Saturday, June 20, 2020

चंपानेर(Champaner)

चंपानेर

जय माताजी🙏🙏🙏

चंपानेर भारत के गुजरात राज्य के पंचमहाल ज़िले में स्थित एक नगर है।





चंपानेर गुजरात में बड़ौदा से 21 मील (लगभग 19.2 कि.मी.) और गोधरा से 25 मील (लगभग 40 कि.मी.) की दूरी पर स्थित है। यह गुजरात की मध्ययुगीन राजधानी थी। चांपानेर, जिसका मूल नाम 'चंपानगर' या 'चंपानेर' भी था, की जगह वर्तमान समय में पावागढ़ नामक नगर बसा हुआ है। यहाँ से चांपानेर रोड स्टेशन 12 मील (लगभग 19.2 कि.मी.) है। इस नगर को जैन धर्म ग्रन्थों में तीर्थ स्थल माना गया है। जैन ग्रन्थ 'तीर्थमाला चैत्यवदंन' में चांपानेर का नामोल्लेख है- 'चंपानेरक धर्मचक्र मथुराऽयोध्या प्रतिष्ठानके -।' पावागढ़ पहाड़ी के शिखर पर बना कालिका माता मंदिर पावन स्थल माना जाता है। पहाड़ी पर बना यह काली मंदिर बहुत प्राचीन है। कहा जाता है कि विश्वामित्र ने उसकी स्थापना की थी। इन्हीं ऋषि के नाम से इस पहाड़ी से निकलने वाली नदी 'विश्वामित्री' कहलाती है। महदजी सिंधिया ने पहाड़ी की चोटी पर पहुँचने के लिए सीढ़ियाँ बनवाईं थीं। चांपानेर तक पहुँचने के लिए सात दरवाजों में से होकर जाना पड़ता है। यहां वर्षपर्यन्त बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।




चांपानेर का इतिहास 

चंपानेर की स्थापना चावड़ा वंश के राजा वनराज चावड़ा ने की थी। उनके एक मंत्री का नाम चंपाराज था, जिसके नाम पर इस जगह का नामकरण हुआ। कुछ लोगों का मानना है कि चंपानेर नाम ‘चंपक’ फूल के कारण पड़ा है, क्योंकि इस क्षेत्र के पाए जाने वाले आग के चट्टानों में भी फूलों की तरह ही पीलापन देखने को मिलता है। चंपानेर के ठीक ऊपर बने पावागढ़ किले को खिची चौहान राजपूतों द्वारा बनवाया गया था। बाद में इसपर महमूद बेगड़ा ने कब्जा कर लिया। महमूद बेगड़ा ने इसे अपनी राजधानी बनाया। उन्होंने इसका नाम महमूदाबाद रखा और इस शहर के पुननिर्माण और सजावट के लिए यहां 23 साल गुजारे। बाद में मुगलकाल के दौरान अहमदाबाद को राजधानी बनाया गया, जिससे चंपानेर का गौरव और महत्व खो गया। कई सालों तक तो यह जंगल का हिस्सा रहा। 




हालांकि बाद में जब अंग्रेजों ने सर्वे कराया तो चंपानेर का खोया गौरव फिर से वापस आ गया। शहर की उत्कृष्ट वास्तुशिल्पीय खूबसूरती को देखने के लिए बड़ी संख्या में यहां लोग आते हैं। चंपानेर और आसपास के पर्यटन स्थल चंपानेर में घूमने के लिए बहुत कुछ है। यहां आप चंपानेर की मस्जिदें, सिकंदर शाह का कब्र, हलोल, सकर खान दरगाह, मकाई कोठार/नवलखा कोठार, किला, हेलीकल बावली, ईंट का मकबरा और पावागढ़ किला देख सकते हैं। इसके अलावा यहां के प्रचीन मंदिर, किले की दीवारें, जांबुघोड़ा वन्यजीव अभ्यारण्य, केवड़ी ईको कैंपसाइट और धानपरी ईको कैंपसाइट भी काफी महत्वपूर्ण है। पावागढ़ किला की दीवारों के कुछ हिस्सों का अस्तित्व आज भी है। चंपानेर वड़ोदरा से सिर्फ 45 किमी दूर है, जिससे बस और दूसरे वाहनों से यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। 2004 में चंपानेर को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था।





मुग़लों का अधिकार

1535 ई. में मुग़ल बादशाह हुमायूँ ने चांपानेर दुर्ग पर अधिकार कर लिया, पर यह आधिपत्य धीरे-धीरे शिथिल होने लगा और 1573 ई. में अकबर को नगर का घेरा डालना पड़ा और उसने फिर से इसे हस्तगत कर लिया। इस प्रकार संघर्षमय अस्तित्व के साथ चांपानेर मुग़लों के कब्जे में प्राय: 150 वर्षों तक रहा। 1729 ई. में सिंधिया का यहाँ अधिकार हो गया और 1853 ई. में अंग्रेज़ों ने सिंधिया से इसे लेकर बंबई (वर्तमान मुम्बई) प्रांत में मिला दिया। वर्तमान चांपानेर मुस्लिमों द्वारा बसाई गई बस्ती है। राजपूतों के समय का चांपानेर यहाँ से कुछ दूर है।






कालिका माता मंदिर चंपानेर पावागढ़ –




चंपानेर-पावागढ़ पुरातात्विक पार्क के दर्शनीय स्थलों में पार्क के निकट ही यहाँ का सबसे पुराना और सबसे प्रसिद्ध कालिका माता मंदिर स्थित है। मंदिर तक पहुँचने के लिए सीढ़ियों का लम्बा सफ़र तय करना पड़ता हैं। क्योंकि यहाँ के जंगलो के बीच मंदिर बहुत ऊंचाई पर स्थित हैं। पर्यटक जैसे ही मंदिर में प्रवेश करते हैं उन्हें मंदिर के तीनो प्रमुख देवताओं के दर्शन प्राप्त होते हैं। सभी मूर्तियों के बीचों बीच कलिका माता की मूर्ती बाई ओर बहुचरमाता की मूर्ती और दाई ओर देवी काली का आकर्षण हैं।

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English Translation:-

Champaner

Jai Mataji🙏🙏🙏

Champaner is a city located in the Panchmahal district of the Indian state of Gujarat.

Champaner is located 21 miles (about 19.2 km) from Baroda in Gujarat and 25 miles (about 40 km) from Godhra. It was the medieval capital of Gujarat. Champaner, which was originally named 'Champanagar' or 'Champaner', is replaced by a city called Pavagadh at the present time. The Champaner Road station is 12 miles (19.2 km) from here. This city is considered as a pilgrimage site in the Jain scriptures. In the Jain text 'Teerthamala Chaityavadan', Champaner is named - 'Champanerk Dharmachakra Mathurayodhya Pratishthan -.' The Kalika Mata Temple built on the summit of Pavagadh hill is considered a holy place. This Kali temple built on the hill is very ancient. Vishwamitra is said to have founded it. The river originating from this hill in the name of these sages is called 'Vishvamitri'. Mahdji Scindia had built stairs to reach the top of the hill. To reach Champaner one has to go through seven gates. A large number of devotees visit the place year after year.

History of Champaner

Champaner was founded by King Vanraj Chavda of the Chavada dynasty. One of his ministers was named Champaraja, after whom the place was named. Some people believe that the name Champaner is derived from the flower 'Champak', because the fire rocks found in this area also have yellowish appearance like flowers. The Pavagadh fort built just above Champaner was built by the Khichi Chauhan Rajputs. Later Mahmud Begada captured it. Mahmud Begada made it his capital. He named it Mahmudabad and spent 23 years here for the reconstruction and decoration of this city. Ahmedabad was later made the capital during the Mughal period, losing the pride and importance of Champaner. For many years it was part of the forest.

However, when the British conducted the survey later, the lost glory of Champaner returned again. People come here in large numbers to see the city's architectural excellence. Tourist places in and around Champaner Champaner has much to offer. Here you can see the mosques of Champaner, the tomb of Sikandar Shah, Halol, Sakar Khan Dargah, Makai Kothar / Navlakha Kothar, Fort, Helical Baoli, Brick Tomb and Pavagad Fort. Apart from this, ancient temples, fort walls, Jambughoda Wildlife Sanctuary, Kevadi eco campsite and Dhanpari eco campsite are also important here. Parts of the walls of Pavagadh Fort still exist today. Champaner is just 45 km from Vadodara, making it easily accessible by bus and other vehicles. In 2004, Champaner was declared a UNESCO World Heritage Site.

Mughal authority

In 1535 AD, the Mughal emperor Humayun took over the Champaner fort, but this suzerainty gradually began to subside and in 1573 AD Akbar had to encircle the city and he annexed it again. Thus with a struggling existence, Champaner remained in the possession of the Mughals for 150 years. Scindia gained authority here in 1729 AD and in 1853 AD the British took it from Scindia and merged it with Bombay (present-day Mumbai) province. The present Champaner is a settlement inhabited by Muslims. The Champaner of the Rajput times is far from here.


Kalika Mata Temple Champaner Pavagadh -

Among the scenic spots of Champaner-Pavagadh Archaeological Park, the oldest and most famous Kalika Mata Temple is situated near the park. To reach the temple, a long journey of stairs has to be fixed. Because the temples are situated at very high altitude among the forests here. As soon as the tourists enter the temple, they get darshan of the three major deities of the temple. In the midst of all the idols, Kalika Mata's idol is on the left and the idol of Bahucharamata and on the right is the attraction of Goddess Kali.








Thursday, June 18, 2020

सिटी पैलेस उदयपुर (City Palace Udaipur)

सिटी पैलेस उदयपुर


जय माताजी 🙏🙏🙏


सिटी पैलेस उदयपुर पिछोला झील के किनारे,उदयपुर में सिटी पैलेस राजस्थान में सबसे बड़ा शाही परिसर माना जाता है। इस शानदार महल का निर्माण वर्ष 1559 में महाराणा उदय सिंह ने करवाया था जहाँ महाराणा रहते थे और राज्य का संचालन करते थे। इसके बाद महल को उसके उत्तराधिकारियों द्वारा और भी शानदार बना दिया गया,जिसने इसमें कई संरचनाएँ जोड़ीं। पैलेस में अब महल, आंगन, मंडप, गलियारे, छतों, कमरे और लटकते उद्यान हैं। यहां एक संग्रहालय भी है जो राजपूत कला और संस्कृति के कुछ बेहतरीन तत्वों को प्रदर्शित करता है – जिसमें रंगीन चित्रों से लेकर राजस्थानी महलों में पाए जाने वाले विशिष्ट स्थापत्य शामिल हैं।

अरावली की गोद में बसा सिटी पैलेस का ग्रेनाइट और संगमरमर का किनारा प्राकृतिक परिवेश के विपरीत है। रीगल महल की जटिल वास्तुकला मध्ययुगीन, यूरोपीय और साथ ही चीनी प्रभावों का एक मिश्रण है और कई गुंबदों, मेहराबों और मीनारों से अलंकृत है। सिटी पैलेस खुद हरे भरे बगीचे पर बसा हुआ है और देखने के लिए काफी आकर्षक है।




बता दें कि सिटी पैलेस में ‘गाइड’ ‘गोलियों की रासलीला राम-लीला’ और जेम्स बॉन्ड फिल्म ‘ऑक्टोपसी’ जैसी कई फिल्मों की शूटिंग की गई है। स्थापत्य प्रतिभा और समृद्ध विरासत का एक सौम्य संगम है उदयपुर का सिटी पैलेस। तो आज के इस आर्टिकल में हम आपको यात्रा कराते हैं झीलों के बीचों-बीच बसे सिटी पैलेस की।

सिटी पैलेस का इतिहास –

सिटी पैलेस का इतिहास मेवाड़ राज्य से जुड़ा हुआ है,जो नागदा के इलाके के पास अपनी ऊंचाइयों तक पहुंच गया था। राज्य के संस्थापक गुहिल राजपूत थे जिनकी एक शाखा बादमे सिसोदा नामके गांव से राज शुरू करने से सिसोदिया राजपूत कह लायी जो चित्तोड़ के (मेवाड़ ) महाराणा कहलाये । इसके बाद, महाराणा उदय सिंह II को 1537 में चित्तौड़ में मेवाड़ राज्य विरासत में मिला, लेकिन मुगलों के लिए राज्य का नियंत्रण खोने के खतरे ने उन्हें पिछोला झील के पास एक क्षेत्र में राजधानी स्थानांतरित करने के लिए मजबूर किया। जंगलों, झीलों और शक्तिशाली अरावली पहाड़ियों से घिरा, उदयपुर का नया शहर आक्रमणकारियों से सुरक्षित था और एक भोज की सलाह पर महल का निर्माण किया।

यहाँ बनाया जाने वाला पहला ढांचा ‘राय अंगन’ था, जहाँ से परिसर के निर्माण का काम पूरे जोश के साथ किया गया था और आखिरकार यह साल 1559 में पूरा हुआ। हालाँकि, तत्कालीन मौजूदा ढांचे में कई बदलाव किए गए थे, जो 400 साल की अवधि में पुरे हुए। उदय सिंह द्वितीय जैसे शासकों ने यहाँ कुछ संरचनाएँ जोड़ीं, जिनमें 11 छोटे अलग महल थे। महाराजा की मृत्यु के बाद, उनके बेटे महाराणा प्रताप ने उन्हें सफलता दिलाई लेकिन दुर्भाग्य से हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर से हार गए। उदयपुर मुगलों से आगे निकल गया था लेकिन अकबर की मृत्यु के बाद महाराणा प्रताप के बेटे को लौटा दिया गया था।




मराठों द्वारा बढ़ते अपराधों ने महाराणा भीमसिंह को अपनी सुरक्षा स्वीकार करते हुए अंग्रेजों से संधि करने के लिए मजबूर कर दिया। 1947 में भारतीय स्वतंत्रता तक महल का नियंत्रण था और मेवाड़ साम्राज्य का 1949 में लोकतांत्रिक भारत में विलय कर दिया गया था।

सिटी पैलेस उदयपुर की वास्तुकला –

लगभग 244 मीटर और 30.4 मीटर की चौड़ाई के साथ सिटी पैलेस का मुख्य मुखौटा काफी आकर्षक है। इस महल की एक विशिष्ट विशेषता यह है कि यह कई संरचनाओं के डिजाइन और निर्माण में सजातीय है। समय के साथ इसमें कई बदलाव किए गए थे। ग्रेनाइट और संगमरमर से निर्मित, महल के अंदरूनी हिस्से को जटिल दर्पण ,संगमरमर के काम, भित्ति चित्रों, दीवार के चित्रों, चांदी के काम और रंगीन कांच से सजाया गया है।

सुरुचिपूर्ण बालकनी, लंबा टॉवर और कपोल परिसर की संरचना भी सिटी पैलेस महल की खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं। महल की छत से शहर का एक आकर्षक दृश्य देखा जा सकता है। अंदर से सिटी पैलेस लंबे गलियारों का एक भूलभुलैया है जिसे दुश्मनों द्वारा किए गए आश्चर्यजनक हमलों से बचने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

सिटी पैलेस परिसर के प्रवेश द्वार में हाथी गेट है, जिसे “हाथी पोल” के नाम से जाना जाता है। शानदार महल के प्रवेश द्वार पर एक सुंदर जगदीश मंदिर है। इसके बाद बारी पोल या बड़ा गेट है जो आंगन का रास्ता जाता है जो बदले में त्रिपोली या त्रिक द्वार की ओर जाता है। शहर के महल में शहर के पूरे दृश्य को देखते हुए कई शानदार अपार्टमेंट हैं।

राज आंगन, जिसका अर्थ है शाही प्रांगण, परिसर का सबसे पुराना हिस्सा है और महाराणा उदय सिंह द्वारा बनवाया गया था। महल अब संग्रहालयों में तब्दील हो गए हैं। सिटी पैलेस में 11 अद्भुत महल हैं और इनमें से अधिकांश अब दीर्घाओं में बदल गए हैं।

सिटी पैलेस महल परिसर के भीतर की संरचना –

 द्वार –

महल में कई प्रवेश द्वार हैं,जिनकी शुरुआत बाईं ओर ‘बारी पोल’ से होती है, ‘त्रिपोलिया’,जो कि 1725 में बना एक तिहरा धनुषाकार द्वार है, केंद्र की ओर और दाईं ओर ‘हाथी पोल’ है। महल का मुख्य द्वार बारा पोल के माध्यम से है जो आपको पहले आंगन में स्वागत करता है। यह वह स्थान है जहाँ महाराणाओं का वजन सोने और चाँदी से किया जाता था और गहने गरीबों में बाँट दिए जाते थे। संगमरमर की मेहराबों का निर्माण यहाँ भी किया गया है और इसे तोरण पोल कहा जाता है।

अमर विलास – 

अमर विलास एक ऊंचा बगीचा है जिसमें फव्वारे, मीनारें, छतों और एक चौकोर संगमरमर के टब से भरपूर एक अद्भुत टैरेस गार्डन है। महल के उच्चतम स्तर पर निर्मित, यह वह जगह थी जहां राजा अवकाश के समय यहां समय बिताते थे। अमर विलास बादी महल को भी रास्ता देता है।

बादी महल –




बादी महल को गार्डन पैलेस के रूप में भी जाना जाता है। यह इमारत प्राकृतिक चट्टान से बनी है जो 27 मीटर ऊंची है। एक स्विमिंग पूल भी यहाँ स्थित है जिसका उपयोग होली के उत्सव के दौरान किया जाता था। यहाँ एक हॉल में 18 वीं और 19 वीं शताब्दी के लघु चित्रों, जग मंदिर और जगदीश मंदिर के विष्णु के चित्र हैं।



फतेप्रकाश पैलेस –




फतेप्रकाश महल को अब एक होटल में बदल दिया गया है। क्रिस्टल की कुर्सियाँ, ड्रेसिंग टेबल, सोफा, टेबल, कुर्सियाँ और बिस्तर, क्रॉकरी, टेबल फव्वारे और गहना जड़ी कालीन जैसी दुर्लभ वस्तुएँ यहाँ मौजूद हैं। संयोग से, इनका इस्तेमाल कभी नहीं किया गया क्योंकि महाराणा सज्जन सिंह ने 1877 में इन दुर्लभ वस्तुओं का ऑर्डर दिया था, लेकिन यहां पहुंचने से पहले ही उनकी मृत्यु हो गई।

दरबार हॉल –




दरबार हॉल एक अपेक्षाकृत नया अतिरिक्त हॉल है और 1909 में फतेप्रकाश पैलेस में आधिकारिक कार्यों के लिए एक स्थल के रूप में बनाया गया था। हॉल को झूमर के साथ सजाया गया है और इसमें महाराणा के चित्रों और हथियारों का प्रदर्शन है।


भीम विलास –





यह एक और गैलरी है जिसमें राधा और कृष्ण को चित्रित करते चित्रों का विशाल संग्रह है।

 चिनि चित्रशाला –





यहाँ का एक विशिष्ट आकर्षण चिनि चित्रशाला है, जिसमें सुंदर चीनी और डच टाइलों का संग्रह है।

 छोटी चित्रशाला – 

छोटी चित्रशाला मोर के चित्रों को समर्पित एक गैलरी है। यहां आपको मोर के विभिन्न सुंदर चित्र देखने को मिलेंगे।

 कृष्ण विलास – 




कृष्ण विलास कक्ष में लघु चित्रों का भी विस्तृत संग्रह है।

 माणक महल – 




यह मेवाड़ शासकों के लिए औपचारिक दर्शकों के लिए एक हॉल था। यहाँ सूर्य-मुख के प्रतीक जैसे आकृति देखी जा सकती है। इस तरह के प्रतीक का सबसे बड़ा हिस्सा निचले स्तर पर एक स्वागत केंद्र, सूर्य चोपड़ की दीवार पर भी देखा जाता है।

 मोर चौक – 




यह कक्ष महल के आंतरिक क्षेत्रों का एक अभिन्न अंग है और इसमें तीन मोरों का विस्तृत चित्रण है जो गर्मी, सर्दी और मानसून के मौसमों का प्रतिनिधित्व करते हैं। मोरों को कांच के 5000 टुकड़ों के साथ डिजाइन किया गया है, जो हरे, सुनहरे और नीले रंगों में चमकते हैं। ऊपरी स्तर पर एक प्रोजेक्टिंग बालकनी है,जो रंगीन कांच के आवेषण द्वारा घिरा है। इस कक्ष के समीप कांच-की-बुर्ज है,जिसमें दीवारों को सजाते हुए दर्पण मोज़ाइक का संग्रह है। इस चौक के भीतर बाड़ी चारूर चौक निजी उपयोग के लिए एक छोटा न्यायालय है।

 रंग भवन – 




यह शुरुआत में शाही खजाना था और अब यहाँ स्थित भगवान कृष्ण, मीरा बाई और शिव के मंदिर हैं।

 शीश महल –




शीश महल को दर्पण के महल के रूप में भी जाना जाता है, इसे 1716 में महाराणा प्रताप ने अपनी पत्नी महारानी अजबदे ​​के लिए बनवाया था।

सिटी पैलेस संग्रहालय – 

यहाँ का लेडीज चेंबर या ‘ज़ेनाना महल’ को जनता के लिए खुले संग्रहालय में बदल दिया गया है।

डेस्टीनेशन वेडिंग के लिए “जनाना महल” – 




यह तो आप सभी जानते होंगे कि सिटी पैलेस में बहुत सी रॉयल वेडिंग आयोजित हुई हैं। ये सभी वेडिंग सिटी पैलेस के जनाना महल में आयोजित की जाती है। यह महल उदयपुर सिटी पैलेस का ही एक प्रमुख हिस्सा है। इस महल को 1600 के दशक में बनाया गया था और यहां से अब तक अनगिनत शाही शादियां हो चुकी हैं। जनाना महल में 500 मेहमानों के बैठने की व्यवस्था है। रात के समय जेनाना महल मोमबत्तियों की रोशनी में चमक उठता है। देश के कई अरबपति रॉयल वेडिंग के लिए जेनाना महल की बुकिंग कराते हैं। यहां डेकोरेशन चार्जेस 6 लाख से शुरू होकर 35 लाख तक जाते हैं।

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English Translation:-

City Palace Udaipur

Jai Mataji 🙏🙏🙏


City Palace Udaipur The City Palace at Udaipur, on the banks of the Pichola Lake, is considered the largest royal complex in Rajasthan. This magnificent palace was built in the year 1559 by Maharana Udai Singh where Maharana lived and governed the state. The palace was then made even more magnificent by his successors, who added several structures to it. The palace now has palaces, courtyards, pavilions, corridors, terraces, rooms and hanging gardens. There is also a museum that displays some of the finest elements of Rajput art and culture - ranging from colorful paintings to typical architecture found in Rajasthani palaces.

The granite and marble fringes of the City Palace, nestled in the lap of the Aravalli, contrast with the natural surroundings. The complex architecture of the Regal Palace is an amalgam of medieval, European as well as Chinese influences and is embellished with numerous domes, arches and minarets. The City Palace itself is situated on a lush green garden and is quite attractive to see.

Let me tell you that many films have been shot in the City Palace like 'Guide' Goliyon ki Rasleela Ram-Leela 'and James Bond film' Octopussy '. The City Palace of Udaipur is a gentle confluence of architectural brilliance and rich heritage. So in this article today, we give you a visit to the City Palace situated in the middle of the lakes.

History of City Palace -

The history of the City Palace is associated with the state of Mewar, which reached its heights near the area of ​​Nagda. The founder of the state was Guhil Rajput, who started a branch later called Sisodia Rajput from the village named Sisoda, who was called Maharana of Chittor (Mewar). Subsequently, Maharana Udai Singh II inherited the state of Mewar in Chittor in 1537, but the threat of the Mughals losing control of the state forced them to relocate the capital to an area near Lake Pichola. Surrounded by forests, lakes and the mighty Aravalli hills, the new city of Udaipur was safe from invaders and built the palace on the advice of a feast.

The first structure to be built here was 'Rai Angan', from where the construction of the complex was done with vigor and finally it was completed in the year 1559. However, many changes were made to the then existing structure, which was completed over a period of 400 years. Rulers like Uday Singh II added some structures here, which had 11 small separate palaces. After Maharaja's death, his son Maharana Pratap succeeded him but unfortunately lost to Akbar in the Battle of Haldighati. Udaipur had overtaken the Mughals but Maharana Pratap's son was returned after Akbar's death.

Increasing crimes by the Marathas forced Maharana Bhim Singh to negotiate a treaty with the British, accepting his protection. The palace was under control till Indian independence in 1947 and the Mewar kingdom was merged with democratic India in 1949.

Architecture of City Palace Udaipur -

The main facade of the City Palace, with a width of approximately 244 meters and 30.4 meters, is quite attractive. A distinctive feature of this palace is that it is homogeneous in the design and construction of many structures. Many changes were made to it over time. Built of granite and marble, the interiors of the palace are decorated with intricate mirrors, marble works, murals, wall paintings, silver works and colored glass.

The elegant balcony, tall tower and the structure of the cupola complex also add to the beauty of the City Palace palace. A fascinating view of the city can be seen from the roof of the palace. From inside the City Palace is a maze of long corridors designed to survive surprise attacks by enemies.

At the entrance of the City Palace complex is the Elephant Gate, known as "Hathi Pol". There is a beautiful Jagdish temple at the entrance of the magnificent palace. Then there is Bari Pol or Bada Gate which leads to the courtyard which in turn leads to Tripoli or Trik Gate. The city palace has many luxurious apartments overlooking the entire view of the city.

Raj courtyard, meaning royal courtyard, is the oldest part of the complex and was built by Maharana Udai Singh. The palaces have now been converted into museums. The City Palace has 11 amazing palaces and most of them have now been turned into galleries.

The structure inside the City Palace palace complex -

 Gateway -
The palace has several entrances, beginning with the 'Bari Pol' on the left, 'Tripolia', a triple arched gate built in 1725, towards the center and 'Elephant Pol' on the right. The main gate of the palace is through Bara Pol which welcomes you to the first courtyard. This is the place where the Maharanas were weighed with gold and silver and ornaments were distributed among the poor. Marble arches have also been constructed here and are called toran poles.

Amar Vilas -

Amar Vilas is a lofty garden with a wonderful terrace garden filled with fountains, towers, terraces and a square marble tub. Built at the highest level of the palace, it was the place where kings used to spend time here at leisure. Amar Vilas also gives way to Badi Mahal.

Badi Mahal -

Badi Mahal is also known as Garden Palace. The building is made of natural rock which is 27 meters high. A swimming pool is also located here which was used during the festival of Holi. Here in a hall are miniature paintings of the 18th and 19th centuries, the Vishnu images of Jag Mandir and Jagadish Mandir.

Fateprakash Palace -

Fateprakash Mahal has now been converted into a hotel. Rare items like crystal chairs, dressing tables, sofas, tables, chairs and beds, crockery, table fountains and jewel studded carpets are present here. Incidentally, they were never used because Maharana Sajjan Singh ordered these rare items in 1877, but he died before arriving here.

Durbar Hall -

The Durbar Hall is a relatively new extra hall and was built in 1909 as a venue for official functions at the Fateprakash Palace. The hall is decorated with chandeliers and features portraits and weapons of Maharana.

Bhima Vilas -

This is another gallery with a large collection of paintings depicting Radha and Krishna.

 Chini Chitrashala -

A distinctive attraction here is the Chini Chitrashala, which houses a collection of beautiful Chinese and Dutch tiles.

 Small gallery

The small gallery is a gallery dedicated to peacock paintings. Here you will see various beautiful pictures of peacocks.

 Krishna Vilas -

Krishna Vilas Room also has a wide collection of miniature paintings.

Manak Mahal -

It was a hall for formal audiences for the Mewar rulers. Here a symbol like shape of the Sun can be seen. The largest part of such a symbol is also seen on the wall of Surya Chopra, a reception center on the lower level.

 Mor Chowk -

The chamber is an integral part of the interior of the palace and has a detailed depiction of three peacocks representing the summer, winter and monsoon seasons. Peacocks are designed with 5000 pieces of glass, which glow in green, golden and blue colors. On the upper level is a projecting balcony, surrounded by stained glass inserts. Adjacent to this chamber is a glass-key-bastion, with a collection of mirror mosaics adorning the walls. Bari Chaur Chowk is a small court for private use within this square.

 Auditorium -

It was a royal treasure in the beginning and now houses the temples of Lord Krishna, Meera Bai and Shiva.

 Castle of glass -Sheesh Mahal

The Sheesh Mahal, also known as the Palace of Mirrors, was built by Maharana Pratap in 1716 for his wife Maharani Ajabde.

City Palace Museum -

The Ladies Chamber or 'Zenana Mahal' has been converted into a museum open to the public.

"Janana Mahal" for Destination Wedding -

It would be known to all of you that many royal weddings have been held at the City Palace. All these weddings are held in the Zanana Mahal of the City Palace. This palace is a major part of the Udaipur City Palace. The palace was built in the 1600s and there have been countless royal weddings since then. Zanana Mahal has seating for 500 guests. At night, Zenana Mahal shines in the light of candles. Many billionaires of the country book Zenana Mahal for the Royal Wedding. Decoration charges start from 6 lakhs to 35 lakhs.




























Monday, June 15, 2020

शेखावाटी (Shekhawati)

शेखावाटी 

जय माताजी 🙏🙏🙏

शेखावाटी उत्तर-पूर्वी राजस्थान का एक अर्ध-शुष्क ऐतिहासिक क्षेत्र है। राजस्थान के वर्तमान सीकर और झुंझुनू जिले शेखावाटी के नाम से जाने जाते हैं इस क्षेत्र पर आजादी से पहले शेखावत क्षत्रियों का शासन होने के कारण इस क्षेत्र का नाम शेखावाटी प्रचलन में आया। देशी राज्यों के भारतीय संघ में विलय से पूर्व मनोहरपुर-शाहपुरा,[गोङियावास] खंडेला, सीकर, खेतडी, बिसाऊ लामिया, सुरजगढ, नवलगढ़,मंडावा, मुकन्दगढ़, दांता, खुड, * कंकङेऊ कलां खाचरियाबास, अलसीसर,यासर,मलसीसर,लक्ष्मणगढ,बीदसर आदि बड़े-बड़े प्रभावशाली संस्थान शेखा जी के वंशधरों के अधिकार में थे। वर्तमान शेखावाटी क्षेत्र पर्यटन और शिक्षा के क्षेत्र में विश्व मानचित्र में तेजी से उभर रहा है, यहाँ पिलानी और लक्ष्मणगढ के भारत प्रसिद्ध शिक्षा केंद्र है। वही नवलगढ़, फतेहपुर, गंगियासर,अलसीसर, मलसीसर, लक्ष्मणगढ, मंडावा आदि जगहों पर बनी प्राचीन बड़ी-बड़ी हवेलियाँ अपनी विशालता और भित्ति चित्रकारी के लिए विश्व प्रसिद्ध है जिन्हें देखने देशी-विदेशी पर्यटकों का ताँता लगा रहता है। पहाडों में सुरम्य जगहों बने जीण माता मंदिर, शाकम्बरीदेवी का मन्दिर, लोहार्ल्गल के अलावा खाटू में बाबा खाटूश्यामजी का (बर्बरीक) का मन्दिर,सालासर में हनुमान जी का मन्दिर * कंकङेऊ कलां में बाबा माननाथ की मेङी आदि स्थान धार्मिक आस्था के ऐसे केंद्र है जहाँ दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शनार्थ आते हैं। इस शेखावाटी प्रदेश ने जहाँ देश के लिए अपने प्राणों को बलिदान करने वाले देशप्रेमी दिए वहीँ उद्योगों व व्यापार को बढ़ाने वाले सैकडो उद्योगपति व व्यापारी दिए जिन्होंने अपने उद्योगों से लाखों लोगों को रोजगार देकर देश की अर्थव्यवस्था में अपना योगदान दिया। भारतीय सेना को सबसे ज्यादा सैनिक देने वाला झुंझुनू जिला शेखावाटी का ही भाग है।



राजस्थान का मरुभूमि वाला पुर्वोतरी एवं पश्चिमोतरी विशाल भूभाग वैदिक सभ्यता के उदय का उषा काल माना जाता है। हजारों वर्ष पूर्व भू-गर्भ में विलुप्त वैदिक नदी सरस्वती यहीं पर प्रवाह मान थी, जिसके तटों पर तपस्यालीन आर्य ऋषियों ने वेदों के सूत्रों की सरंचना की थी। सिन्धुघाटी सभ्यता के अवशेषों एवं विभिन्न संस्कृतियों के परस्पर मिलन, विकास उत्थान और पतन की रोचक एवं गौरव गाथाओं को अपने विशाल आँचल में छिपाए यह मरुभूमि भारतीय इतिहास के गौरवपूर्ण अध्याय की श्र्ष्ठा और द्रष्टा रही है। जनपदीय गणराज्यों की जन्म स्थली और क्रीडा स्थली बने रहने का श्रेय इसी मरुभूमि को रहा है। इस मरुभूमि ने ऐसे विशिष्ठ पुरुषों को जन्म दिया है, जिन्होंने अपने कार्यकलापों से भारतीय इतिहास को प्रभावित किया है।

इसी मरुभूमि का एक भाग प्रमुख भाग शेखावाटी प्रदेश है जो विशालकाय मरुस्थल के पुर्वोतरी अंचल में फैला हुआ है। इसका शेखावाटी नाम विगतकालीन पॉँच शताब्दियों में इस भू-भाग पर शासन करने वाले शेखावत क्षत्रियों के नाम पर प्रसिद्ध हुआ है। उससे से पूर्व अनेक प्रांतीय नामो से इस प्रदेश की प्रसिद्दि रही है। इसी भांति अनेक शासक कुलों ने समय-समय पर यहाँ राज्य किया है। 

उत्तर पूर्वी राजस्थान में शेखावाटी क्षेत्र के अंतर्गत कई गाँव और कस्बे आते है। शेखावाटी क्षेत्र की भौगोलिक सीमाएँ वर्तमान में झुंझूनूं, सीकर और चूरू जिले तक सीमित है। विक्रम संवत 1423 में कछवावंश के राजा उदयकरण आमेर के राजा बने व उनके पुत्रों के द्वारा शेखावत, नरुका व राजावत नामक शाखाओ का निकास हुआ।

राजा उदयकरण के तीसरे पुत्र बालाजी शेखावतों के प्राचीन पुरुष थे। जिनके पास बरवाडा की 12 गावों की जागीर थी। बालाजी के पुत्र मोकल जी हुए और विक्रम संवत 1490 में मोकल जी के पुत्र महान योद्धा महाराव शेखा जी का जन्म हुआ। जो कि शेखावाटी व शेखावत वंश के प्रवर्तक थे। विक्रम संवत 1502 में मोकल जी के निधन के बाद महाराव शेखा जी बरवाडा व नान के 24 गावों के मालिक बने। राव शेखा जी ने अपने साहस वीरता व सैनिक संगठन का परिचय देते हुए आस-पास के गाँवों पर धावा मारकर अपने छोटे राज्य को 360 गाँवों के राज्य में बदल दिया एवं नान के पास अमरसर बसा कर उसे अपनी राजधानी बनाया और शिखरगढ़ का निर्माण किया। राजा रायसल जी, राव शिव सिंह जी, शार्दुल सिंह जी, भोजराज जी, सुजान सिंह आदि वीरों ने स्वतंत्र शेखावत राज्यों की स्थापना की व बठोथ, पटोदा के ठाकुर डूंगर सिंह,जवाहर सिंह शेखावत ने भारतीय स्वतंत्रता के लिये अंग्रेजों के विरूद्ध सशस्त्र संघर्ष चालू कर शेखावाटी में आजादी की लड़ाई का बिगुल बजाया।

वीर भूमि शेखावाटी प्रदेश की स्थापना महाराव शेखा जी एवं उनके वंशजों के बल, विक्रम, शोर्य और राज्याधिकार प्राप्त करने की अद्वितीय प्रतिभा का प्रतिफल है। यहाँ के दानी-मानी लक्ष्मी पुत्रों, सरस्वती के अमर साधकों तथा शक्ति के त्यागी-बलिदानी सिंह सपूतों की अनोखी गौरवमयी गाथाओं ने इसकी अलग पहचान बनाई और स्थाई रूप देने में अपनी त्याग व तपस्या की भावना को गतिशील बनाये रखा ! साहित्य के क्षेत्र में भी झुन्झुनू का नाम सर्वोपरी है ! मलसीसर के पास एक छोटे से गाँव कंकङेऊ के कवि "रवि शास्त्री" वर्तमान समय में साहित्य के क्षेत्र में अग्रसर हैं ! यहाँ के प्रबल पराक्रमी, सबल साहसी, आन-बान और मर्यादा के सजग प्रहरी शूरवीरों के रक्त-बीज से शेखावाटी के रूप में यह वट वृक्ष अपनी अनेक शाखाओं प्रशाखाओं में लहराता, झूमता और प्रस्फुटित होता आज भी अपनी अमर गाथाओं को कह रहा है। शेखावाटी नाम लेने मात्र से ही आज भी शोर्य का संचार होता है, दान की दुन्दुभी कानों में गूंजती है और शिक्षा, साहित्य, संस्कृति तथा कला का भाव उर्मियाँ उद्वेलित होने लगती है। यहाँ भित्तिचित्रों ने तो शेखावाटी के नाम को सारे संसार में दूर-दूर तक उजागर किया है। यह धरा धन्य है। ऋषियों की तपोभूमि रही है तो कृषकों की कर्मभूमि। यह धर्मधरा राजस्थान की एक पुण्य स्थली है। ऐतिहासिक द्रष्टि से इसमें अमरसरवाटी, झुंझुनू वाटी, उदयपुर वाटी, खंडेला वाटी, नरहड़ वाटी, सिंघाना वाटी, सीकर वाटी, फतेहपुर वाटी, आदि कई भाग परिणित होते रहे हैं। इनका सामूहिक नाम ही शेखावाटी प्रसिद्ध हुआ। जब शेखावाटी का अपना अलग राजनैतिक अस्तित्व था तब उसकी सीमाए इस प्रकार थी - उत्तर पश्चिम में भूतपूर्व बीकानेर राज्य, उत्तरपूर्व में लोहारू और झज्जर, दक्षिण पूर्व में तंवरावाटी और भूतपूर्व जयपुर राज्य तथा दक्षिण पश्चिम में भूतपूर्व जोधपुर राज्य।  देशी राज्यों के भारतीय संघ में विलय से पूर्व मनोहरपुर-शाहपुरा, लामिया , खंडेला, सीकर, खेतडी, बिसाऊ, कांसरडा सुरजगढ, नवलगढ़, मंडावा, मुकन्दगढ़, दांता, खुड, खाचरियाबास, अलसीसर, मलसीसर,लक्ष्मणगढ आदि बड़े-बड़े प्रभावशाली संस्थान शेखा जी के वंशधरों के अधिकार में थे। 

शेखावत संघ ने, जो आमेर राजवंश से उदभूत है, काल और परिस्थितियों के प्रभाव से अपने पैत्रिक राज्य आमेर के बराबर सम्मान और शक्ति संचय कर ली है। यधपि इस संघ का न कोई लिखित कानून है और न इसका प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष कोई प्रधानाध्यक्ष है। किन्तु समान हित की भावना से प्रेरित यह संघ अपना अस्तित्व बनाये रखने में सदैव समर्थ रहा है। फिर भी यह नहीं मान लेना चाहिय कि इस संघ में कोई नीति-कर्म नहीं है। जब कभी एक छोटे से छोटे सामंत के स्वत्वधिकारों के हनन का प्रश्न उपस्थित हुआ तो छोटे-बड़े सभी शेखावत सामंत सरदारों ने उदयपुर नामक अपने प्रसिद्ध स्थान पर इक्कठे होकर स्वत्व-रक्षा का समाधान निकाला है। 

शेखावाटी के सीकर जिले में कूदन गावं गोलीकांड के लिए प्रसिद्ध है। इस गोलीकांड में गोठड़ा भूकरान के संभूसिंह एवं पृथ्वी सिंह शहीद हो गए।

रसाले (घुड़सवार सेना) की भर्ती के हेतु शेखावाटी के मुकाबले समस्त भारत में कोई दूसरा क्षेत्र नहीं है। 

शेखावाटी भूमि में कई महल हैं, जैसे मंडवा का  किला, लक्ष्मणगढ़ किला, डूंडलोद किला आदि।



मांडवा का किला 




लष्मणगढ किला  




डूंडलोद का किला 












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English Translation:-

Shekhawati

Jai Mataji🙏🙏🙏

Shekhawati is a semi-arid historical region of north-eastern Rajasthan. The present Sikar and Jhunjhunu districts of Rajasthan are known as Shekhawati, this area came to be known as Shekhawati due to the rule of Shekhawat Kshatriyas before independence. Manoharpur-Shahpura, [Goiawas] Khandela, Sikar, Khetri, Bissau Lamia, Surajgarh, Nawalgarh, Mandawa, Mukandgarh, Danta, Khud, * Kankaleu Kalan Khachariabas, Alsisar, Yassar, Malsisar, Laxmangarh, before the merger of the Indian states into the Indian Union. Big influential institutions like Bidsar etc. were under the authority of the descendants of Sheikha ji. The present Shekhawati region is fast emerging in the world map in the field of tourism and education, here is the India famous education center of Pilani and Laxmangarh. The ancient big havelis built in the same places like Nawalgarh, Fatehpur, Gangiasar, Alsisar, Malsisar, Laxmangarh, Mandawa etc. are world famous for their vastness and mural painting which is being watched by foreign and foreign tourists. Jeen Mata Temple, the temple of Shakambaridevi made of picturesque places in the hills, the temple of Baba Khatushyamji (Barbaric) in Khatu, besides the temple of Lohargal, the temple of Hanuman ji in Salasar * Baba Maanath's temple in Kankelu Kalan are such centers of religious faith where Devotees come from far and wide. This Shekhawati region gave patriots who sacrificed their lives for the country, and gave hundreds of industrialists and businessmen who increased their industries and trade, who contributed to the country's economy by employing millions of people from their industries. Jhunjhunu district is the only part of Shekhawati, which gives maximum soldiers to Indian Army. The vast plains of the desert and the northwest of Rajasthan are considered to be the period of the rise of the Vedic civilization. Thousands of years ago, the extinct Vedic river Saraswati flowed here in the womb, on whose banks the ascetic Aryan rishis designed the sources of the Vedas. Hidden in the vast and interesting stories of the ruins of the Indus Valley Civilization and the intermingling, development, rise and fall of different cultures, this desert has been the shrine and seer of the glorious chapter of Indian history. This desert has been credited for being the birthplace and sports venue of the district republics. This desert has given birth to such distinguished men, who have influenced Indian history through their activities. A major part of this desert is Shekhawati region which is spread in the eastern border of the vast desert. Its name Shekhawati has become famous in the name of Shekhawat Kshatriyas who ruled this land in the past five centuries. Prior to that, this state has been famous by many provincial names. Similarly, many ruling clans have reigned here from time to time. Shekhawati region in North East Rajasthan consists of many villages and towns. The geographical boundaries of the Shekhawati region are currently confined to Jhunjhunu, Sikar and Churu districts. In Vikram Samvat 1423, Udayakaran, the king of the Kachhava dynasty, became the king of Amer and his sons named Shekhawat, Naruka and Rajawat were ousted. Balaji, the third son of King Udayakaran, was the ancient man of the Shekhawats. Who had the estate of 12 villages of Barwada. Balaji's son was Mokal ji and in Vikram Samvat 1490, great warrior Maharao Shekha ji, son of Mokal ji was born. Who were the promoters of Shekhawati and Shekhawat dynasty. After the death of Mokalji in Vikram Samvat 1502, Maharao Shekha became the owner of 24 villages of Barwada and Naan. Rao Shekha ji, showing his courage, valor and military organization, attacked the surrounding villages and converted his small kingdom into a state of 360 villages and settled Amarsar near Naan and made it his capital and built Shikhargarh. Raja Raisal ji, Rao Shiv Singh ji, Shardul Singh ji, Bhojraj ji, Sujan Singh, etc. Veers established independent Shekhawat states and Bathoth, Thakur Dungar Singh of Patoda, Jawahar Singh Shekhawat started armed struggle against British for Indian independence. Kar played the bugle of freedom fight in Shekhawati.

The establishment of the Veer Bhumi Shekhawati region is a byproduct of Maharao Shekha ji and his descendants with the unique talent of acquiring strength, Vikram, Shoreya and state rights. The unique glorious tales of the goddess Lakshmi sons here, the immortal seekers of Saraswati and Tyagi-Balidani Singh sons of Shakti created a distinct identity and kept their spirit of sacrifice and penance in permanent form. Jhunjhunu's name is Sarvopari in the field of literature too! The poet "Ravi Shastri" of Kankleu, a small village near Malsisar, is currently in the field of literature! The Vat tree would be waving, swinging and erupting in its many branches of branches as the Shekhawati from the blood-seed of the vigorous, strong-courageous, on-the-face and dignified vigilant knights of this place is still telling their immortal stories. Even after taking the name Shekhawati, even today there is communication of noise, donations of charity resonate in the ears and urges of education, literature, culture and art start to flow. Here graffiti has exposed the name of Shekhawati far and wide in the whole world. This earth is blessed. If there has been the taphobhoomi of the sages, then the karmabhoomi of the farmers. This Dharmadhara is a sacred place in Rajasthan. From historical point of view, there have been many parts of Amarsarwati, Jhunjhunu Wati, Udaipur Wati, Khandela Wati, Narhad Wati, Singhana Wati, Sikar Wati, Fatehpur Wati, etc. Their collective name is Shekhawati. When Shekhawati had its own separate political existence, its boundaries were as follows - the former Bikaner State in the northwest, Loharu and Jhajjar in the northeast, Tanvarawati and the erstwhile Jaipur state in the southeast and the former Jodhpur state in the southwest. Manoharpur-Shahpura, Lamia, Khandela, Sikar, Khetri, Bissau, Kansarda Surjgarh, Nawalgarh, Mandawa, Mukandgarh, Danta, Khud, Khachariabas, Alsisar, Malsisar, Laxmangarh, etc. Before the merger with the Indian Union of indigenous states, Were under the authority of the descendants of Shekhaji. The Shekhawat Sangha, which originated from the Amer dynasty, has accumulated respect and power equal to its ancestral kingdom Amer by the influence of time and circumstances. However, there is no written law of this association nor is there any direct or indirect head of state. But inspired by the spirit of equal interest, this association has always been able to maintain its existence. However, it should not be assumed that there is no ethics in this union. Whenever the question of violation of the rights of a small feudal lord was present, all the Shekhawat feudal lords, big and small, gathered at their famous place called Udaipur to find a solution for self-defense. Kudan village in Sikar district of Shekhawati is famous for firing. In this shootout, Sambhusinh and Prithvi Singh of Gothara Bhukran died. There is no other region in India than Shekhawati for recruiting Rasale (cavalry).

There Are Many Palaces In Shekhawati Land,like Mandwa Fort, Laxmangadh Fort, Dundlod Fort etc.