Sunday, May 31, 2020

गागरोन का किला


गागरोन का किला 

Jai Mataji🙏🙏🙏

दुनिया में सबसे अधिक किले और गढ़ यदि कहीं हैं तो वो राजस्थान में। राजस्थान के किसी भी हिस्से में चले जाइए, कोई न कोई दुर्ग या किला सीना ताने आपका इंतजार करता हुआ आपको दिख जाएगा। आज हम आपको एक ऐसे ही किले ‘गागरोन’ के बारे में बताएंगे। राजस्थान के झालावाड़ जिले में स्थित यह किला चारों ओर से पानी से घिरा हुआ है। यही नहीं यह भारत का एकमात्र ऐसा किला है जिसकी नींव नहीं है।




गागरोन का किला अपने गौरवमयी इतिहास के कारण भी जाना जाता है। सैकड़ों साल पहले जब यहां के शासक अचलदास खींची मालवा के शासक होशंग शाह से हार गए थे तो यहां की राजपूत महिलाओं ने खुद को दुश्मनों से बचाने के लिए जौहर (जिंदा जला दिया) कर दिया था। सैकड़ों की तादाद में महिलाओं ने मौत को गले लगा लिया था। इस शानदार धरोहर को यूनेस्को ने वर्ल्ड हेरिटेज की सूची में भी शामिल किया है।
खासियतों से भरा है यह किला
गागरोन किले का निर्माण कार्य डोड राजा बीजलदेव ने बारहवीं सदी में करवाया था और 300 साल तक यहां खीची राजा रहे। यहां 14 युद्ध और 2 जोहर (जिसमें महिलाओं ने अपने को मौत के गले लगा लिया) हुए हैं। यह उत्तरी भारत का एकमात्र ऐसा किला है जो चारों ओर से पानी से घिरा हुआ है इस कारण इसे जलदुर्ग के नाम से भी पुकारा जाता है। यह एकमात्र ऐसा किला है जिसके तीन परकोटे हैं। सामान्यतया सभी किलो के दो ही परकोटे हैं। इसके अलावा यह भारत का एकमात्र ऐसा किला है जिसे बगैर नींव के तैयार किया गया है। बुर्ज पहाडियों से मिली हुई है।



आखिर क्यों जलना पड़ा था हजारों महिलाओं को?
अचलदास खींची मालवा के इतिहास प्रसिद्ध गढ़ गागरोन के अंतिम प्रतापी नरेश थे। मध्यकाल में गागरोन की संपन्नता एवं समृद्धि पर मालवा में बढ़ती मुस्लिम शक्ति की गिद्ध जैसी नजर सदैव लगी रहती थी। 1423 ई. में मांडू के सुल्तान होशंगशाह ने 30 हजार घुड़सवार, 84 हाथी व अनगिनत पैदल सेना अनेक अमीर राव व राजाओं के साथ इस गढ़ को घेर लिया। अपने से कई गुना बड़ी सेना तथा उन्नत अस्त्रों के सामने जब अचलदास को अपनी पराजय निश्चित जान पड़ी तो उन्होंने कायरतापूर्ण आत्मसमर्पण के स्थान पर राजपूती परंपरा में, वीरता से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। दुश्मन से अपनी असमत की रक्षा के लिए हजारों महिलाओं ने मौत को गले लगा लिया था।
आखिर क्यों सैकड़ों वर्षों तक अचलदास के पलंग को किसी ने हाथ नहीं लगाया?
होशंगशाह जीत के बाद अचलदास की वीरता से इतना प्रभावित हुआ कि उसने राजा के व्यक्तिगत निवास और अन्य स्मृतियों से कोई छेड़छाड़ नहीं किया। सैकड़ों वर्षों तक यह दुर्ग मुसलमानों के पास रहा, लेकिन न जाने किसी भय या आदर से किसी ने भी अचलदास के शयनकक्ष में से उसके पलंग को हटाने या नष्ट करने का साहस नहीं किया। 1950 तक यह पलंग उसी जगह पर लगा रहा।
कई दिनों तक आती रहीं पलंग पर राजा के सोने और हुक्का पीने की आवाज
रेलवे में सुपरिटेंडेंट रहे ठाकुर जसवंत सिंह ने इस पलंग के बारे में रोचक बात बताई। उनके चाचा मोती सिंह जब गागरोन के किलेदार थे तब वे कई दिनों तक इस किले में रहे थे। उन्होंने स्वयं इस पलंग और उसके जीर्ण-शीर्ण बिस्तरों को देखा था। उन्होंने बतलाया कि उस समय लोगों की मान्यता थी कि राजा हर रात आ कर इस पलंग पर शयन करते हैं। रात को कई लोगों ने भी इस कक्ष से किसी के हुक्का पीने की आवाजें सुनी थीं।




पलंग के पास रोज मिलते थे पांच रुपए
हर शाम पलंग पर लगे बिस्तर को साफ कर, व्यवस्थित करने का काम राज्य की ओर एक नाई करता था और उसे रोज सुबह पलंग के सिरहाने पांच रुपए रखे मिलते थे। कहते हैं एक दिन रुपए मिलने की बात नाई ने किसी से कह दी। तबसे रुपए मिलने बंद हो गए। लेकिन बिस्तरों की व्यवस्था, जब तक कोटा रियासत रही, बदस्तूर चलती रही। कोटा रियासत के राजस्थान में विलय के बाद यह परंपरा धीरे-धीरे समाप्त होने लगी।
मौत की सजा के लिए होता था इसका प्रयोग
किले के दो मुख्य प्रवेश द्वार हैं। एक द्वार नदी की ओर निकलता है तो दूसरा पहाड़ी रास्ते की ओर। इतिहासकारों के अनुसार, इस दुर्ग का निर्माण सातवीं सदी से लेकर चौदहवीं सदी तक चला था। पहले इस किले का उपयोग दुश्मनों को मौत की सजा देने के लिए किया जाता था।
किले के अंदर हैं कई खास महल
किले के अंदर गणेश पोल, नक्कारखाना, भैरवी पोल, किशन पोल, सिलेहखाना का दरवाजा महत्पवूर्ण दरवाजे हैं। इसके अलावा दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, जनाना महल, मधुसूदन मंदिर, रंग महल आदि दुर्ग परिसर में बने अन्य महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल हैं।
अकबर ने बनाया था मुख्यालय
मध्ययुग में गागरोन का महत्व इस बात से मालूम होता है कि प्रसिद्ध सम्राट शेरशाह एवं अकबर महान दोनों ने इस पर व्यक्तिगत रूप से आ कर विजय प्राप्त की और इसे अपने साम्राज्य में मिला दिया। अकबर ने इसे अपना मुख्यालय भी बनाया लेकिन अंत में इसे अपने नवरत्नों में से एक बीकानेर के राजपुत्र पृथ्वीराज को जागीर में दिया।
नहीं उठी खांडा तो रास्ते में छोड़ गए चोर
खींची राजा की भारी तलवार को एक एडीसी साहब उड़ा ले गए। लेकिन वजनी खांडा चुरा कर ले जाने वाले उसका वजन न उठा सके तो उसें रास्ते में ही छोड़ गए। अब वह झालावाड़ के थाने में बंद पड़ा है। खींची राजा के सदियों पुराने पलंग और उसके बिस्तरों को लोगों ने गायब कर दिया है। तोपें लोगों ने गला दीं।
सबसे अलग हैं यहां के तोते
गागरोन के तोते बड़े मशहूर हैं ये सामान्य तोतों से आकार में दोगुने होते हैं तथा इनका रंग भी अधिक गहरा होता है इनके पंखों पर लाल निशान होते हैं नर तोते के गले के नीचे गहरे काले रंग की और ऊपर गहरे लाल रंग की कंठी होती है। कहा जाता है कि गागरोन किले की राम-बुर्ज में पैदा हुए हीरामन तोते बोलने में बड़े दक्ष होते हैं।




गागरोन का किला
मनुष्यों के जैसे बोलते हैं यहां के तोते
यहां के तोते मनुष्यों के बोली की हूबहू नकल कर लेता है। गुजरात के बहादुरशाह ने 1532 में यह किला मेवाड़ के महाराणा विक्रमादित्य से जीत लिया था। बहादुरशाह गागरोन का एक तोता अपने साथ रखता था। बाद में, जब हुमायूं ने बहादुरशाह पर विजय प्राप्त की तो जीत के सामानों में आदमी की जुबान में बोलनेवाला यह तोता भी उसे सोने के पिंजरे में बंद मिला। हुमायूं उस समय मंदसौर में था। उस समय एक सेनापति की दगाबाजी पर हुमायूं ने तोते को मारने की बात कही थी।
सेनापति की गद्दारी पर तोते ने पुकारा गद्दार-गद्दार
बहादुरशाह का सेनापति रूमी खान अपने मालिक को छोड़ कर हुमायूं से जा मिला था। कहते हैं जब रूमी खान हुमायूं के शिविर में आया तो उसे देख कर यह तोता गद्दार-गद्दार चिल्लाने लगा। इसे सुन कर रूमी खान बड़ा लज्जित हुआ तथा हुमायूं ने नाराज हो कर कहा कि यदि तोते कि जगह यह आदमी होता तो मैं इसकी जबान कटवा देता।

बेहतर पिकनिक स्पॉट
कालीसिंध व आहू नदी के संगम स्थल पर बना यह दुर्ग आसपास की हरी भरी पहाडिय़ों की वजह से पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। गागरोन दुर्ग का विहंगम नजारा पीपाधाम से काफी लुभाता है। इन स्थानों पर लोग आकर गोठ पार्टियां करते हैं। लोगों के लिए यह बेहतर पिकनिक स्पॉट है। इस शानदार धरोहर को यूनेस्को ने अपनी वर्ल्ड हेरिटेज साइट की सूची में शामिल किया है।

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English Translation:-



 Gagaron Fort

Jai Mataji🙏🙏🙏 

Rajasthan has the most forts and strongholds anywhere in the world.  Go to any part of Rajasthan, you will see some fort or fort Sina taunts waiting for you.  Today we will tell you about one such fort 'Gagron'.  Located in Jhalawar district of Rajasthan, this fort is surrounded by water from all sides.  Not only this, it is the only fort in India which does not have a foundation.
 
 Gagaron Fort is also known for its glorious history.  Hundreds of years ago, when the ruler of this place Achaldas Dhani was defeated by Hoshang Shah, the ruler of Malwa, the Rajput women here burnt Jauhar (burnt alive) to protect themselves from enemies.  Hundreds of women embraced death.  This magnificent heritage has also been included in the list of World Heritage by UNESCO.

 This fort is full of features
 The construction of the Gagron fort was done by Dod King Bijaldev in the twelfth century and remained the Khechi king here for 300 years.  There have been 14 wars and 2 Zohars (in which women have embraced themselves to death).  It is the only fort in northern India that is surrounded by water from all sides and hence it is also known as Jaladurga.  It is the only fort with three walls.  Generally, all kilos have only two copies.  Apart from this, it is the only fort in India that has been built without foundation.  The turret is joined by hills.

 After all, why thousands of women had to be burnt?
 Achaldas Dhani was the last majestic king of Gagaron, the famous citadel of Malwa.  In the medieval period, the prosperity and prosperity of Gagaron always looked like the vulture of the growing Muslim power in Malwa.  In 1423 AD, Sultan Hoshang Shah of Mandu surrounded this fort with 30 thousand cavalry, 84 elephants and countless infantry with many rich Rao and kings.  When Achaldas came to know of his defeat in the face of many times bigger army and advanced weapons than him, he got Virgati while fighting heroically, in Rajput tradition, instead of cowardly surrender.  Thousands of women embraced death to protect their disloyalty from the enemy.

 After all, why did no one touch the bed of Achaladas for hundreds of years?
 Hoshang Shah was so impressed with Achaladasa's valor after the victory that he did not tamper with the king's personal residence and other memories.  This fort remained with the Muslims for hundreds of years, but with no fear or respect, no one dared to remove or destroy the bed of Achaladas from his bedroom.  Until 1950, the bed remained in the same place.

 The sound of the king sleeping on the bed and drinking hookah for several days
 Thakur Jaswant Singh, who was a superintendent in the railways, told interesting things about this bed.  When his uncle Moti Singh was the fortress of Gagaron, he lived in this fort for many days.  He himself saw this bed and its dilapidated beds.  He told that at that time people believed that the king comes every night and sleeps on this bed.  At night many people also heard the sounds of someone's hookah drinking from this room.

 The bed got five rupees daily
 Every evening the bed on the bed was cleaned, arranged and a barber was done towards the state and he got five rupees at the bedside bed every morning.  It is said that one day the barber told someone to get money.  Since then, the money has stopped coming.  But the system of beds, as long as Kota was a princely state, continued to run.  After the merger of the princely state of Kota with Rajasthan, this tradition gradually came to an end.

 It was used for capital punishment
 The fort has two main entrances.  One gate leads to the river and the other towards the mountain path.  According to historians, this fort was constructed from the seventh century to the fourteenth century.  Earlier this fort was used to punish the enemies to death.

 There are many special palaces inside the fort
 The doors of Ganesh Pol, Nakarkhana, Bhairavi Pol, Kishan Pol, Silehkhana inside the fort are important doors.  Apart from this, Diwan-i-Aam, Diwan-i-Khas, Zanana Mahal, Madhusudan Temple, Rang Mahal etc. are other important historical sites built in the fortification complex.

 Akbar had built headquarters
 The importance of Gagaron in the medieval period is known by the fact that both the emperors Sher Shah and Akbar the Great conquered it personally and merged it with their empire.  Akbar also made it his headquarters but eventually gave it to Jagir to Prithviraj, the Rajput of Bikaner, one of his Navratnas.

 The thieves left on the way if Khanda did not arise
 An ADC sir took away the heavy sword drawn by the king.  But if the wearer could not bear the weight of the stolen Khanda, he left it on the way.  Now he is locked in Jhalawar's police station.  The centuries-old bed of the drawn king and its beds have been vanished by the people.  The cannons strangled people.

 The parrots here are different
 Gagron parrots are very famous, they are twice the size of normal parrots and they are darker in color and have red markings on their wings. The male parrot has a dark black color at the bottom of its throat and a dark red color at the top.  It is said that the Hiraman parrots born in the Ram-Burj of Gagaron Fort are very proficient in speaking.

 Gagaron Fort
 Parrots here speak like humans
 The parrot here mimics the dialect of humans.  In 1532 Bahadur Shah of Gujarat won this fort from Maharana Vikramaditya of Mewar.  Bahadur Shah kept a parrot of Gagaron with him.  Later, when Humayun conquered Bahadurshah, the parrot, which spoke in the words of the man among the goods of victory, also found him locked in a gold cage.  Humayun was in Mandsaur at that time.  At that time Humayun had spoken of killing a parrot on the travesty of a commander.

 Parrot calls traitor on traitor of general
 Bahadur Shah's commander Rumi Khan left his master and joined Humayun.  It is said that when Rumi Khan came to Humayun's camp, upon seeing him, this parrot started shouting traitor-traitor.  On hearing this, Rumi Khan was very ashamed and Humayun got angry and said that if there was this man in the place of parrot, I would have cut off his tongue.

 Better picnic spots
 This fort built at the confluence of the Kalisindh and Ahu river is a center of attraction for tourists due to the green hills surrounding it.  The bird's eye view of Gagaron Durg is very appealing to Pipadham.  People come to these places and do Goth parties.  It is a better picnic spot for people.  This magnificent heritage has been included by UNESCO in its list of World Heritage Site.


       

Saturday, May 30, 2020

रणथंभौर किला (Ranthambore Fort)

रणथंभौर किला

रणथंबोर किला - जयपुर के राजाओं का शिकार मैदान

रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान की सीमाओं के भीतर स्थित, रणथंभौर किले को यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया है। भारत को स्वतंत्र होने से पहले, रणथंबोर राष्ट्रीय उद्यान जयपुर के किंग्स के शिकार मैदान के रूप में काम करता था। रणथंभौर किले का क्षेत्र वास्तव में दो खंडों में विभाजित है। किले के पश्चिमी भाग में कई मंदिर और पवित्र स्तम्भ शामिल हैं, पूर्वी भाग को अभी भी एक जंगली क्षेत्र माना जाता है, जहां पक्षियों, तेंदुओं और मत्स्य पालन बिल्लियों आदि की कई प्रजातियां अक्सर देखी जाती हैं। उत्तर और मध्य भारत के व्यापार मार्ग के बीच में उपस्थित होने के कारण रणथंबोर किला उत्तर भारत के शासकों द्वारा प्रतिष्ठित एक जगह था।

रणथंभौर किले का इतिहास
चौहान वंश के राजपूत राजा सपल्क्ष्क्ष ने 944 ईस्वी पर किले का निर्माण शुरू कर दिया। और उसके बाद से उनके कई उत्तराधिकारियों ने रणथंभौर किले के निर्माण की दिशा में योगदान दिया। राव हम्मीर देव चौहान की भूमिका इस किले के निर्माण में प्रमुख मानी जाती है।



अलाउद्दीन खिलजी ने 1300 ईस्वी के दौरान किले पर कब्जा करने की कोशिश की लेकिन ऐसा करने में विफल रहे। तीन असफल प्रयासों के बाद, उनकी सेना ने अंततः 13 वीं शताब्दी में राँधबाहोर किला पर कब्जा कर लिया और चौहान के शासनकाल को खत्म कर दिया। तीन शताब्दियों के बाद अकबर ने किले का पदभार संभाला और 1558 में रणथंभोर राज्य को भंग कर दिया। 18 वीं सदी के मध्य तक किले मुगल शासकों के कब्जे में रहे।
18 वीं शताब्दी में मराठा शासक अपने शिखर पर थे और उन्हें देखने के लिए जयपुर के राजा सवाई माधो सिंह ने मुगलों को फोर्ट को उनके पास सौंपने का अनुरोध किया था। सवाई माधो सिंह ने फिर से पास के गांव का विकास किया और इस किले को दृढ़ किया और इस गांव का नाम बदलकर सवाई माधोपुर रखा।

रणथंभौर किले के दरवाजे

रणथंभौर किला ने सैकम्भारी के चाहमना साम्राज्य का महत्वपूर्ण हिस्सा बना लिया। यह महाराजा जयंत द्वारा निर्मित होने के लिए कहा जाता है। यादवों ने इस पर शासन किया और बाद में दिल्ली के मुस्लिम शासकों ने किले पर कब्जा कर लिया। हमीर देव रणथंभोर का सबसे शक्तिशाली शासक थे । निम्नलिखित पोल्स किले में स्थित हैं:
नवलाखा दरवाजा : यह पहला दरवाजा है, जो कि एक पूरब पूर्व की ओर स्थित है और इसकी चौड़ाई 3.20 मीटर है। गेट में चिपका हुआ एक तांबा प्लेट शिलालेख बताता है कि मौजूदा लकड़ी के दरवाजों को जयपुर के सवाई जगत सेह की अवधि के दौरान प्रदान किया गया था।

हथिया दरवाजा : दक्षिण-पूर्व का सामना करने वाला दूसरा द्वार 3.20 मीटर चौड़ा है। यह एक तरफ प्राकृतिक चट्टान से घिरा है और दूसरी ओर किले की दीवार है। गेट पर एक आयताकार गार्ड कक्ष बनाया गया है।

गणेश दरवाजा: यह तीसरा गेट है, जो दक्षिण की तरफ 3.10 मीटर चौड़ा है।

अंधेरी दरवाजा: यह उत्तर की ओर वाला अंतिम गेट है और 3.30 मीटर चौड़ा है। यह दुर्गों की दीवारों से दोनों तरफ घिरा है और पक्षों पर अनुमानित बालकनियों के साथ एक अवकाशित ओजी आर्च के साथ प्रदान किया गया है।
दिल्ली दरवाजा: यह उत्तर-पश्चिम कोने में स्थित है और लगभग 4.70 मीटर चौड़ा है। गेट में कई गार्ड कोशिकाएं भी हैं।

सत्प्ल: यह दक्षिण की ओर का सबसे बड़ा दरवाजा है और नाले के साथ किले के पश्चिमी तरफ स्थित है। यह 4.70 मीटर चौड़ा है और दो मंजिला गार्ड की कोशिकाओं के साथ प्रदान की जाती है।

सूरज दरवाजा: तुलनात्मक रूप से, पूर्वी तटों के साथ पूर्व की तरफ से यह छोटा प्रवेश द्वार है। यह 2.10 मीटर चौड़ा है।


रणथंभौर किले में दर्शनीय स्थल:-

किले में बड़े पैमाने पर दीवारें और द्वार हैं। किले के अंदर बत्तीस खम्भा छात्रा, हैमर बडी कच्छारी, हम्मीर पैलेस, छोटी कछारी और अधिक जैसे कई संरचनाएं हैं। किले में नवलला पोल, हाथिया पोल, गणेश पोल, अंधेरी पोल, दिल्ली गेट, सत्पोल, सूरज पोल के नाम से सात दरवाजे हैं।
किले के अंदर के मंदिर
12 वीं सदी में रणथंबोर किले में रहने वाले सिद्धेशनासुरी ने इस स्थान को पवित्र जैन तीर्थों में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया है।
रंथामबोर किला के मुख्य प्रवेश द्वार के पास गणेश मंदिर एक हिंदू तीर्थयात्रा है और हर साल गणेश चतुर्थी पर पूजा करने वालों के साथ भारी भीड़ है।
रणथंभौर किले तक कैसे पहुंचे
निकटतम हवाई अड्डा जयपुर है, जो कि किले से 150 किमी दूर है।
जयपुर में कई बसों और ट्रेनें भी देश के प्रमुख शहरों से उपलब्ध हैं।


जयपुर शहर में आने के बाद, आप रणथम्बोर किले तक आसानी से टैक्सी, बसों और ऑटो रिक्शा से जा सकते हैं।
रणथंभौर किले के दौरे के लिए युक्तियाँ
किले के पूर्वी भाग में भटकने से बचें, क्योंकि अक्सर कई जंगली जानवरों को वहां देखा गया है ।
राजस्थान में सनस्क्रीन पहनना उचित है, खासकर गर्मी के समय में।
कृपया, किसी भी प्रकार की नशीले पदार्थो से बचें, इससे संबंधित अपराधों के लिए दंड अत्यंत गंभीर हैं।
रणथंबोर किले और अन्य सार्वजनिक स्थानों के आसपास टूर गाइड के रूप में प्रस्तुत होने वाले कों पुरुषों द्वारा धोखाधड़ी से बचने के लिए केवल अधिकृत आउटलेट पर अपने पैसे का आदान प्रदान करें।
जय माताजी 🙏🙏🙏


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English Translation:-

Ranthambore Fort - Jaipur's hunting ground for kings

Located within the boundaries of Ranthambore National Park, Ranthambore Fort has been declared a World Heritage Site by UNESCO. Before India became independent, Ranthambore National Park served as the hunting ground of the Kings of Jaipur. The area of ​​Ranthambore Fort is actually divided into two sections. The western part of the fort contains many temples and sacred pillars, the eastern part is still considered a wooded area, where many species of birds, leopards and fishing cats, etc. are often seen. Ranthambore Fort was a place revered by the rulers of North India due to its presence between the trade routes of North and Central India.
History of Ranthambore Fort: -
 The Rajput king Sapalaksha of the Chauhan dynasty started building the fort on 944 AD. And since then many of his successors contributed towards the construction of Ranthambore Fort. The role of Rao Hammir Dev Chauhan is considered to be prominent in the construction of this fort.
In the 18th century, the Maratha rulers were at their peak and to see them, King Sawai Madho Singh of Jaipur requested the Mughals to hand over the fort to them. Sawai Madho Singh again developed a nearby village and fortified this fort and renamed this village as Sawai Madhopur.
Alauddin Khilji tried to capture the fort during 1300 AD but failed to do so. After three unsuccessful attempts, his army finally captured the Randhabhor fort in the 13th century and ended Chauhan's reign. Akbar took over the fort after three centuries and dissolved the Ranthambore kingdom in 1558. The fort remained in the possession of the Mughal rulers until the mid-18th century.
Ralls of Ranthambore Fort: -
Navlakha Pol: This is the first door, which is located one east east and has a width of 3.20 meters. A copper plate inscription affixed to the gate states that the existing wooden doors were provided during the period of Sawai Jagat Seh in Jaipur.
The Ranthambore Fort formed an important part of the Chahamana kingdom of Saikambhari. It is said to be built by Maharaja Jayant. The Yadavas ruled over it and later the Muslim rulers of Delhi captured the fort. Hamir Dev was the most powerful ruler of Ranthambore. The following poles are located in the fort:

Hathiya Pol: The second gate facing south-east is 3.20 meters wide. It is surrounded by natural rock on one side and the fort wall on the other side. A rectangular guard room is built at the gate.

Ganesh Pol: This is the third gate, which is 3.10 meters wide on the south side.

Andheri Pol: This is the last gate on the north side and is 3.30 meters wide. It is surrounded on both sides by fortification walls and is provided with a recessed ogee arch with projected balconies on the sides.

Delhi Gate: It is situated in the north-west corner and is about 4.70 meters wide. The gate also has many guard cells.

Satpl: It is the largest gateway on the south side and is located on the western side of the fort along the drain. It is 4.70 meters wide and is provided with two-storey guard cells.

Suraj Pol: By comparison, it has a small entrance from the east side along the eastern shores. It is 2.10 meters wide.

Places to see in Ranthambore Fort

The fort has massive walls and gates. There are many structures inside the fort like thirty-two pillar girls, Hammer Badi Kachari, Hammir Palace, Chhoti Kachari and more. The fort has seven gates known as Navlala Pol, Hathiya Pol, Ganesh Pol, Andheri Pol, Delhi Gate, Satpol, Suraj Pol.

Temples inside the fort

Siddhesnasuri, who lived in the Ranthambore Fort in the 12th century, lists this place as one of the sacred Jain pilgrimages.
The Ganesh temple near the main entrance of Ranthambore Fort is a Hindu pilgrimage and is heavily crowded with worshipers on Ganesh Chaturthi every year.
After coming to Jaipur city, you can easily go to Ranthambore Fort by taxi, buses and auto rickshaw.


Tips for visiting Ranthambore Fort:-
  • Avoid wandering in the eastern part of the fort, as many wild animals have often been seen there.
  • Wearing sunscreen is advisable in Rajasthan, especially in summer.
    Please, avoid any kind of intoxicants, the penalties for the offenses related to this are extremely severe.
    To avoid cheating by men posing as tour guides around Ranthambore Fort and other public places, only exchange your money at authorized outlets.

Jai Mataji🙏🙏🙏






Friday, May 29, 2020

जैसलमेर किले का इतिहास

शानदार जैसलमेर किले का इतिहास

वैसे तो भारत में कई ऐसी ऐतिहासिक धरोहर हैं, जिन्हें उनकी अद्भुत बनावट और अनोखी वास्तुशिल्प के चलते विश्व धरोहरों की लिस्ट में शुमार किया गया है। वहीं ऐसा ही एक किला राजस्थान में स्थित है – जैसलमेर का किला जो अलग-अलग विशेषताओं की वजह से जाना जाता है। यह किला दुनिया के सबसे बड़े किलों में से एक है और यह अपनी बनावट और कुछ खासियतों की वजह से बाकी किलों से एकदम अलग है।
इस किले के अंदर बेहद आर्कषक और खूबसूरत हवेलियां, बड़े-बड़े भवन, व्यापारियों और सैनिकों के सुंदर आवासीय परिसर एवं भव्य मंदिर बने हुए हैं। जो कि इस किले को अन्य किलों से अलग पहचान दिलवाती हैं।
जैसलमेर का यह भव्य किला इतिहास की कई बड़ी लड़ाईयों का भी ग्वाह बन चुका है। इस विशाल किला ने आजादी के बाद साल 1965 से 1971 के बीच हुए भारत-पाक के युद्ध में भी लाखों लोगों को संरक्षण देकर अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यही नहीं जैसलमेर का यह कला अपनी अद्बुत वास्तुकला के लिए भी जाना जाता है।

 
                                            

 
जैसलमेर का किला भारतीय, इस्लामी और फारसी वास्तुशैली का बेजोड़ मिश्रण है। इस किले को पीले रंग के पत्थर और पीली रेत से निर्मित किया गया है, जो कि इस किले को पीला और सुनहरा रंग की सोने की तरह चमक देते हैं।
जो कि देखने में बेहद आर्कषक और मनोरम लगता है। इस किले को गोल्डन फोर्ट और सोनार दुर्ग के नाम से भी जाना जाता है। अपनी भव्यता और खूबसूरती की वजह से यह राजस्थान के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक हैं, वहीं इतिहास में इस किले का अपना एक अलग महत्व है, चलिए जानते हैं विश्व विरासत की सूची में शामिल जैसलमेर के किले के बारे में –
भारत यह विशाल जैसलमेर का किला राजस्थान के जैसलमेर में थार मरुस्थल के त्रिकुटा पर्वत पर बना हुआ है। इस किले को 1156 ईसवी में एक राजपूत योद्धा ”रावल जैसल” द्धारा बनवाया गया था। यह किला कई महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक लड़ाईयों की भी ग्वाही देता है। हालांकि, इस किले के निर्माण को लेकर कई ऐतिहासिक घटनाएं जुड़ी हुई हैं।
इतिहासकारों के मुताबिक गौर के सुल्तान उद-दीन मुहम्मद ने अपने प्रदेश को बचाने के लिए राजपूत शासक रावल जैसल को अपने एक षड्यंत्र में फंसा लिया और उन पर आक्रमण कर दिया और फिर उनके किले पर अपने डोरे डालकर इसे लूट लिया।
 




इसके साथ ही उन्होंने उस किले में रह रहे लोगों को जबरन बाहर निकाल दिया, एवं उस किले को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया। जिसके बाद सम्राट जैसल ने त्रिकुटा के पहाड़ पर एक नया किला बनाने का फैसला लिया, इसके लिए उन्होंने पहले जैसलमेर शहर की नींव रखीं और फिर उसे अपनी राजधानी घोषित किया।
हालांकि, इसके बाद भी राजा रावल जैसल का इस किले पर अधिकार नहीं रहा। दरअसल, 1293-1294 ईसवी में राजा जैसल का उस समय दिल्ली की सल्तनत संभाल रहे सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के साथ संघर्ष हुआ, जिसमें राजापूत शासक रावल को पराजय का सामना करना पड़ा, वहीं उनकी इस हार के बाद अलाउद्दीन खिलजी ने जैसलमेर के किला पर अपना कब्जा कर लिया और करीब 9 साल तक अलाउद्दीन खिलजी का इस किले में अपना शासन करता रहा।
 
इसके बाद जैसलमेर किला पर दूसरा हमला मुगल सम्राट हुमायूं के द्धारा 1541 ईसवी में किया गया। वहीं राजा रावल ने मुगल शासकों की शक्ति और ताकत को देखते हुए मुगलों से दोस्ती करने का फैसला लिया, और मुगलों के साथ अपने रिश्ते अच्छे करने के लिए राजा रावल ने अपनी बेटी का विवाह मुगल सम्राट अकबर के साथ करवा दिया।



                                   


वहीं इस किले पर 1762 ईसवी तक मुगलों का शासन रहा। फिर इसके बाद जैसलमेर के किले पर महाराज मूलराज ने अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया, वहीं 1820 ईसवी में मूलराज की मौत के बाद उनके पोत गज सिंह ने जैसलमेर की इस भव्य किला पर अपना कब्जा किया।
जैसलमेर किले ने भारत-पाक युद्ध ने कई लोगों को दी शरण
जैसे ही भारत में ब्रिटिश शासकों ने अपना शासन चलाया वैसे ही बॉम्बे बंदरगाह पर समुद्री व्यापार शुरु किया गया, ऐसे में बॉम्बे ने तो खूब तरक्की की लेकिन जैसलमेर की हालत और भी ज्यादा खराब होती चली गई।
वहीं भारत की आजादी के बाद भारत- पाक के बीच बंटवारा हुआ, लेकिन पाकिस्तान ने फिर से अपने नापाक इरादों के साथ हिंदुस्तान पर पहले साल 1965 में और फिर साल 1971 में हमला कर दिया, हालांकि इस युद्ध में भारत के वीर जवानों ने पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ दिया।
आपको बता दें कि भारत-पाक के बीच यह युद्द जैसलमेर में लड़ा गया, ऐसे में इस युद्ध के दौरान वहां के लोगों की सुरक्षा को लेकर जैसलमेर की पूरी आबादी को इस भव्य किले के अंदर भेजने का फैसला लिया गया। दरअसल, जैसलमेर का किला इतना भव्य और विशाल है कि इस किले में उस समय करीब 4 हजार से भी ज्यादा लोग आ सकते थे। तो इस तरह जैसलमेर के किले ने भारत-पाक के बीच हुए युद्ध में जैसलमेर के लोगों को शरण देकर उनकी जान की रक्षा कर अपनी महानता प्रकट की है।
जैसलमेर किला की अनूठी वास्तुकला –
राजस्थान के जैसलमेर में स्थित इस किला का न सिर्फ ऐतिहासिक महत्व है, बल्कि यह अपनी अनूठी और बेजोड़ वास्तुकला के लिए भी दुनिया भर में मशहूर है। इस किले का निर्माण भारतीय, इस्लामी और फारसी वास्तुशैली के मिश्रण से किया गया है।
इस किले के निर्माण में पीले रंग की रेत और पीले पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है, वहीं जब इसमें दिन में सूर्य की रोश्नी पड़ती है तो यह सोने की तरह चमकता है, इसलिए यह गोल्डन फोर्ट और सोनार दुर्ग के नाम से भी मशहूर है। वहीं इस किले की खूबसूरती को देखने के लिए देश से ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी पर्यटक आते हैं।
76 मीटर ऊंचे इस विशाल जैसलमेर दुर्ग की लंबाई 460 मीटर और चौड़ाई 230 मीटर है। इस किले में 4 भव्य और विशाल प्रवेश द्धार है, जिसमें से एक द्धार पर तोपे भी लगी हुईं हैं।
वहीं इस किले में बना भव्य राजमहल और सुंदर- सुंदर हवेलियां और विशाल मंदिर इस किले की सुंदरता पर चार चांद लगाती हैं। इस विशाल किले में बनी हवेलियों की इमारत बहुमंजिला हैं, जिसे शाही अंदाज में बनाया गया है, इस किले की खिड़की और दरवाजों को भी बेहद खास तरीके से डिजाइन किया गया है, जिसमें आर्कषक कलाकृतियां भी हैं। इसके साथ ही कई हवेलयां इसके आर्कषण की वजह से म्यूजियम भी बन चुकी हैं।
इसके साथ ही इस किले के अंदर एक विशाल लक्ष्मीनाथ जी का मंदिर भी बना हुआ हैं, इस मंदिर में बने चित्रों में प्राचीन परंपरा और संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। यही नहीं इस शाही महल के अंदर एक विशाल लाइब्रेरी भी बनाई गई है, जहां कई प्रचीन और पुरातत्व से संबंधित किताबें रखी गईं हैं। इसके अलावा जैसलमेर के इस किले में बेहद शानदार जलनिकासी सिस्टम भी है, जिसें घूंटनाली नाम दिया गया है, जो कि बारिश के पानी को चारों दिशाओं में किले से दूर ले जाता है।
जैसलमेर के इस शाही किले तक कैसे पहुंचे –
इस भव्य जैसलमेर के किला तक सड़क, रेल और वायु तीनों मार्गों के माध्यमों से पहुंचा जा सकता है। यह तीनों मार्गों से बेहद अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। यहां तक पहुंचने के लिए कई निजी और सरकारी बस सेवाएं भी हैं। यहां दो मुख्य बस स्टैंड बने हुए हैं। इसके अलावा कई ट्रेन जैसलमेर के रास्ते से जाती है। जिससे पर्यटक आसानी से यहां सार्वजनिक या फिर अपने निजी वाहनों से पहुंच सकते हैं।
जैसलमेर का भव्य किला न सिर्फ इसके ऐतिहासिक महत्व की वजह से प्रसिद्ध है, बल्कि इसकी अनूठी और बेजोड़ वास्तुकला भी पर्यटकों को अपनी तरफ आर्कषित करती है। इसी वजह से जैसलमेर का यह किला मुख्य पर्यटन स्थलों में शुमार हैं।



 



                       जय माताजी


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English Translation 

History of the magnificent Jaisalmer Fort

By the way, there are many such historical heritage in India, which have been included in the list of world heritage due to their amazing texture and unique architecture. At the same time, one such fort is located in Rajasthan - Jaisalmer Fort which is known for its different characteristics. This fort is one of the largest forts in the world and is completely different from the rest of the forts due to its design and some features.

Inside this fort are very attractive and beautiful havelis, big buildings, beautiful residential complexes of merchants and soldiers and grand temples are built. Which makes this fort different from other forts.
This grand fort of Jaisalmer has also become the symbol of many big battles in history. This huge fort also played an important role in the Indo-Pak war between 1965 and 1971 after independence, giving protection to millions of people. Not only this, the art of Jaisalmer is also known for its amazing architecture.

 Jaisalmer Fort is a unique blend of Indian, Islamic and Persian architecture. This fort is constructed of yellow stone and yellow sand, which gives this fort a yellow and golden color like gold.
Which looks very attractive and captivating. This fort is also known as Golden Fort and Sonar Durg. Due to its grandeur and beauty, it is one of the major tourist places in Rajasthan, while this fort has a different significance in history, let's know about the fort of Jaisalmer included in the list of World Heritage -
India This huge Jaisalmer fort is built on the Trikuta mountain of the Thar Desert in Jaisalmer, Rajasthan. This fort was built in 1156 AD by a Rajput warrior "Rawal Jaisal". This fort also admits many important and historical battles. However, many historical events are associated with the construction of this fort.

According to historians, Sultan ud-Din Muhammad of Gaur implicated and attacked the Rajput ruler Rawal Jaisal in a conspiracy to save his territory and then looted it by putting his cradle on his fort.
 
With this, they forcibly removed the people living in that fort, and completely destroyed that fort. After which the emperor Jaisal decided to build a new fort on the mountain of Trikuta, for this he first laid the foundation of the city of Jaisalmer and then declared it his capital.
However, even after this, King Rawal Jaisal did not have authority over this fort. In fact, in 1293-1294 AD, King Jaisal clashed with Sultan Alauddin Khilji, then the Sultanate of Delhi, in which the Rajput ruler Rawal suffered defeat, while after this defeat Alauddin Khilji occupied the fort of Jaisalmer. Captured and ruled Alauddin Khilji for nearly 9 years in this fort.

 
After this, the second attack on Jaisalmer Fort was carried out by the Mughal Emperor Humayun in 1541 AD. At the same time, King Rawal decided to befriend the Mughals in view of the power and strength of the Mughal rulers, and in order to improve his relationship with the Mughals, King Rawal got his daughter married to the Mughal emperor Akbar.


This fort was ruled by the Mughals till 1762 AD. Then after this, Maharaja Moolraj established his suzerainty over the fort of Jaisalmer, while after the death of Moolraj in 1820 AD, his vessel Gaj Singh captured this grand fort of Jaisalmer.
Jaisalmer Fort gave shelter to many people due to Indo-Pak war
As soon as the British rulers took over their rule in India, maritime trade was started at the Bombay port, in such a way that Bombay progressed but Jaisalmer's condition deteriorated even more.
At the same time, after the independence of India, there was a partition between Indo-Pak, but Pakistan again attacked Hindustan with its evil intentions, first in 1965 and then in 1971, although in this war, the brave soldiers of India made Pakistani soldiers Chased away.

Let me tell you that this war between Indo-Pak was fought in Jaisalmer, in such a situation, during this war, it was decided to send the entire population of Jaisalmer inside this grand fort for the protection of the people there. Actually, the fort of Jaisalmer is so grand and huge that more than 4 thousand people could come to this fort at that time. In this way, the fort of Jaisalmer has shown its greatness by giving shelter to the people of Jaisalmer in the Indo-Pak war and protecting their lives.
The unique architecture of Jaisalmer Fort -
Located in Jaisalmer, Rajasthan, this fort not only has historical significance, but is also famous worldwide for its unique and unmatched architecture. This fort is constructed with a mixture of Indian, Islamic and Persian architecture.

Yellow sand and yellow stones have been used in the construction of this fort, while when the sun rises during the day, it shines like gold, hence it is also known as Golden Fort and Sonar Durg. At the same time, tourists come from not only the country but also from abroad to see the beauty of this fort.
This huge Jaisalmer fort, 76 meters high, is 460 meters in length and 230 meters in width. This fort has 4 grand and huge entry doors, out of which the top is also covered.
At the same time, the grand palace and beautiful - beautiful havelis and huge temples built in this fort have four foliage on the beauty of this fort.


                                                            Jai Mataji