ग्वालियर का किला
जय माताजी 🙏🙏🙏
ग्वालियर किला भारत में घूमने की सबसे अच्छी जगहों में से एक है। ये किला मध्य भारत की सबसे प्राचीन जगह में से एक है। ग्वालियर फोर्ट मध्यप्रदेश स्टेट के ग्वालियर शहर में एक पहाड़ी पर स्थित है, जिसे ग्वालियर का किला के नाम से भी जाना-जाता है। इस किले की ऊंचाई 35 मीटर है। यह किला करीब 10वीं शताब्दी से अस्तित्व में है। लेकिन, इस किले में जो किला परिसर है उसके अंदर मिले शिलालेख और स्मारक इस बात का संकेत देते हैं कि ऐसा भी हो सकता है कि यह किला 6 वीं शताब्दी की शुरुआत में अस्तित्व में रहा हो। इस किले के इतिहास के अनुसार इसे विभिन्न शासकों द्वारा नियंत्रित किया गया है। अगर आप ग्वालियर की सेर करने आये हैं तो आप यहाँ स्थित ग्वालियर किला जरुर घूमे।
ग्वालियर के किले को भारत का जिब्राल्टर भी कहा जाता है। ग्वालियर का किला भारत के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण किले में से एक है। इस किले को बड़े ही रक्षात्मक तरीके से बनाया गया है, इस किले के दो मुख्य महल है एक गुजरी महल और दूसरा मान मंदिर हैं। इन दोनों को मान सिंह तोमर (शासनकाल 1486-1516 सीई) में बनवाया था। गुजरी महल को रानी मृगनयनी के लिए बनवाया गया था। दुनिया में “शून्य” का दूसरा सबसे पुराना रिकॉर्ड इस मंदिर में पाया गया है। जो इस किले के शीर्ष रास्ते पर मिलता है। इसके शिलालेख लगभग 1500 साल पुराने हैं।
ग्वालियर किले का इतिहास-
ग्वालियर का किला या फोर्ट भारत के राज्य मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले में पहाड़ पर स्थित है, इस किले को भारत का सबसे बड़ा किला माना जाता है, इस स्थान के महत्व को अमर बनाने के लिए भारतीय डाक सेवा द्वारा एक डाक टिकट जारी किया गया है। ग्वालियर में सांस्कृतिक विरासत और साम्राज्यवाद बड़ी विविधता है। क्योंकि ये किला बेहद पुराना है और इस किले का निर्माण 8वीं शताब्दी में हुआ था और तब से कई राजाओं ने मुगलों और ब्रिटिशों के साथ मिलकर इस जगह पर राज किया और उन्होंने यहाँ कई स्थानों का निर्माण भी करवाया। इस किले को लेकर बताया जाता है कि मुगल सम्राट बाबर ने यहाँ के बारे में कहा था कि यह हिंद के किलों के गले में मोती के सामान है।
किले के इतिहास दो भागो में बंटा हुआ है जिसमें एक हिस्सा मान मंदिर पैलेस और दूसरा एक गुर्जरारी महल है।
ग्वालियर का किला किसने बनवाया था –
इस किले का पहला भाग शुरुआती तोमर शासन में बनवाया गया था और दूसरा भाग जिसका नाम गुर्जरी महल है वो राजा मान सिंह तोमर ने 15वीं शताब्दी में अपनी प्रिय रानी, मृगनयनी के लिए बनाया गया था। अब यह संग्रहालय और महल है। एक रिसर्च में यह बताया गया है कि 727 ईस्वी में निर्मित किले के बारे में कहा गया था कि इस किले का इतिहास ग्वालियर पूर्व राज्य से जुड़ा हुआ है और इस पर कई राजपूत राजाओं ने राज किया है।
इसमें एक चतुर्भुज मंदिर है जो भगवान् विष्णु को समर्पित है। इस मंदिर को 875 ईस्वी में बनवाया गया था। इस मंदिर संबंध तेली के मंदिर से है। प्राप्त दस्तावेज की माने तो 15वीं शताब्दी से पहले ग्वालियर पर कछवाह, पाल वंश, प्रतिहार शासकों, तुर्क शासकों, तोमर शासकों जैसे राजवंशों का शासन किया था।
1519 में लोधी राजवंश से इब्राहिम लोधी ने किला जीता था इसके बाद उसकी मृत्यु के बाद मुगल सम्राट ने किले पर अधिकार कर लिया, लेकिन उसके बाद शेरशाह सूरी ने मुगल सम्राट के पुत्र हुमायूँ को हरा कर इस किले पर अपना कब्जा कर लिया और बाद में यह किला सूरी वंश के शासनकाल में आया।
1540 में उनके बेटे इस्लाम शाह ने अपनी राजधानी को दिल्ली से ग्वालियर बना दी, क्योंकि यह पश्चिम से से होने वाले लगातार हमलो से बचने के लिए यह एक सुरक्षित जगह थी। जब वर्ष 1553 इस्लाम शाह की मृत्यु हो गई, तब उनके अधिकारी आदिल शाह सूरी ने हिन्दू योद्धा हेम चंद्र विक्रमादित्य को राज्य का प्रधानमंत्री सेना प्रमुख रखा। बाद में हेम चंद्र विक्रमादित्य ने आदिल शाह शासन पर हमला किया और उन्हें 22 बार हराया। 1556 में आगरा और दिल्ली में अकबर की सेनाओं को युद्ध में हारने के बाद उन्होंने उत्तर भारत में विक्रमादित्य राजा के रूप में ‘हिंदू राज’ की स्थापना की और 07 अक्टूबर, 1556 को नई दिल्ली में पुराण किला में उनका राज्याभिषेक किया था।
ग्वालियर के किले में घूमने की खास जगह –
अगर आप किसी अच्छी जगह घूमना चाहते हैं और आपको इतिहास जानने के बारे में दिलचस्पी है, तो ग्वालियर से अच्छी आपके लिए कोई नहीं है। ग्वालियर का किला पूरे भारत में एक मोती के सामान है। यहाँ के किले की बनावट आने वाले पर्यटकों को बेहद लुभाती है। यहाँ हम ग्वालियर के किले की उन जगह की जानकारी दे रहे हैं, जहाँ आपको एक बार जरुर जाना चाहिए।
सिद्धाचल जैन मंदिर की गुफाएं –
सिद्धाचल जैन मंदिर की गुफाएं 7 वीं से 15 वीं शताब्दी में बनाई गई थीं। ग्वालियर फोर्ट के अंदर ग्यारह जैन मंदिर हैं जो जैन तीर्थंकरों को समर्पित हैं। इसके दक्षिणी ओर तीर्थंकरों की नक्काशी के साथ चट्टान से काटे गए 21 मंदिर हैं। इन मंदिरों में टालस्ट आइडल, ऋषभनाथ या आदिनाथ की छवि है, जो जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर है, यह मंदिर 58 फीट 4 इंच (17.78 मीटर) ऊँचा है।
उर्वशी मंदिर –
उर्वशी किले में एक मंदिर है जिसमें विभिन्न मुद्राओं में बैठे तीर्थंकरों की कई मूर्तियाँ हैं। पद्मासन की मुद्रा में जैन तीर्थंकरों की 24 मूर्तियाँ विराजमान हैं। 40 मूर्तियों का एक और समूह कैयोट्सार्गा की स्थिति में बैठा है। दीवारों में खुदी हुई मूर्तियों की संख्या 840 है। उर्वशी मंदिर की सबसे बड़ी मूर्ति उर्वशी गेट के बाहर है जो 58 फीट 4 इंच ऊंची है और इसके अलावा पत्थर-की बावड़ी (पत्थर की टंकी) में पद्मासन में 35 फीट ऊंची मूर्ति है।
गोपाचल पर्वत ग्वालियर –
ग्वालियर का प्रसिद्ध किला भी इसी पर्वत पर स्थित है। गोपाचल पर्वत पर लगभग 1500 मूर्तियाँ हैं इनमे 6 इंच से लेकर 57 फीट की ऊँचाई तक के आकर की मूर्ति है। इन सभी मूर्तियों का निर्माण पहाड़ी चट्टानों को काटकर किया गया है, ये सभी मूर्ति देखने में बहुत ही कलात्मक हैं। इनमे से ज्यादातर मूर्तियों का निर्माण तोमर वंश के राजा डूंगर सिंह और कीर्ति सिंह (1341-1479) के काल में हुआ था। यहां पर एक भगवान पार्श्वनाथ की पद्मासन मुद्रा में बहुत ही सुंदर और चमत्कारी मूर्ति है, जिसकी ऊँचाई 42 फीट और चौड़ाई 30 फीट है। ऐसा बताया जाता है की 1527 में मुगल सम्राट बाबर ने किले पर कब्जा करने के बाद अपने सैनिकों को मूर्तियों को तोड़ने का आदेश दिया, लेकिन जैसे ही उसके सैनिकों ने अंगूठे पर प्रहार किया तो एक ऐसा चमत्कार हुआ जिसने आक्रमणकारियों को भागने के लिए मजबूर कर दिया। मुगलों के काल जिन मूर्तियों तोड़ दिया गया था, उन मूर्तियों के टूटे हुए टुकड़े यहाँ और किले में फैले हुए हैं।
तेली का मंदिर ग्वालियर का किला -
तेली का मंदिर का निर्माण प्रतिहार सम्राट मिहिर भोज ने करवाया था। यह तेली का मंदिर एक हिंदू मंदिर है। यह मन्दिर विष्णु, शिव और मातृका को समर्पित किया गया है। इस मंदिर को प्रतिहार सम्राट मिहिर भोज ने बनवाया था। यह किले का सबसे पुराना भाग है इसमें दक्षिण और उत्तर भारतीय स्थापत्य शैली का मिश्रण है। इसकी आयताकार संरचना के अंदर स्तंभ है जिसमें बिना खंभे वाला मंडप और शीर्ष पर दक्षिण भारतीय बैरल-वॉल्टेड छत है। इसमें उत्तर भारतीय शैली में एक चिनाई वाली मीनार है, इस मीनार की ऊँचाई 25 मीटर (82 फीट) है। इस मंदिर की बाहरी दीवारों में मूर्तियों को रखा गया था। बता दें कि तेली का मंदिर को तेल के आदमी का मंदिर भी कहा जाता है। यह मंदिर पहले भगवन बिष्णु का मंदिर था जो कि बाद में भगवन शिव का मंदिर बन गया। इस मंदिर के अंदर देवी, साँपों, प्रेमी जोड़े और मनुष्य की मूर्तियाँ है। यह मंदिर पहले विष्णु का मदिर था लेकिन मुस्लिम आक्रमण के समय इसे नष्ट कर दिया गया था। बाद में इसे शिव मंदिर के रूप में फिर से बनाया गया।
गरुड़ स्तंभ ग्वालियर –
गरूड़ स्मारक, तेली का मंदिर मंदिर करीब है। यह स्मारक भगवन विष्णु को समर्पित है जो किले में सबसे ऊंचा है। इस स्तंभ में मुस्लिम और भारतीय दोनों ही वास्तुकला का मिश्रण है। तेली शब्द की उत्पत्ति हिंदू शब्द ताली से हुई है। यह पूजा के समय इस्तेमाल की जाने वाली घंटी है।
सहस्त्रबाहु (सास-बहू) मंदिर –
सास-बहू मंदिर कच्छपघाट वंश द्वारा 1092-93 में बनाया गया था। यह मंदिर विष्णु को समर्पित है। इसका आकार पिरामिड नुमा है, जो लाल बलुआ पत्थर से निर्मित है।
दाता बंदी छोड़ गुरुद्वारा ग्वालियर –
यह सिखों के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण जगह है। दाता बंदी छोड़ गुरुद्वारा, गुरु हरगोबिंद सिंह की याद में वर्ष 1970 में बनाया गया था। गुरुद्वारा दाता बांदी छोर का निर्माण उस जगह पर किया गया था जहां सिखों 6 वें गुरु हरगोबिंद साहिब को गिरफ्तार किया गया था और 1609 में मुगल सम्राट जहांगीर ने 14 साल की उम्र में उनके पिता, 5 वें सिख गुरु अर्जन पर जुर्माना लगाया था जिसका भुगतान सिखों और गुरु हरगोबिंद द्वारा किया गया था। जहाँगीर ने गुरु गोबिंद साहिब को दो साल तक कैद में रखा था।
जब उन्हें कैद से मुक्त किया गया था तो उन्होंने अपने साथ बंधी बने 52 कैदियों को छोड़ने की प्रार्थना की। यह 52 कैदी हिन्दू राजा थे। जहाँगीर ने आदेश किया कि जो भी राजा गुरु का जामा पहनेगा उसे छोड़ दिया जायेगा। इसके बाद गुरु का नाम दाता बांदी छोर पड़ गया।
मान मंदिर महल ग्वालियर -
मान मंदिर की कलात्मकता और कहानी यहाँ आने वाले पर्यटकों को बेहद लुभाती है। मान मंदिर महल तोमर वंश के राजा महाराजा मान सिंह ने 15 वीं शताब्दी में अपनी प्रिय रानी मृगनयनी के लिए बनवाया था। इसके बाद यह दिल्ली सल्तनत, राजपूतों, मुग़ल, मराठा, ब्रिटिश और सिंधिया के काल से होकर गुजरा है। यह मंदिर को एक प्रिंटेड पैलेस रूप में जाना जाता है क्योंकि मान मंदिर पैलेस स्टाइलिश टाइलों के उपयोग किया गया है। इस मंदिर को पेटेंट हाउस भी कहा जाता है क्योंकि इनमे फूलो पत्तियों मनुष्यों और जानवरों के चित्र बने हुए हैं। जब आप इस महल के अंदर जायेगे तो आपको एक यहाँ आपको एक गोल काराग्रह मिलेगा, इस जगह औरंगजेब ने अपने भाई मुराद की हत्या की थी। इस महल में एक तालाब भी है जिसका नाम जौहर कुंड है। यहां पर राजपूतो के पत्नियां सती होती थी।
जौहर कुंड ग्वालियर –
जौहर कुंड मान महल मंदिर के अंदर उपस्थित है। इस कुंड को लेकर एक अलग ही कहानी सामने आती है जो आपको इसके बारे और भी जानने के लिए मजबूर कर देगी बता दें कि जौहर का अर्थ होता है आत्महत्या। जौहर कुंड वो जगह है जहाँ पर इल्तुतमिश के आक्रमण के समय राजपूतों की पत्नियों ने अग्नि में कूदकर अपनी जान दे दी थी। जब 1232 में ग्वालियर के राजा हार गए थे तो बहुत बड़ी संख्या में रानियों ने जौहर कुंड में अपने प्राण दे दिए थे।
हाथी पोल गेट या हाथी पौल-
हाथी पोल गेट किले के दक्षिण-पूर्व में स्थित है। इस गेट को राव रतन सिंह ने बनवाया था। यह गेट मैन मंदिर महल की ओर जाता है। यह सात द्वारों की श्रृंखला का आखिरी द्वारा है। इसका नाम हाथी पोल गेट इसलिए रखा गया है कि इसमें दो हाथी बिगुल बजाते हुए एक मेहराब बनाते हैं। यह गेट देखने में बेहद आकर्षक लगता है।
कर्ण महल ग्वालियर
कर्ण महल, ग्वालियर किले का एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्मारक है। तोमर वंश के दूसरे राजा कीर्ति सिंह ने कर्ण महल का निर्माण करवाया था। राजा कीर्ति सिंह को कर्ण सिंह के नाम से भी जाना जाता था, इसलिए इस महल का नाम कर्ण महल रखा गया।
विक्रम महल –
विक्रम महल को विक्रम मंदिर के नाम से भी जाना-जाता है क्योंकि महाराजा मानसिंह के बड़े बेटे विक्रमादित्य सिंह ने इस मंदिर को बनवाया था। विक्रमादित्य सिंह, शिव जी का भक्त था। मुगल काल समय इस मंदिर को नष्ट कर दिया गया था, लेकिन बाद इसके विक्रम महल के सामने खुली जगह में फिर से स्थापित किया गया है।
भीम सिंह राणा की छत्री -
इस छत्री को गुबंद के आकर में गोहद राज्य के शासक भीम सिंह राणा (1707-1756) के स्मारक के रूप में बनाया गया था। इसका निर्माण उनके उत्तराधिकारी छत्र सिंह ने बनवाया था। बता दें कि जब मुगल सतप, अली खान ने आत्मसमर्पण किया था तो 1740 में भीम सिंह ने ग्वालियर किले पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद 1754 में भीम सिंह ने किले में एक स्मारक के रूप में भीमताल (एक झील) का निर्माण किया। इसके बाद उनके उत्तराधिकारी छत्र सिंह ने भीमताल के पास स्मारक छतरी का निर्माण कराया।
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English Translation:-
Fort of Gwalior
Jai Mataji🙏🙏🙏
Gwalior Fort is one of the best places to visit in India. This fort is one of the oldest places in central India. Gwalior Fort is situated on a hill in Gwalior city of Madhya Pradesh State, which is also known as Gwalior Fort. The height of this fort is 35 meters. This fort has been in existence since around 10th century. However, inscriptions and monuments found inside the fort complex in this fort indicate that this fort may have existed in the early 6th century. According to the history of this fort it has been controlled by various rulers. If you have come to visit Gwalior, then you must visit the Gwalior Fort located here.
The fort of Gwalior is also known as the Gibraltar of India. Gwalior Fort is one of the largest and important fort in India. This fort has been built in a very defensive way, this fort has two main palaces, one is Gujari Mahal and the other is the Maan Temple. Both of these were built in Man Singh Tomar (reign 1486–1516 CE). Gujari Mahal was built for Rani Mriganayani. The second oldest record of "zero" in the world is found in this temple. Which is found at the top of this fort. Its inscriptions are about 1500 years old.
History of Gwalior Fort
The fort or fort of Gwalior is situated on a mountain in Gwalior district of Madhya Pradesh, India, this fort is considered to be the largest fort in India, a postage stamp was issued by the Indian Postal Service to immortalize the importance of this place. is. Cultural heritage and imperialism are very diverse in Gwalior. Because this fort is very old and this fort was built in the 8th century and since then many kings along with Mughals and British ruled this place and they also built many places here. It is said about this fort that the Mughal emperor Babur said about it that it is like a pearl in the neck of the forts of Hind.
The history of the fort is divided into two parts, one part is the Man Mandir Palace and the other one is the Gurjari Mahal.
Who built the fort of Gwalior -
The first part of this fort was built during the early Tomar rule and the second part, named Gurjari Mahal, was built by Raja Man Singh Tomar in the 15th century for his beloved queen, Mrignayani. It is now a museum and palace. It has been said in a research that the fort built in 727 AD was said that the history of this fort is linked to the former state of Gwalior and it has been ruled by many Rajput kings.
It has a quadrangular temple dedicated to Lord Vishnu. This temple was built in 875 AD. This temple is related to the temple of Teli. According to the documents received, before 15th century, Gwalior was ruled by dynasties like Kachhwah, Pal dynasty, Pratihara rulers, Ottoman rulers, Tomar rulers.
Ibrahim Lodhi won the fort from the Lodhi dynasty in 1519.After his death, the Mughal emperor took control of the fort, but then Sher Shah Suri defeated Humayun, son of the Mughal emperor, and later captured the fort. This fort came under the reign of Suri dynasty.
In 1540, his son Islam Shah shifted his capital from Delhi to Gwalior, as it was a safe place to avoid frequent attacks from the west. When Islam Shah died in the year 1553, his officer Adil Shah Suri named the Hindu warrior Hem Chandra Vikramaditya as the Prime Minister of the state. Later Hem Chandra Vikramaditya attacked the Adil Shah regime and defeated him 22 times. After losing the war to Akbar's forces in Agra and Delhi in 1556, he established the 'Hindu Raj' as the Vikramaditya king in North India and was crowned at the Purana Qila in New Delhi on October 07, 1556.
A special place to visit the fort of Gwalior -
If you want to visit a good place and you are interested in knowing the history, then there is no one better for you than Gwalior. The fort of Gwalior is a pearl item throughout India. The structure of the fort here attracts the visiting tourists. Here we are giving information about the place of the fort of Gwalior, where you must go once.
Siddhachal Jain Temple Caves -
The Siddhachal Jain Temple caves were built in the 7th to 15th centuries. There are eleven Jain temples inside the Gwalior Fort which are dedicated to Jain Tirthankaras. On its southern side there are 21 rock-cut temples with carvings of Tirthankaras. These temples have the image of Talast Idol, Rishabhanath or Adinath, the first Tirthankara of Jainism, this temple is 58 feet 4 inches (17.78 meters) high.
Urvashi Temple -
There is a temple in Urvashi Fort which has many idols of Tirthankaras sitting in different postures. There are 24 idols of Jain Tirthankaras in the posture of Padmasana. Another group of 40 idols sit in the position of Cayotsarga. The number of sculptures carved in the walls is 840. The largest idol of Urvashi Temple is outside Urvashi Gate which is 58 feet 4 inches high and in addition there is a 35 feet high statue in Padmasana in stone-bawdi (stone tank).
The famous fort of Gwalior is also situated on this mountain. There are about 1500 idols on Mount Gopachal, among them there are idols ranging from 6 inches to 57 feet in height. All these idols have been constructed by cutting the hill rocks, all these idols are very artistic to look at. Most of these sculptures were built during the reigns of Tomar dynasty Raja Dungar Singh and Kirti Singh (1341–1479). There is a very beautiful and miraculous idol of Lord Parshwanath in Padmasana posture, which is 42 feet in height and 30 feet in width. It is said that after capturing the fort in 1527, the Mughal emperor Babur ordered his soldiers to smash the idols, but as soon as his soldiers hit the thumb, a miracle happened that forced the invaders to flee. gave. Broken pieces of the idols that were broken during the time of the Mughals are spread here and in the fort.
Teli Temple - Fort of Gwalior
The temple of Teli was built by Pratihara Emperor Mihir Bhoja. This Teli temple is a Hindu temple. This temple is dedicated to Vishnu, Shiva and Matruka. This temple was built by Pratihara Emperor Mihir Bhoj. It is the oldest part of the fort and has a mixture of South and North Indian architectural styles. Inside its rectangular structure is a pillar with a pillared pavilion and a South Indian barrel-vaulted roof at the top. It has a masonry tower in the North Indian style, the height of this tower is 25 meters (82 feet). Statues were placed in the outer walls of this temple. Please tell that the temple of Teli is also called the temple of oil man. This temple was earlier the temple of Lord Bishnu which later became the temple of Lord Shiva. Inside this temple are idols of Goddesses, snakes, lovers and human beings. This temple was formerly the temple of Vishnu but was destroyed at the time of the Muslim invasion. It was later rebuilt as a Shiva temple.
Garuda Pillar Gwalior -
The Garuda memorial, the temple of Teli, is close by. This monument is dedicated to Lord Vishnu who is the tallest in the fort. This pillar has a mixture of both Muslim and Indian architecture. The word Teli is derived from the Hindu word Tali. This is the bell used at the time of worship.
Sahastrabahu Temple -
The Saas-Bahu temple was built by the Kachhapaghat dynasty in 1092-93. This temple is dedicated to Vishnu. Its shape is Pyramid Numa, built of red sandstone.
Gurdwara Gwalior -
It is a very important place for Sikhs. The Gurdwara, leaving the donor captive, was built in the year 1970 in memory of Guru Hargobind Singh. The Gurdwara Data Bandi Chor was constructed at the place where the Sikhs 6th Guru Hargobind Sahib was arrested and in 1609 the Mughal emperor Jahangir, at the age of 14, imposed a fine on his father, the 5th Sikh Guru Arjan. Was performed by Sikhs and Guru Hargobind. Jahangir kept Guru Gobind Sahib in captivity for two years.
When he was freed from captivity, he prayed to release the 52 prisoners who had been captured. These 52 prisoners were Hindu kings. Jahangir ordered that whoever would wear the king's Guru's jama would be released.
Maan Temple Palace - Gwalior
The artistry and story of the Maan Temple attracts tourists visiting here. Maan Mandir Mahal was built by King Maharaja Man Singh of Tomar dynasty in the 15th century for his beloved queen Mriganayani. After this it has passed through the period of Delhi Sultanate, Rajputs, Mughals, Marathas, British and Scindia. This temple is known as a printed palace as the Maan Mandir Palace is made using stylish tiles. This temple is also called Patent House because the flowers and leaves of them have images of humans and animals. When you go inside this palace, you will find a round trip here, at this place Aurangzeb killed his brother Murad. There is also a pond in this palace called Johar Kund. Rajputs' wives used to be sati here.
Jauhar Kund Gwalior -
Johar Kundis present inside the Maan palace .A different story comes about this pool, which will force you to know more about it. Let us tell you that Jauhar means suicide. Jauhar Kund is the place where the wives of Rajputs gave their lives by jumping into the fire during Iltutmish's invasion. When the Raja of Gwalior was defeated in 1232, a large number of queens laid down their lives in Johar Kund.
Elephant Pol Gate or Hathi Paul -
Hathi Pol Gate is located to the south-east of the fort. This gate was built by Rao Ratan Singh. This gate leads to the Man Mandir palace. It is the last of a series of seven gates. It is named after Hathi Pol Gate because two elephants in it make an arch while playing bugle. This gate is very attractive to see.
Karna Mahal Gwalior
Karna Mahal is a very important monument of the Gwalior Fort. Karna Mahal was built by the second king of Tomar dynasty, Kirti Singh. Raja Kirti Singh was also known as Karna Singh, hence this palace was named Karna Mahal.
Vikram Mahal -
Vikram Mahal is also known as Vikram Mandir because this temple was built by Vikramaditya Singh, the elder son of Maharaja Mansingh. Vikramaditya Singh was a devotee of Shiva. This temple was destroyed during the Mughal period, but has since been re-established in an open space in front of its Vikram Mahal.
Chhatri of Bhim Singh Rana -
This chhatri was built as a memorial to Bhim Singh Rana (1707–1756), the ruler of Gohad state, in the shape of Guband. It was built by his successor Chhatra Singh. Explain that when Mughal Satrap, Ali Khan surrendered, Bhim Singh captured Gwalior Fort in 1740. After this, in 1754, Bhim Singh built Bhimtal (a lake) as a memorial in the fort. After this, his successor Chhatra Singh built a memorial umbrella near Bhimtal.