में दीवान-ए-आम बेहद खास है। इसका निर्माण राजा जय सिंह द्धारा किया गया था। दीवान-ए-आम, को आम जनता के लिए बनाया गया था, इस भव्य हॉल में सम्राटों द्धारा आम जनता की समस्याएं सुनी जाती थी और उसका निस्तारण किया जाता है।
इस खास ऐतिहासिक संरचना को शीशे के पच्चीकारी काम के साथ बेहद शानदार नक्काशीदार स्तंभों के साथ बनाया गया है। इस हॉल में बेहद आर्कषक 40 खंभे बने हुए हैं, जिसमें से कुछ संगमरमर के भी हैं, वहीं इस खंभों पर बेशकीमती स्टॉन्स लगे हुए हैं। इस खास ऐतिहासिक इमारत के पत्थरों पर अलग-अलग बेहद सुंदर चित्रों की मूर्तियां खुदी हुई हैं।




सुख निवास – Sukh Niwas
राजस्थान के इस विशाल किले के अंदर बने दीवान-ए-आम के ठीक सामने बेहद सुंदर सुख निवास बना हुआ है, जो कि इस किले के प्रमुख आर्कषणों में से एक है। सुख निवास के दरवाजे चंदन के हैं, जिसे हाथी के दांतो से सजाया गया है।
इतिहासकारों की माने तो इस किले के परिसर में बने सुख निवास में सम्राटों अपनी रानियों के साथ अपना कीमती समय बिताते थे। इसी वजह से इसे सुख निवास के रुप में जाना जाता है। सुख निवास की अद्भुत कलाकारी और बेहतरीन नक्काशी पर्यटकों का ध्यान अपनी तरफ खींचती है।




शीशमहल – Sheesh Mahal Amer Fort
विश्व धरोहर की सूची में शामिल आमेर के इस विशाल किले के अंदर बना शीश महल, यहां के प्रमुख आर्कषणों में से एक है। इस महल को कई सुंदर दर्पणों से मिलकर बनाया गया है। शीश महल को बेहद अनूठे तरीके से निर्मित किया गया है, शीश महल के अंदर जब कुछ प्रकाश की किरण पड़ती है, तब पूरे हॉल में रोशनी हो जाती है। शीश महल की खास बात यह है कि इसे प्रकाशित करने के लिए सिर्फ एक मोमबत्ती की रोश्नी ही काफी है।




गणेश पोल – Ganesh Pol
गणेश पोल, भी आमेर के इस विशाल किले में बनी मुख्य ऐतिहासिक संरचनाओं में से एक है। किले के अंदर बने दीवान-ए-आम के दक्षिण की तरफ गणेश पोल स्थित है। गणेश पोल का निर्माण राजा जय सिंह द्धितीय ने करीब 1611 से 1667 ईसवी के बीच करवाया था।
गणेश पोल, राजस्थान की शान माने जाने वाले इस विशाल दुर्ग के बने 7 बेहद आर्कषक औऱ सुंदर द्धारों में से एक है। इस शानदार द्धार के बारे में ऐसा भी कहा जाता है कि, जब कोई भी सम्राट किसी युद्द को जीतकर आते हैं, किले के इस मुख्य द्धार से प्रवेश करते थे, जहां फूलों की वर्षा के साथ राजाओं का स्वागत किया जाता था।
किले के इस आर्कषक द्दार को बेहद शानदार तरीके से सजाया गया है , इस द्धार में ऊपर के हिस्से में गणेश भगवान की एक छोटी सी मूर्ति स्थापित है, जिसकी वजह से इसे गणेश पोल कहा जाता है।




चांद पोल दरवाजा – Chandpole Darwaza Amer Fort
जयुपर के पास स्थित इस विशाल आमेर दुर्ग में बना चांद पोल दरवाजा भी इस किले की प्रमुख ऐतिहासिक संरचनाओं में से एक माना जाता था। चांद पोल दरवाजा, पहले आम लोगों के प्रवेश के लिए था। यह आर्कषक दरवाजा, इस विशाल किले के पश्चिम की तरफ बना हुआ है, वहीं इस दिशा में चंद्रमा उदय की वजह से इसका नाम चांद पोल रखा गया था।
इस आर्कषक पोल के सबसे ऊपरी मंजिल में नौबतखाना बना था, जिसमें ढोल, नगाड़े एवं तबला समेत कई संगीत एवं वाद्य यंत्र बजाए जाते थे।




दिल आराम बाग – Dalaram Bagh
राजस्थान के इस सबसे विशाल दुर्ग के अंदर बना दिल आराम बाग इस किले की शोभा को और अधिक बढा़ रहा है। इस शानदार बाग का निर्माण करीब 18 वीं सदी में किया गया था। इस रमणीय बाग में सुंदर सरोवर, फव्वारे बनाए गए हैं। दिल आराम बाग की सुंदरता को देखकर हर कोई मंत्रुमुग्ध हो जाता है। इसका रमणीय आर्कषण दिल को सुकून देने वाला है, इसलिए इसका नाम दिल आराम बाग रखा गया है।




देवी शिला माता मंदिर – Shila Mata Mandir (Amber Fort)
राजस्थान के इस विशाल दुर्ग के अंदर एक प्रसिद्ध शिला माता मंदिर स्थित है। इस मंदिर को राज मान सिंह द्धारा बनवाया गया था। इस आर्कषित मंदिर को सफेद संगमरमर के पत्थरों का इस्तेमाल कर बनाया गया है। ऐसा कहा जाता है कि महान राजा मान सिंह इस मंदिर की मूर्ति को बंगला से लेकर आए थे।
जबकि कुछ लोगों का यह भी मानना है कि, केदार राजा ने जब महाराजा मानसिंह से अपनी बेटी की शादी की थी, तब उन्हें साथ में यह मूर्ति भी दी थी। फिलहाल, आमेर किले के परिसर में स्थित इस मंदिर से हजारों श्रद्धालुओं की आस्था जुड़ी हुई है । इस मंदिर के दर्शन के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। ऐसी मान्यता है कि, इस मंदिर में सच्चे मन से मांगी गई भक्तों की सभी मुरादें पूर्ण होती हैं।




दीवान-ए-खास – Diwan E Khas
दीवान-ए-खास भी इस भव्य किले के प्रमुख ऐतिहासिक संरचनाओं और आर्कषणों में से एक है। यह मनोरम संरचना मुख्य रुप से सम्राटों के मेहमानों द्धारा बनवाईं गईं थी, इसमें सम्राट अपने खास मेहमानों एवं दूसरे राजाओं के राजदूतों से मिलते थे।




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English Translation:-

Amer Fort

Jai Mataji🙏🙏🙏

Where it is located: - It is located in Amer, about 11 kilometers from Jaipur, Rajasthan.

When construction took place: -16th century

Who got the construction done: - Raja Mansingh, Sawai Jaisingh, Mirza Jaisingh

The construction of the fort of Amer and its interesting history -
Amer Fort, built in Hindu-Rajputana architecture, is one of the largest forts in Rajasthan, which is situated on the hills of Aravalli, about 11 kilometers from Jaipur. On the other hand, if we look at the history of Amer and the construction of this fort, then it is found that Amer had previously been the capital of the Suryavanshi turtles, which was built by a tribe called Meenas.

According to historians, this largest Amber Fort in Rajasthan was built by King Mansingh I in the 16th century. After which, for about 150 years, the successors and rulers of Raja Mansingh had expanded and renovated this fort.

After this, Sawai Jai Singh Secondary rule made Jaipur from its capital Amber in 1727, during which time Jaipur was recently established. Let me tell you that before Jaipur, the capital of the Kachhwaha dynasty was Amer. One of the oldest forts in India, the Amer Fort, formerly known as Kadimi Mahal, also houses the famous temple of Sheela Mata Devi, which was built by Raja Man Singh.

Some believe that this fort was named after Amber, Lord Shiva, at Ambikeswar. However, some people believe that the name of Amber Fort is derived from the name of Mother Durga, Amba.
In this most famous and grand fort of Rajasthan, during the time of different rulers, many historic structures were destroyed inside the fort, many new magnificent buildings were built, but in spite of many disasters and obstacles, today it is in Amer. The fort is enhancing the pride of Rajasthan and reminds us of a proud and rich history.

Unique Architecture and Structure of Amber Fort -
Situated about 11 km from Jaipur, this huge fort of Rajasthan has been constructed by Hindu and Rajputana style. Looking at this fort from outside, it looks influenced by Mughal architecture, while inside the fort is built in the Rajput architectural style.

This fort is a unique example of Mughal and Hindu architecture. Photos of famous and courageous Rajput rulers of ancient architecture and history are also housed inside this fort. Historical palaces, gardens, reservoirs and beautiful temples built inside this huge fort double its beauty.
In the Amber Fort of Rajasthan, tourists enter from the entrance to the east of this fort, this is the main fort of the fort, called Surpole or Surya Dardhar, the name of this shrine is derived from the rising sun in the east. . At the same time, inside this fort, a grand dhaar is also built in the south, which is known as Chandrapol Dardhar. Jaleb Chowk is built right in front of this gate. From where the tourists enter the courtyard of the palace.

Let me tell you that Jaleb Chowk of Amber Fort was first used by the army to re-display the time of their war, which women could only see from their window. Stairs are visible from Jaleb Chowk on two sides, the staircase on one side leads to the Shila Mata Temple, the total goddess of Rajput kings.
This temple is located in the sanctum sanctorum of this magnificent fort, which has its own historical significance as well as its own religious significance, while all the tourists who come to visit the Amber Fort, definitely visit this temple. At the same time, the staircase on the other side visible from Jaleb Chowk of this fort leads towards Singhpol Dadhwar.

At the same time, there is a very attractive structure near this Dhar, Diwan-i-Aam, where earlier the emperors used to hold a court for the general public, in which their complaint was heard. Ganesh Pol Dadhwar is situated on the south side of this magnificent fort built of yellow, red sandstone and marble stones, which is the most attractive and beautiful fort of this fort. In this dhaar, the finest carvings and superb craftsmanship has been done.

At the same time, a small idol of Lord Ganesha is adorned on top of this gate, so this fort of Amber Fort is called Ganesh Dardhar. Many of the historic and extremely attractive structures, including the Diwan-i-Khas, Sukh Mahal, Sheesh Mahal, remain inside this largest fort of royal designed Rajasthan. These structures of the fort also have amazing artwork.
Along with this, this grand fortress included in the list of World Heritage has a beautiful industry made of a charbagh style, which is making the beauty of this fort even more beautiful by spreading its natural shade. This oldest Rajputana heritage of Rajasthan is also connected to the Jaigad Fort via a tunnel route of about 2 km.

This tunnel was constructed to bring the families of the emperors to Jaigad fort in an emergency. Jaigad fort and the surrounding area are very beautiful from this fort. One of the most important and famous fortifications of Rajasthan, a large number of tourists visit the beauty and grandeur of the Amer Fort.

Major attractions and sightseeing places of Amer Fort -
Diwan-e-Aam -
Diwan-i-Aam is very special among the historical and important structures built in the compound of this huge fort situated on the Aravali hill of Jaipur. It was built by Raja Jai ​​Singh. The Diwan-i-Aam, was built for the general public, in this grand hall, the problems of the general public were heard by the emperors and are resolved.
This special historical structure is made with very finely carved columns with mosaic work of glass. There are 40 very attractive pillars in this hall, some of which are also of marble, while there are precious stones attached to this pillar. Sculptures of different very beautiful paintings are carved on the stones of this special historical building.

Sukh Niwas - 
Inside this huge fort of Rajasthan, there is a very beautiful Sukh Niwas in front of the Diwan-i-Aam, which is one of the main attractions of this fort. The doors of Sukh Niwas are of sandalwood, decorated with elephant teeth.
According to historians, the emperors used to spend their precious time with their queens in the Sukh Niwas built in the premises of this fort. For this reason, it is known as Sukh Niwas. The amazing artwork and exquisite carvings of Sukh Niwas attract the attention of tourists.

Shees-hmahal - Amer Fort
The Sheesh Mahal inside this huge fort of Amer included in the list of World Heritage is one of the major attractions here. This palace is made up of many beautiful mirrors. The Sheesh Mahal has been constructed in a very unique way, when some light rays fall inside the Sheesh Mahal, then the entire hall lights up. The special thing about Sheesh Mahal is that only one candle light is enough to publish it.

Ganesh Pol - 
Ganesh Pol is also one of the main historical structures built in this huge fort of Amer. Ganesh Pol is situated on the south side of Diwan-i-Aam built inside the fort. Ganesh Pol was built by Raja Jai ​​Singh Ddhitiya from about 1611 to 1667 AD.
Ganesh Pol is one of the 7 very attractive and beautiful walls made of this huge fort, which is considered the pride of Rajasthan. It is also said of this magnificent fort, that when any emperor came to win a war, he entered through this main fort of the fort, where kings were welcomed with a rain of flowers.
This archaic gate of the fort is decorated in a very magnificent way, in this top a small statue of Lord Ganesha is installed in the upper part, due to which it is called Ganesh Pol.

 Chand Pol Darwaza - 
The Chand Pol Darwaza in this huge Amer fort located near Jaipur was also considered one of the major historical structures of this fort. The Chand Pol Darwaza was earlier meant for common people to enter. This imposing door is on the west side of this huge fort, while it was named Chand Pol due to the rise of the moon in this direction.
Naubat Khana was built in the top floor of this fascinating pole, in which many music and instruments were played, including dhol, nagade and tabla.

Dil Aram Bagh - 
Dil Aaram Bagh, built inside this largest fort of Rajasthan, is increasing the beauty of this fort. This magnificent garden was built around the 18th century. Beautiful ponds, fountains have been built in this delightful garden. Everyone gets mesmerized by seeing the beauty of Dil Aaram Bagh. Its delightful attractiveness is relaxing the heart, hence it is named Dil Aram Bagh.

Devi Shila Mata Temple - Shila Mata Mandir 
A famous Shila Mata temple is located inside this huge fort of Rajasthan. This temple was built by Raj Man Singh. This arched temple is built using white marble stones. It is said that the great king Man Singh brought the idol of this temple from the bungalow.
While some people also believe that when Kedar Raja married his daughter to Maharaja Mansingh, he also gave this idol to them. Currently, thousands of devotees have their faith attached to this temple located in the premises of Amber Fort. People come from far and wide to visit this temple. It is believed that in this temple, all the wishes of the devotees sought with true mind are fulfilled.

Diwan-e-Khas -
Diwan-i-Khas is also one of the major historical structures and arches of this magnificent fort. This picturesque structure was mainly built by the guests of the emperors, in which the emperors used to meet their special guests and ambassadors of other kings.














Monday, June 8, 2020

नागौर का किला(Nagaur Fort)

नागौर का किला


जय माताजी🙏🙏🙏
नागौर किला नागौर शहर का सबसे महत्वपूर्ण पर्यटक आकर्षण है। नागौर की यात्रा करने वाले पर्यटक इस किले को देखने के लिए जरुर आते हैं। दूसरी शताब्दी में निर्मित यह किला अपनी ऊंची दीवारों और बड़े परिसर के लिए प्रसिद्ध है। दूसरी शताब्दी में नागवंशियों द्वारा निर्मित इस किले को बाद में गज़निवेट्स के गवर्नर मोहम्मद बाहलीम द्वारा पुनर्निर्मित किया गया। आपको बता दें कि नागौर किले में तीन प्रवेश द्वार हैं। यह किला इतना ज्यादा बड़ा है कि इसके अंदर कई महल, फव्वारे, मंदिर और खूबसूरत बगीचे भी स्थित हैं। इस किले की यात्रा करके पर्यटक बेहद आकर्षित होते हैं।




नागौर किले के इतिहास के बारे में बात करें तो बता दें कि इस किले को अहिच्छत्रगढ़ किला भी कहा जाता है। यह दुनिया भर के पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करता है। इस किले का अपना एक अलग ऐतिहासिक महत्त्व है। इस किले का निर्माण मुगल राजा शाहजहाँ और अकबर ने क्षत्रिय शासकों के शासनकाल में करवाया था। लेकिन इसे मूल रूप से नागवंशी क्षत्रियों द्वारा बनाया गया था इसके बाद इसे मोहम्मद बाहलीम द्वारा पुनर्निर्मित किया गया था। यह किला पिछली शताब्दियों में कई लड़ाइयों का गवाह बना है।




नागौर किले के अंदर घूमने लायक आकर्षण स्थल
नागौर किला राजस्थान के प्रमुख किलों में से एक है। इस किले का निर्माण मुगल राजा शाहजहाँ और अकबर द्वारा करवाया गया था। यहां किले के पास मुगल गार्डन और मस्जिदों जैसी मुगलों द्वारा बनाई गई संरचना आज भी अच्छी स्थित में हैं। किले में कई संरचनाये स्थित हैं जिनमें से कुछ खंडहर हैं और कुछ अच्छी स्थित में हैं। किले की प्रमुख संरचनाओं में हाड़ी रानी महल, बखत सिंह पैलेस, दीपक महल, अकबरी महल, अमर सिंह महल के नाम शामिल हैं।




नागौर दुर्ग के अंदर जाने के द्वार –
नागौर किले के अंदर आप आप तीन मुख्य प्रवेश द्वारों के माध्यम से प्रवेश कर सकते हैं। पहला प्रवेश द्वार दुश्मनों को बचाने के लिए एक ऐतिहासिक कारण के लिए बनाया गया था। दूसरे द्वार को “बीच की पोल” और और तीसरे प्रवेश द्वार को “कचेरी पोल” कहा जाता है।
सिरह पोल (मुख्य प्रवेश द्वार): किले का बाहरी द्वार
बीच का पोल (मध्य द्वार): किले में प्रवेश का दूसरा द्वार
कचेरी पोल (कोर्ट गेट): लोगों के लिए न्यायपालिका घर




खिमसर किला –
खिमसर किला राजस्थान का एक ऐतिहासिक किला है जिसका निर्माण 16 वीं शताब्दी में करमसोत वंश के स्वामित्व में, राव करमजी द्वारा किया गया था, जो राव जोधाजी के आठवें पुत्र और जोधपुर के संस्थापक थे। बता दें कि यह किला राजस्थान के नागौर जिले में खिंवसर गांव के पास स्थित है। खिमसर किले की अदभुद सुंदरता के कारण इसे अब एक हेरिटेज होटल में बदल दिया गया है और इसका एक हिस्सा शाही परिवार के वंशजों द्वारा कब्जे में हैं।.



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English Translation:-

Nagaur Fort

Jai Mataji🙏🙏🙏

Nagaur Fort is the most important tourist attraction of the city of Nagaur. Tourists visiting Nagaur definitely come to see this fort. Built in the second century, this fort is famous for its high walls and large complex. Built by the Nagavans in the second century, this fort was later rebuilt by the governor of Ghaznivets, Mohammed Bahalim. Let us know that there are three entrances in Nagaur Fort. This fort is so big that many palaces, fountains, temples and beautiful gardens are also located inside it. Tourists are highly attracted by visiting this fort.




Talking about the history of Nagaur Fort, then tell that this fort is also called Ahichhatragarh Fort. It attracts tourists from all over the world. This fort has its own unique historical significance. This fort was built by the Mughal kings Shah Jahan and Akbar during the reign of the Kshatriya rulers. But it was originally built by the Nagavanshi Kshatriyas after which it was rebuilt by Mohammad Bahalim. This fort has witnessed many battles in the last centuries.
Places to visit inside Nagaur Fort-
Nagaur Fort is one of the major forts of Rajasthan. This fort was built by the Mughal kings Shah Jahan and Akbar. Here the structures built by the Mughals like the Mughal Gardens and Mosques near the fort are still in good condition. Many structures are located in the fort, some of which are ruins and some are in good condition. The major structures of the fort include the names of Hadi Rani Mahal, Bakhat Singh Palace, Deepak Mahal, Akbari Mahal, Amar Singh Mahal.




Gateway inside Nagaur fort-
Inside Nagaur Fort you can enter through three main entrances. The first entrance was built for a historical reason to save enemies. The second gate is called the "middle pole" and the third gateway is called the "Kacheri pole".
Sirah Pol (Main Entrance Gate): The outer gate of the fort Middle pole (middle gate): the second entrance to the fort Kacheri Pol (Court Gate): Judiciary Home for the People



Khimsar Fort -
The Khimsar Fort is a historical fort in Rajasthan that was built in the 16th century by the Karamsot dynasty, Rao Karamji, the eighth son of Rao Jodhaji and the founder of Jodhpur. Let us know that this fort is located near Khinsar village in Nagaur district of Rajasthan. Due to the unique beauty of the Khimsar Fort, it has now been converted into a heritage hotel and a part of it is occupied by the descendants of the royal family.













Sunday, June 7, 2020

जालौर दुर्ग(Jalor Fort)


जालौर दुर्ग


जय माताजी🙏🙏🙏

 कहावत – 
“” आभ फटै, घर ऊलटै, कटै बगतरां कोर’ !
सीस पड़ै, धड़ तड़फड़ै, जद छुटै जालौर”” !!

जालौर का किला पश्चिमी राजस्थान के सबसे प्राचीन और सुदृढ़  दुर्गो में गिना जाता है ! यह सुकड़ी नदी के दाहिने किनारे मारवाड़ की पूर्व राजधानी जोधपुर से लगभग 75 मील दक्षिण में अवस्थित है!

प्राचीन नाम – जाबालिपुर, जालहूर (प्राचीन साहित्य व शिलालेखों के अनुसार)

 निर्माण – इस दुर्ग के निर्माण को लेकर विभिन्न विद्वानों में मतभेद है जिसमें डॉ. दशरथ शर्मा के अनुसार निर्माण नागभट्ट प्रथम ने करवाया !




इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार जालौर दुर्ग निर्माता परमार वंश के शासकों को माना है !
  जालौर दुर्ग का संपूर्ण विस्तृत वर्णन 
 प्राचीन साहित्य और शिलालेखों में इस दुर्ग को जाबालिपुर, जालहूर आदि नामों से अभिहित किया है !
जनश्रुति है कि इसका एक नाम जालंधर भी था जिस विशाल पर्वत शिखर पर यह प्राचीन किला बना है उसे सोनगिरी (स्वर्णगिरि) कनकाचल तथा किले को सोनगढ़ अथवा सोनलगढ़ कहा गया है !
यहां से प्रारंभ होने के कारण ही चौहानों की एक शाखा “सोनगरा” उपनाम से लोक प्रसिद्ध हुई है!
जालौर एक प्राचीन नगर है , ज्ञात इतिहास के अनुसार जालौर और उसका निकटवर्ती इलाका गुर्जर देश का एक भाग था तथा यहां पर प्रतिहार शासकों का वर्चस्व था ! प्रतिहारों के शासनकाल (750 – 1018 ई.) में जालौर एक समृद्धिशाली नगर था!
प्रतिहार नरेश वत्सराज के शासनकाल में 778 ई. में जैन आचार्य उद्योतन सूरी ने जालौर में अपने प्रसिद्ध ग्रंथ कुवलयमाला की रचना की!

 डॉ. दशरथ शर्मा के अनुसार प्रतिहार नरेश नागभट्ट प्रथम ने जालौर में अपनी राजधानी स्थापित की ! उसने (नागपुर प्रथम) ही संभवत: जालौर के इस सुदृढ़ ऐतिहासिक दुर्ग का निर्माण करवाया!
नागभट्ट प्रथम का कथन –
 प्रतिहारों के पश्चात जालौर पर परमारो (पंवारों) का शासन स्थापित हुआ!
इतिहासकार डॉ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने  परमारों को जालौर दुर्ग का निर्माता या संस्थापक माना है!
 परंतु ऐतिहासिक साक्ष्य इस संभावना की ओर संकेत करते हैं कि उन्होंने पहले से विद्यमान व प्रतिहारों द्वारा निर्मित दुर्ग का जीर्णोद्वार या विस्तार करवाया था !




जालौर दुर्ग के तोपखाने से परमार राजा विशल का एक शिलालेख मिला है , जिसमें उसके पूर्ववर्ती परमार राजाओं का नामोल्लेख है!
 विक्रम संवत 1174 (1118 ई.) के शिलालेख में राजा विशल की रानी मेलरदेवी द्वारा सिंधु राजेश्वर के मंदिर पर स्वर्ण कलश चढ़ाने का उल्लेख है !
 जालौर दुर्ग पर विभिन्न कालों में प्रतिहार, परमार, चालूक्य (सोलंकी ), चौहान, राठौड़ , इत्यादि राजपूत राजवंशो ने शासन किया !  वही इस दुर्ग पर दिल्ली के मुस्लिम सुल्तानो,  और मुग़ल बादशाहों तथा अन्य मुस्लिम वंशो का भी अधिकार रहा!
 विशेषकर जालौर के किले के साथ सोनगरा चौहानों की वीरता , शौर्य और बलिदान के जो रोमांचक आख्यान जुड़े हैं वह इतिहास के स्वर्णाक्षरों में उल्लेख करने योग्य है !

नाडोल के चौहानवंशीय युवराज कीर्तिपाल ने जालौर पर अधिकार कर परमारो का वर्चस्व सदा के लिए समाप्त कर दिया ! इस प्रकार कीर्तिपाल  चौहानों की जालौर शाखा का संस्थापक था!
सुंधा पर्वत अभिलेख (वि. सं. 1319) में कीर्तिपाल के लिए “”राजेश्वर”” शब्द का प्रयोग हुआ है,  जो उसकी महत  उपलब्धियों के अनुरूप उचित लगता है!
 कीर्तिपाल के वंशज जालौर के किले सोनलगढ़ व उसकी सोनगिरी पर्वतमाला के का नाम से “”सोनगरे”” चौहान कहलाए तथा बहुत वीर और प्रतापी हुए!




सोनगरो की मारवाड़ में अनेक शाखाएं फैलीं जिनमें नाडोल, मंडोर, बाहड़मेर (बाड़मेर), श्रीमाल (भीनमाल), सत्यपुर (सांचौर) इत्यादि प्रमुख और उल्लेखनीय है !
 सोनगरे चौहानों ने परमारों से किरातकूप (किराडू) भी छीन लिया!
सोनगिरी पर्वतमाला पर बना जालौर का किला गिरी दुर्ग  (पहाड़ी दुर्ग) है
सुंधा पर्वत शिलालेख से पता चलता है कि समर सिंह ने जालौर के कनकाचल अथवा स्वर्णगिरी को चतुर्दिक विशाल और उन्नत प्राचीर से सुरक्षित किया है!

जालौर के किले की दुर्जेय स्थिति को देखकर “ताज उल मासिर” का लेखक हसन निजामी उस पर मुग्ध हो गया !
 उसने लिखा है कि जालौर बहुत ही शक्तिशाली अजेय दुर्ग है जिसके द्वार कभी भी किसी विजेता द्वारा नहीं खोले गए चाहे कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो!
जालौर के किले को दूर्भेद्य रुप प्रदान करने वाला समर सिंह एक विजेता और निर्माता होने के साथ ही कुशल कूटनीतिज्ञ भी था उसने गुजरात के शक्तिशाली चालुक्य नरेश भीमदेव द्वितीय के साथ अपनी राजकुमारी लीला देवी का विवाह कर दिया!

सुंधा अभिलेख में समर सिंह की कला के सरंक्षक और विद्वानों के आश्रयदाता के रुप में महती प्रशंसा की गई है !
समर सिंह का उत्तराधिकारी उदय सिंह जालोर की सोनगरा चौहान शाखा का सबसे पराक्रमी और यशस्वी शासक हुआ है!
उसने अनेक विजय अभियानों के द्वारा न केवल सुदूर प्रदेशों तक अपने राज्य का विस्तार किया अपितु गुलाम वंश के शक्तिशाली सुल्तान इल्तुतमिश का भी सफलतापूर्वक प्रतिरोध किया!
सुंधा शिलालेख में उदय सिंह को तुर्को का मान मर्दन करने वाला कहा गया है!
इतिहासकार डॉ. दशरथ शर्मा ने उदयसिंह को जालोर की सोनगरा चौहान शाखा का सर्वाधिक योग्य और प्रतापी शासक कहां है! 
वह लिखते हैं कि जिस समय शक्तिशाली मुस्लिम आक्रमणों के सामने अन्य हिंदू राज्य ताश के पत्तों की तरह बिखर रहे थे और सपादलक्ष व नाडोल के चौहान राज्य नेस्तनाबूद हो गए थे,  उनसे लगभग 25 वर्ष पहले उद्भुत जालौर राज्य विपरीत परिस्थितियों में भी गौरव की ओर अग्रसर था ! उदय सिंह स्वयं कला और साहित्य का मर्मज्ञ व विद्वानों का आश्रयदाता था ! उसका मंत्री “यशोवीर” भी बहुत विद्वान था!




सारत: – जालौर उदय सिंह के शासनकाल में अपना विस्तार और वैभव की पराकाष्ठा पर पहुंचा!
 दिल्ली के सर्वाधिक शक्तिशाली और साम्राज्यवादी सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के ने रणथंबोर और चित्तौड़ विजय के बाद मारवाड़ को अपने आक्रमणों का लक्ष्य बनाया!
 जालोर पर आक्रमण उसके आक्रमण का एक प्रमुख कारण यह भी था कि सन् 1298 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने  गुजरात विजय करने और वहां के प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर को ध्वस्त करने के लिए अपने सेनानायकों उलुग खां और नुसरत खां के अधीन जो विशाल सेना वहां भेजी उसे वीर कान्हड़देव (तब युवराज) ने अपने जालौर राज्य से होकर गुजरने की अनुमति नहीं दी और फलत: उसे मेवाड़ होकर जाना पड़ा इतना ही नहीं गुजरात अभियान से जालौर होकर वापस लौटती शाही सेना को कान्हड़देव के सैनिकों ने परेशान किया तथा बहुत सारा लूट का माल और सोमनाथ की खंडित प्रतिमा के हिस्से मुस्लिम सैनिकों से छीन लिए !

अंत: अलाउद्दीन खिलजी की साम्राज्यवादी महत्वकांक्षा और कान्हड़देव को सबक सिखाने की इच्छा उसके जालौर आक्रमण का कारण बनी!
अलाउद्दीन ने पहले ही सिवाना के किले पर जोरदार आक्रमण कर उस पर अपना अधिकार स्थापित किया जहां कान्हड़देव का भतीजा सातल देव दूर्ग की रक्षा करता हुआ अपने सहयोगी योद्धाओं सहित वीरगति को प्राप्त हुआ!
तदनन्तर अलाउद्दीन ने जालौर दुर्ग को अपना लक्ष्य बनाया उसने अपने सर्वाधिक योग्य सेनापति कमालुद्दीन गुर्ग को जालोर अभियान की बागडोर सौंपी खिलजी सेना ने जालौर के किले को चारों ओर से घेर लिया!
जालौर का यह घेरा लम्बे अरसे तक चला!

कान्हड़देव प्रबंध के अनुसार कमालुद्दीन ने किले की एक ऐसी घेराबंदी की कि ना तो कोई व्यक्ति भीतर से बाहर आ सकता था और ना ही किले के भीतर रसद या शस्त्र आदि पहुंचना संभव था, दीर्घकालिक घेरे के कारण किले के भीतर खाद्य सामग्री का अभाव होता चला गया ! संकट की इस घड़ी में बिका दहिया राजपूत सरदार ने विश्वासघात किया और शत्रु सेना को किले के भीतर पहुंचने का गुप्त मार्ग बता दिया !
वीरशिरोमणि कान्हड़देव ने अपने राजकुमार वीरमदेव और विश्वस्त योद्धाओं के साथ अलाउद्दीन की सेना के साथ घमासान युद्ध करते हुए वीरगति प्राप्त की और किले के भीतर सैकड़ों ललनाओ ने जौहर का अनुष्ठान किया! तब कहीं जाकर 1311-12 ई. में लगभग अलाउद्दीन खिलजी का जालौर पर अधिकार हों सका!

 कवि पद्मनाभ के ऐतिहासिक काव्य “कान्हड़देव प्रबंध” तथा “वीरमदेव सोनगरा री बात” नामक कृतियों में जालौर के किले पर लड़े गये इस घमासान युद्ध का विस्तृत और रोमांचक वर्णन हुआ है!
यथा :-
ऊपरि थकी ढीकुली ढालइ, लोढीगड़ा विछूटइ !
हाथी घोडउ आडइ आवइ, तेहमरइ अणषूटइ!!
यंत्र मगरती गोलानाषइ, द्रू सांधि सूत्रहार!
जिहां पडइ तिहां तरुअर भांजइ, पडतउ करहि संहार!!

कान्हड़देव के साथ ही जालौर से अतुल पराक्रमी और यशस्वी सोनगरा चौहानों का वर्चस्व समाप्त हो गया ! इसके साथ ही वीरता और शौर्य के एक स्वर्णिम युग का अवसान हो गया!
तदनन्तर जालौर पर मुसलमानों का आधिपत्य रहा!  जोधपुर के राव गांगा के शासनकाल में राठौड़ो ने जालौर पर चढ़ाई की!

 जालौर के अधिपति मलिक अलीशेर खां ने चार दिन तक राठौड़ सेना का मुकाबला किया तथा यह आक्रमण विफल हो गया । तत्पश्चात राव मालदेव ने जालोर पर आक्रमण कर उस पर अपना अधिकार कर लिया । लेकिन मालदेव की मृत्यु होते ही बिहारी पठानो ने जालौर राठौड़ों से छीन लिया । इसके बाद जोधपुर के महाराजा गज सिंह ने 1607 ई.  के लगभग जालोर पर आक्रमण कर उसे बिहारी पठानों से जीत लिया । तत्पश्चात जब जोधपुर की गद्दी के लिए भीमसिंह और मानसिंह के बीच उत्तराधिकार का संघर्ष चला तब अपने संकट काल में महाराजा मानसिंह ने इसी दुर्ग में आश्रय लिया था तथा अपने बड़े भाई व जोधपुर के महाराजा भीमसिंह के इस का कि वे जालौर का दुर्ग खाली कर जोधपुर आ जाए, उन्होंने जो वीरोचित उत्तर दिया। वह लोक में आज भी प्रेरक वचन के रूप में याद दिलाता है।

आभ फटै घर ऊलटै कटै बगतरां कोर’
सीस पड़ै धड़ तड़फड़ै जद छुटै जालौर””

 मारवाड़ और गुजरात की सीमा पर बने जालौर दुर्ग को अपनी सामरिक स्थिति के कारण प्राचीन काल से ही आक्रांताओं के भीषण प्रहार झेलने पड़े । विभिन्न कालों में इस किले पर दुर्धर्ष एवं घमासान युद्ध लड़े गए किंतु अपने दुर्भेद्य स्वरूप और सुंदृढ़ता के कारण कभी भी किले का आसानी से पतन नहीं हुआ!




विशेषता:-
 स्वर्णगिरी पर्वतमाला पर बना जालौर का किला गिरी दुर्ग का सुंदर उदाहरण है ! क्षेत्रफल की दृष्टि से 800 सौ गज लंबा और 400 गज चौड़ा है ! आसपास की भूमि से यह लगभग 1200 फीट ऊंचा है ! जालौर दुर्ग का स्थापत्य की प्रमुख विशेषता यह है कि इसकी उन्नत प्राचीर ने अपनी विशाल बुर्जों सहित समुचि पर्वतमाला को अपने मे यो समाविष्ट कर लिया है कि इससे किले की सही स्थिति और रचना के बारे में बाहर से कुछ पता नहीं चलता , जिससे शत्रु भ्रम में पड़ जाता है !

जालौर दुर्ग के भीतर जाने के लिए मुख्य मार्ग शहर के भीतर से है, जो टेढ़ा-मेड़ा व घुमावदार हैं! तथा लगभग 5 km. लम्बा है ! सर्पिलाकार प्राचीर से गुम्फित इस मार्ग में  “सूरजपोल” किले का प्रथम प्रवेश द्वार है ! जिसकी धनुषाकार छत का स्थापत्य अपने से शिल्प और सौंदर्य के साथ सामरिक सुरक्षा की आवश्यकता का सुंदर समावेश किए हुए हैं ! यह प्रवेश द्वार एक सुदृढ़ दीवार से इस प्रकार आवृत है कि आक्रांता शत्रु प्रवेश द्वार को अपना निशाना नहीं बना सकें ! इसके पार्श्व में एक विशाल बुर्ज बनी है ! दुर्ग का दूसरा प्रवेश द्वार “ध्रुवपोल” तीसरा “चांदपोल” और चतुर्थ “सिरेपोल” भी बहुत मजबूत और विशाल है!

दुर्ग के ऐतिहासिक स्थल :-
 जालौर दुर्ग के ऐतिहासिक स्थलों में मानसिंह के महल और झरोखें, दो मंजिला रानी महल, प्राचीन जैन मंदिर, चामुंडा माता और जोगमाया के मंदिर, दहियो की पोल, संत मलिकशाह की दरगाह प्रमुख और उल्लेखनीय है!
 किले में स्थित परमार कालीन कीर्तिस्तंभ कला का उत्कृष्ट नमूना हैं !

जालौर के किले का तोपखाना बहुत सुंदर और आकर्षक है , जिसके विषय में कहा जाता है कि यह परमार राजा भोज द्वारा निर्मित संस्कृत पाठशाला थी जो कालांतर में दुर्ग के मुस्लिम अधिपतियों द्वारा मस्जिद में परिवर्तित कर दी गई तथा तोपखाना मस्जिद कहलाने लगा !
अजमेर में निर्मित भव्य संस्कृत पाठशाला की भी वही गति हुई तथा सम्प्रति वह भी अढा़ई दिन का झोपड़ा कहलाती है!

 पहाड़ी के शिखर भाग पर निर्मित वीरमदेव की चौकी उस अप्रतिम वीर की यशोगाथा को संजोए हुए हैं
किले के भीतर जाबालिकुंड,  सोहनबाव सहित अनेक जलाश्य और विशाल बावड़ियां जलापूर्ति के मुख्य स्रोत है!
दुर्ग के भीतर अन्नभंडार, सैनिकों के आवास गृह, अश्वशाला इत्यादि भवन भी बने हुए हैं !
कान्हड़देव प्रबंध में जालौर के इस प्राचीन किले को एक विषम और दुर्भेद्य दुर्ग बताते हुए उसकी तुलना चित्तोड़ चंपानेर ग्वालियर आदि प्रसिद्ध दुर्गों से की गई है!

यथा कथन:-
कणयाचल जगि जाणीइ, ठांम तणंउ जावालि!
तहीं लगइ जगिजालहुर, जण जंपइ इण कालि!!
विषम दुर्ग सुणिइ घणा, इसिउ नहीं आसेर!
जिसउ जालहुर जाणीइ, तिसउ नहीं ग्वालेर!!
चित्रकूट तिसंउ नहीं, तिसउ नहीं चांपानेर!
जिसउ जालहुर जाणीइ तिसहु नहीं भांमेर!!

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English Translation:-

Jalor Fort



Jai Mataji

The Fort of Jalore is counted among the oldest and fortified fortifications in western Rajasthan! It is located about 75 miles south of Jodhpur, the former capital of Marwar, on the right bank of the Sukri River!

Ancient name - Jabalipur, Jalhur (according to ancient literature and inscriptions)

 Construction - There is a difference of opinion among the various scholars regarding the construction of this fort, in which Nagabhatta I, according to Dr. Dashrath Sharma, got the construction done!

According to historian Gaurishankar Hirachand Ojha, the makers of Jalore Fort have considered the rulers of the Paramara dynasty!
  Complete detailed description of Jalore Fort
 In ancient literature and inscriptions, this fort has been named by the names of Jabalipur, Jallhur etc.
It is known that Jalandhar also had a name, the huge mountain peak on which this ancient fort is built, it is called Sonagiri (Swarnagiri) Kanakachal and the fort is called Songarh or Sonalgarh!
Due to its origin from here, a branch of Chauhans has become famous with the nickname "Sonagra"!
Jalore is an ancient city, according to known history, Jalore and its adjacent area was a part of Gurjar country and was dominated by Pratihara rulers! Jalore was a prosperous city during the reign of Pratiharas (750 - 1018 AD).
In the reign of Pratihara Naresh Vatsaraja in 778 AD Jain Acharya Udyotan Suri composed his famous book Kuvalayamala in Jalore!

 According to Dr. Dasharatha Sharma, Pratihara Naresh Nagabhatta I established his capital at Jalore. He (Nagpur first) probably built this strong historical fort of Jalore.
Narration of Nagabhatta I -
 After the Pratiharas, the rule of Parmaro (Panwaras) was established over Jalore.
Historian Dr. Gaurishankar Hirachand Ojha has considered the Paramaras as the creators or founders of the Jalore Fort.
 But historical evidence indicates the possibility that they had already renovated or expanded the fort built by the existing and Pratiharas!

The artillery of the Jalore fort has an inscription of the Paramara king Vishal, which bears the name of his predecessor Paramara kings!
 The inscription of Vikram Samvat 1174 (1118 AD) mentions the offering of a golden urn to the temple of Indus Rajeshwar by Queen Melaradevi of King Vishal!
 The Jalore fort was ruled by the Rajput dynasties of Pratihara, Parmar, Chalukya (Solanki), Chauhan, Rathore, etc. in various periods. The same Muslim fortress of Delhi, and Mughal emperors and other Muslim dynasties also held this fort.
 The thrilling narratives of valor, valor and sacrifice of the Sonagara Chauhans, especially with the fort of Jalore, are worth mentioning in the golden letters of history!

Kauratipal, the Chauhan dynasty of Nadol, took over Jalore and ended the supremacy of Parmaro forever! Thus Kirtipal was the founder of the Jalore branch of Chauhans!
The term "Rajeshwar" has been used for Kirtipal in the Sundha Parbat inscription (v. No. 1319), which seems appropriate according to his great achievements!
 The descendants of Kirtipal were called "Songere" Chauhan by the name of Fort Sonalgarh of Jalore and its Sonagiri ranges and became very brave and majestic!

Many branches spread in Marwar of Sonagaro, among which Nadol, Mandore, Bahadmer (Barmer), Srimal (Bhinmal), Satyapur (Sanchore) etc. are prominent and notable!
 Sonegre Chauhans also snatched the Kirtakup (Kiradu) from the Paramaras!
The fort of Jalore built on the Sonegiri ranges is Giri Durg (hill fort).
The Sundha mountain inscription shows that Samar Singh protected Kanakachal or Swarnagiri of Jalore with a huge and advanced ramparts!

Seeing the formidable condition of the fort of Jalore, the author of "Taj ul Masir", Hassan Nizami, was enchanted by him!
 He has written that Jalore is a very powerful invincible fort, whose gates were never opened by any conqueror, no matter how powerful!
Samar Singh, who gave the impoverished appearance of the fort of Jalore, was a winner and builder, as well as a skilled diplomat, he married his princess Leela Devi to the mighty Chalukya King Bhimdev II of Gujarat!

In the inscription, Samar Singh has been praised greatly as a patron of art and as a harbinger of scholars!
The successor of Samar Singh, Uday Singh has become the most powerful and famous ruler of the Sonagara Chauhan branch of Jalore!
Through numerous conquests, he not only expanded his kingdom to the far-flung territories, but also successfully resisted the powerful Sultan Iltutmish of the slave dynasty!
Uday Singh has been described in the inscription as a murderer of Turko!
Historian Dr. Dasharatha Sharma told Uday Singh, where is the most capable and powerful ruler of Sonegra Chauhan branch of Jalore!
He writes that at the time when the powerful Muslim invasions were disintegrating in the face of other Hindu kingdoms, and the Chauhan kingdom of Sapadalaksha and Nadol became decimated, the Jalore state, arising about 25 years before that, led to glory even under adverse circumstances. Was! Uday Singh himself was a penetrator of art and literature and a harbinger of scholars! His minister "Yashovir" was also a great scholar!

In essence - Jalore reached its heights of expansion and glory during the reign of Uday Singh!
 Alauddin Khilji, the most powerful and imperialist Sultan of Delhi, made Marwar the target of his invasions after the conquests of Ranthambore and Chittor!
 The invasion of Jalore was also a major reason for his invasion that in 1298 AD, Alauddin Khilji sent a large army under his generals Ulugh Khan and Nusrat Khan to conquer Gujarat and demolish the famous Somnath temple there. Veer Kanhardev (then crown prince) did not allow his kingdom to pass through Jalore and consequently he had to go through Mewar. Not only that, the royal army returning from Jalore to Jalore was disturbed by Kanhaddev's soldiers and a lot of loot. And snatched away the fragmented statue of Somnath from Muslim soldiers!

Ultimately, the imperial ambition of Alauddin Khilji and his desire to teach a lesson to Kanhaddev led to his Jalore invasion!
Alauddin had already vigorously attacked the fort of Sewana and established his authority over it, where Kanhardev's nephew Satal Dev, along with his fellow warriors, protecting Viragati got to Durga!
Subsequently, Alauddin made Jalore Durg his target. He handed over the reins of Jalore expedition to his most capable commander Kamaluddin Gurg, the Khilji army surrounded the fort of Jalore.
This enclosure of Jalore lasted for a long time!

According to Kanhaddev management, Kamaluddin laid such a siege of the fort that neither a person could come out from within nor was it possible to reach the fort with logistics or weapons, etc. Due to long-term encirclement, there was a lack of food items within the fort. Gone ! In this hour of crisis, the Dahiya Rajput Sardar betrayed and told the enemy army the secret path to reach inside the fort!
Veerashiromani Kanhaddev, with his prince Veeramdev and trusted warriors, fought in a fierce battle with Alauddin's army, and hundreds of lalnas performed jauhar rituals within the fort! Then somewhere in 1311-12 AD, almost Alauddin Khilji could have authority over Jalore!

 The poetic Padmanabha's historical poems, "Kanhardev Prabandha" and "Veeramdev Sonagara Ri Baat" have detailed and exciting description of this fierce battle fought at the fort of Jalore.

Along with Kanhaddev, the domination of Atul mighty and famous Sonagara Chauhans from Jalore ended. With this, a golden age of valor and valor expired.
Subsequently, Muslims dominated Jalore. During the reign of Rao Ganga of Jodhpur, Rathodors invaded Jalore.

 Malik Alisher Khan, the governor of Jalore, fought the Rathore army for four days and this attack failed. After that Rao Maldev attacked Jalore and took possession of it. But after Maldev's death, Bihari Pathano snatched it from Jalore Rathore. After this, Maharaja Gaj Singh of Jodhpur attacked Jalore around 1607 AD and conquered it from the Bihari Pathans. After that when the succession struggle between Bhimsingh and Mansingh for the throne of Jodhpur took place, then in his distress, Maharaja Mansingh took shelter in this fort and that of his elder brother and Maharaja Bhimsingh of Jodhpur, that he should vacate the fort of Jalore. Come, the heroic answer he gave. He reminds people even today as a motivational word.

Jalore fort built on the border of Marwar and Gujarat, due to its strategic position, has suffered severe attacks from invaders since ancient times. In various periods bad and fierce battles were fought at this fort, but the fort never fell easily due to its impregnable nature and beauty!

Specialty:-
 The fort of Jalore built on the Swarnagiri ranges is a beautiful example of the Giri fort. In terms of area is 800 hundred yards long and 400 yards wide! It is about 1200 feet high from the surrounding land! The main feature of the architecture of Jalore Fort is that its advanced ramparts have incorporated the entire ranges including their huge bastions into themselves so that it does not reveal anything about the exact position and construction of the fort from outside, which makes the enemy in confusion It falls

The main route to get inside the Jalore Fort is from within the city, which are zigzag and curved! And about 5 km. Is long The "Surajpole" is the first entrance to the fort in this passage, enchanted by the spiral ramparts! Whose arched roof architecture has beautifully incorporated the need for strategic protection with craft and beauty! This entrance is covered with a strong wall in such a way that the invading enemies cannot target the entrance! A huge turret is built on its side! The second entrance of the fort is the "Dhruvpole", the third "Chandpole" and the fourth "Sirepole" is also very strong and huge!

Durg historical sites: -
 The historical sites of Jalore Fort include Mansingh's palace and Jharokhon, two-storey Rani Mahal, ancient Jain temples, Chamunda Mata and Jogmaya temples, Dahiyo ki Pol, Saint Malik Shah's Dargah are prominent and notable!
 The Parmar Carpets located in the fort are excellent specimens of Kirtistambha art!

The artillery of the fort of Jalore is very beautiful and attractive, about which it is said that it was a Sanskrit school built by Parmar Raja Bhoj which was later converted into a mosque by the Muslim overlords of the fort and started to be called Topkhana Masjid!
The grand Sanskrit school built in Ajmer also got the same pace and at present it is also called the half day hut!

 Veeram Dev's outpost built on the top of the hill is decorated with the Yashogatha of that great hero.
Many water reservoirs and huge stepwells are the main sources of water supply, including the Jabalikund, Sohanbavo within the fort!
Within the fort, there are also buildings like granaries, soldiers' houses, horse sheds etc.
In Kanhardev Prabandha, this ancient fort of Jalore has been compared to the famous fortifications like Chittor Champaner Gwalior, while describing this ancient fort as an anomalous and impregnable fort!